Loading...

मन्त्र चुनें

  • यजुर्वेद का मुख्य पृष्ठ
  • यजुर्वेद - अध्याय 12/ मन्त्र 8
    ऋषिः - वत्सप्रीर्ऋषिः देवता - अग्निर्देवता छन्दः - आर्षी त्रिष्टुप् स्वरः - धैवतः
    0

    अग्ने॑ऽअङ्गिरः श॒तं ते॑ सन्त्वा॒वृतः॑ सह॒स्रं॑ तऽउपा॒वृतः॑। अधा॒ पोष॑स्य॒ पोषे॑ण॒ पुन॑र्नो न॒ष्टमाकृ॑धि॒ पुन॑र्नो र॒यिमाकृ॑धि॥८॥

    स्वर सहित पद पाठ

    अग्ने॑। अ॒ङ्गि॒रः॒। श॒तम्। ते॒। स॒न्तु॒। आ॒वृत॒ इत्या॒ऽवृ॑तः। स॒हस्र॑म्। ते॒। उ॒पा॒वृत॒ इत्यु॑पऽआ॒वृतः॑। अध॑। पोष॑स्य। पोषे॑ण। पुनः॑। नः॒। न॒ष्टम्। आ। कृ॒धि॒। पुनः॑। नः॒। र॒यिम्। आ। कृ॒धि॒ ॥८ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    अग्नेऽअङ्गिरः शतन्ते सन्त्वावृतः सहस्रन्तऽउपावृतः । अधा पोषस्य पोषेण पुनर्ना नष्टमाकृधि पुनर्ना रयिमाकृधि ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    अग्ने। अङ्गिरः। शतम्। ते। सन्तु। आवृत इत्याऽवृतः। सहस्रम्। ते। उपावृत इत्युपऽआवृतः। अध। पोषस्य। पोषेण। पुनः। नः। नष्टम्। आ। कृधि। पुनः। नः। रयिम्। आ। कृधि॥८॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 12; मन्त्र » 8
    Acknowledgment

    भावार्थ -
    हे ( अङ्गिरः अग्ने ) ज्ञानवन् ! अंगारों के समान देदीप्यमान अग्ने ! तेजस्विन् ! राजन् ! ( ते आवृतः ) तेरे हमारे प्रति लौट कर आगमन भी ( शतं सन्तु) सैकड़ों हों और (ते) तेरे ( उपावृतः ) हमारे समीप आगमन भी ( सहस्रं सन्तु ) हज़ारों हों। ( अथ ) और ( पोषस्य ) पुष्टिकारक धन समृद्धि की ( पोषेण ) बहुत अधिक वृद्धि से (नः नष्टम् ) हमारे हाथ से गये धन को भी ( पुनः कृधि ) हमें पुनः प्राप्त करा ( नः ) हमारे ( रयिम् ) ऐश्वर्य को ( पुनः आकृधि ) फिर प्रदान कर ॥ शतः ६।७।३।६ ॥

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर - अग्निर्देवता । आर्षी त्रिष्टुप् । निषादः ॥

    इस भाष्य को एडिट करें
    Top