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  • यजुर्वेद - अध्याय 12/ मन्त्र 96
    ऋषिः - वरुण ऋषिः देवता - वैद्या देवताः छन्दः - अनुष्टुप् स्वरः - गान्धारः
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    ओष॑धयः॒ सम॑वदन्त॒ सोमे॑न स॒ह राज्ञा॑। यस्मै॑ कृ॒णोति॑ ब्राह्म॒णस्तꣳ रा॑जन् पारयामसि॥९६॥

    स्वर सहित पद पाठ

    ओष॑धयः। सम्। अ॒व॒द॒न्त॒। सोमे॑न। स॒ह। राज्ञा॑। यस्मै॑। कृ॒णोति॑। ब्रा॒ह्म॒णः। तम्। रा॒ज॒न्। पा॒र॒या॒म॒सि॒ ॥१६ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    ओषधयः समवदन्त सोमेन सह राज्ञा । यस्मै कृणोति ब्राह्मणस्तँ राजन्पारयामसि ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    ओषधयः। सम्। अवदन्त। सोमेन। सह। राज्ञा। यस्मै। कृणोति। ब्राह्मणः। तम्। राजन्। पारयामसि॥१६॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 12; मन्त्र » 96
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    भावार्थ -
    ( ओषधय: ) वीर्य धारण करनेवाली ओषधियां ( सोमेन ) सोमलता के साथ ( सम अवदन्त ) मानो संवाद करती हैं कि हे ( राजन् ) हे राजन्, सोम ! ( ब्राह्मण: ) वेदज्ञ विद्वान् ब्राह्मण ( यस्मै कृणोति ) जिसको प्रदान करता है ( तं ) उसको हम ( पारयामसि ) पालन करती हैं। वीर्यवती प्रजाएं ( सोमेन राज्ञा मह ) प्रेरक बलवान् राजा के साथ मिलकर ( सम् अवदन्त ) आलाप करती हैं कि । ब्राह्मणः यस्मै कृणोति ) वेदज्ञ पुरुष जिस प्रयोजन या देश को रक्षा के लिये हमें दीक्षित करता है । हे राजन् ( तं पारयामसि ) उसका हम पालन करती हैं । स्त्रियों के पक्ष में- वीर्य धारण करने में समर्थ लता के समान स्त्रियां वधू के इच्छुक तेजस्वी पुरुष के साथ ( सम् अवदन्त ) संगत होकर प्रतिज्ञा करती हैं कि ( यस्मै ) जिस गृहस्थ कार्य के लिये हमें (ब्राह्मण: ) वेदज्ञ विद्वान् संस्कार द्वारा प्रदान करता है है राजन् ! वर ! ( तं पारयामसि ) हम उसको संसार सागर से तराती हैं । उरूका पालन करती हैं ।

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