Loading...

मन्त्र चुनें

  • यजुर्वेद का मुख्य पृष्ठ
  • यजुर्वेद - अध्याय 19/ मन्त्र 33
    ऋषिः - हैमवर्चिर्ऋषिः देवता - इन्द्रो देवता छन्दः - त्रिष्टुप् स्वरः - धैवतः
    1

    यस्ते॒ रसः॒ सम्भृ॑त॒ऽओष॑धीषु॒ सोम॑स्य शुष्मः॒ सुर॑या सु॒तस्य॑। तेन॑ जिन्व॒ यज॑मानं॒ मदे॑न॒ सर॑स्वतीम॒श्विना॒विन्द्र॑म॒ग्निम्॥३३॥

    स्वर सहित पद पाठ

    यः। ते॒। रसः॑। सम्भृ॑त॒ इति॒ सम्ऽभृ॑तः। ओष॑धीषु। सोम॑स्य। शुष्मः॑। सुर॑या। सु॒तस्य॑। तेन॑। जि॒न्व॒। यज॑मानम्। मदे॑न। सर॑स्वतीम्। अ॒श्विनौ॑। इन्द्र॑म्। अ॒ग्निम् ॥३३ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    यस्ते रसः सम्भृत ओषधीषु सोमस्य शुष्मः सुरया सुतस्य । तेन जिन्व यजमानम्मदेन सरस्वतीमश्विनाविन्द्रमग्निम् ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    यः। ते। रसः। सम्भृत इति सम्ऽभृतः। ओषधीषु। सोमस्य। शुष्मः। सुरया। सुतस्य। तेन। जिन्व। यजमानम्। मदेन। सरस्वतीम्। अश्विनौ। इन्द्रम्। अग्निम्॥३३॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 19; मन्त्र » 33
    Acknowledgment

    भावार्थ -
    हे राजन् ! ( सुरया सुतस्य ) उत्तम रूप से दान देने योग्य राज्यलक्ष्मी से अभिषिक्त हुए (सोमस्य ) सबके प्रेरक (ते) तुझ राजा का (यः) जो (रसः) रस, बल, (ओषधिषु) रोगनिवारक ओषधियों, वीर्य को धारण करने वाली सेनाओं और प्रजाओं में ( संभृतः ) एकत्र संगृहीत है ((तेन) उस ( मदेन) हर्षकारी बल से (यजमानम् ) दानशील प्रजाजन को, (सरस्वतीम् ) ज्ञानवती विद्वत्सभा को और (अश्विनौ) राष्ट्र के स्त्री पुरुषों को, दो मुख्य अधिकारी राजा रानी या और राजा मन्त्री दोनों को और ( इन्द्रम् ) ऐश्वर्यवान् शत्रुनाशक सेनापति और (अग्निम् ) ज्ञानवान् आचार्य एवं अग्रणी पुरुष को (जिन्ब) तृप्त कर । अर्थात् प्रजाओं के धन से राजा वैश्यों को, विद्वानों को, प्रजा के स्त्री-पुरुषों और सेनापति आदि का पालन करे । शत० १२ । ८ । १ ॥ ४ ॥

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर - अश्व्यादयः । त्रिष्टुप् । धैवतः ॥

    इस भाष्य को एडिट करें
    Top