यजुर्वेद - अध्याय 19/ मन्त्र 38
अग्न॒ऽआयू॑षि पवस॒ऽआ सु॒वोर्ज॒मिषं॑ च नः। आ॒रे बा॑धस्व दु॒च्छुना॑म्॥३८॥
स्वर सहित पद पाठअग्ने॑। आयू॑षि। प॒व॒से॒। आ। सु॒व॒। ऊर्ज॑म्। इष॑म्। च॒। नः॒। आ॒रे। बा॒ध॒स्व॒। दु॒च्छुना॑म् ॥३८ ॥
स्वर रहित मन्त्र
अग्न आयूँषि पवस्व आ सुवोर्जमिषञ्च नः । आरे बाधस्व दुच्छुनाम् ॥
स्वर रहित पद पाठ
अग्ने। आयूषि। पवसे। आ। सुव। ऊर्जम्। इषम्। च। नः। आरे। बाधस्व। दुच्छुनाम्॥३८॥
विषय - विद्वान् और राजा का दुःख संकट बाधन का कर्त्तव्य ।
भावार्थ -
हे (अग्ने) ज्ञानवान् ! विद्वन् ! राजन् ! पितः ! पितामह ! प्रपितामह! तू (आयूंषि) दीर्घ जीवन और उसके घृत आदि पदार्थ और प्राणायाम आदि साधनों को (पवसे) प्रदान कर । ( ऊर्जम् ) परम उत्तम अन्नरस और पराक्रम, ( इषम् ) इच्छानुरूप फल अन्न आदि ऐश्वर्यं ( नः आसुव) हमें प्रदान कर । और (आरे) समीप और दूर के (दुच्छुनाम् ) दुष्ट, प्रजाओं को कष्ट देने वाले शठ पुरुषों को पीड़ा को (बाधस्व) दूर कर ।
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर - प्रजापतिर्ऋषिः । अग्निर्वैखानसः । गायत्री । षड्जः ॥
इस भाष्य को एडिट करेंAcknowledgment
Book Scanning By:
Sri Durga Prasad Agarwal
Typing By:
N/A
Conversion to Unicode/OCR By:
Dr. Naresh Kumar Dhiman (Chair Professor, MDS University, Ajmer)
Donation for Typing/OCR By:
N/A
First Proofing By:
Acharya Chandra Dutta Sharma
Second Proofing By:
Pending
Third Proofing By:
Pending
Donation for Proofing By:
N/A
Databasing By:
Sri Jitendra Bansal
Websiting By:
Sri Raj Kumar Arya
Donation For Websiting By:
N/A
Co-ordination By:
Sri Virendra Agarwal