यजुर्वेद - अध्याय 19/ मन्त्र 44
ऋषिः - वैखानस ऋषिः
देवता - विश्वेदेवा देवताः
छन्दः - विराट् त्रिष्टुप्
स्वरः - धैवतः
1
वै॒श्व॒दे॒वी पु॑न॒ती दे॒व्यागा॒द् यस्या॑मि॒मा ब॒ह्व्यस्त॒न्वो वी॒तपृ॑ष्ठाः। तया॒ मद॑न्तः सध॒मादे॑षु व॒य स्या॑म॒ पत॑यो रयी॒णाम्॥४४॥
स्वर सहित पद पाठवै॒श्व॒दे॒वीति॑ वैश्वऽदे॒वी। पु॒न॒ती। दे॒वी। आ। अ॒गा॒त्। यस्या॑म्। इ॒माः। ब॒ह्व्यः᳖। त॒न्वः᳖। वी॒तपृ॑ष्ठा॒ इति॑ वी॒तऽपृ॑ष्ठाः। तया॑। मद॑न्तः। स॒ध॒मादे॒ष्विति॑ सध॒ऽमादे॑षु। व॒यम्। स्या॒म॒। पत॑यः। र॒यी॒णाम् ॥४४ ॥
स्वर रहित मन्त्र
वैश्वदेवी पुनती देव्यागाद्यस्यामिमा बह्व्यस्तन्वो वीतपृष्ठाः । तया मदन्तः सधमादेषु वयँ स्याम पतयो रयीणाम् ॥
स्वर रहित पद पाठ
वैश्वदेवीति वैश्वऽदेवी। पुनती। देवी। आ। अगात्। यस्याम्। इमाः। बह्व्यः। तन्वः। वीतपृष्ठा इति वीतऽपृष्ठाः। तया। मदन्तः। सधमादेष्विति सधऽमादेषु। वयम्। स्याम। पतयः। रयीणाम्॥४४॥
विषय - सब विद्वानों का पवित्र करने का कर्तव्य ।
भावार्थ -
( देवी ) उत्तम कार्यों का प्रकाश करने वाली, (वैश्वदेवी ) समस्त शासकों और विद्वानों की महासभा ( पुनती ) समस्त राज्य को पवित्र करती हुई, सत्यासत्य, धर्माधर्म का चलनी या सूप के समान विवेक करती हुई, ( आगात् ) प्राप्त हुई है । ( यस्याम् ) जिसमें ( बह्व्य:) बहुत से (इमाः) ये (वीतपृष्ठाः ) कमनीय स्वरूप वाले, ज्ञान प्राप्त किये, तेजस्वी (तन्वः) शरीर अर्थात् शरीरधारी जन विद्यमान हैं (तया) उससे (सधमादेषु) एकत्र आनन्दोत्सवों के अवसरों पर ( मदन्तः) प्रसन्न और हर्षित होते हुए ( वयम् ) हम सब ( रयीणां पतयः ) ऐश्वर्यों के पालक, स्वामी (स्याम) हों । विशेष अवसरों पर प्रजाजनों के प्रतिनिधि, बड़े आदमी, अधिकारी आदि की महासभा उन्नति के विषयों पर विचार करें । इसी प्रकार (वैश्वदेवी) समस्त स्त्रियों में अधिक विद्यासम्पन्न विदुषी आचार्याणी प्राप्त हो । ( यस्याम् ) जिसके अधीन (बह्वयः ) बहुत सी ( वीतपृष्ठाः ) प्रश्न करने में कुशल जिज्ञासु, विद्यार्थिनी कन्याएं हों उनके द्वारा हम प्रजाजन ( सधमादेषु ) गृहस्थ के कार्यों में भी अति सुख प्राप्त करें और ऐश्वर्यों के स्वामी हों। इसी प्रकार (वीतपृष्ठाः) उपवीत, यज्ञोपवीत धारण किये ब्रह्मचारी ( वैश्वदेवी ) वैश्वदेवी वेदवाणी में दीक्षित हों हमारी उसी वेदवाणी से ज्ञान और धन प्राप्त करें ।
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर - विश्वेदेवाः । विराट त्रिष्टुप् । धैवतः ॥
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