यजुर्वेद - अध्याय 19/ मन्त्र 83
ऋषिः - शङ्ख ऋषिः
देवता - सरस्वती देवता
छन्दः - भुरिक् त्रिष्टुप्
स्वरः - धैवतः
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सर॑स्वती॒ मन॑सा पेश॒लं वसु॒ नास॑त्याभ्यां वयति दर्श॒तं वपुः॑। रसं॑ परि॒स्रुता॒ न रोहि॑तं न॒ग्नहु॒र्धीर॒स्तस॑रं॒ न वेम॑॥८३॥
स्वर सहित पद पाठसर॑स्वती। मन॑सा। पे॒श॒लम्। वसु॑। नास॑त्याभ्याम्। व॒य॒ति॒। द॒र्श॒तम्। वपुः॑। रस॑म्। प॒रि॒स्रुतेति॑ परि॒ऽस्रुता॑। न। रोहि॑तम्। न॒ग्नहुः॑। धीरः॑। तस॑रम्। न। वेम॑ ॥८३ ॥
स्वर रहित मन्त्र
सरस्वती मनसा पेशलँवसु नासत्याभ्यां वयति दर्शतँवपुः । रसम्परिस्रुता न रोहितन्नग्नहुर्धीरस्तसरन्न वेम ॥
स्वर रहित पद पाठ
सरस्वती। मनसा। पेशलम्। वसु। नासत्याभ्याम्। वयति। दर्शतम्। वपुः। रसम्। परिस्रुतेति परिऽस्रुता। न। रोहितम्। नग्नहुः। धीरः। तसरम्। न। वेम॥८३॥
विषय - बुद्धिमती स्त्री के समान राजसभा का राष्ट्र में ऐश्वर्य और शोभा बढ़ाते रहना ।
भावार्थ -
( सरस्वती ) विज्ञानवाली विदुषी स्त्री जिस प्रकार अपना (दर्शतम् ) दर्शनीय ( वपुः ) शरीर बनाती है उसी प्रकार ( सरस्वती ) विज्ञानवान् विद्वानों की परिषद् भी ( नासत्याभ्याम् ) असत्य व्यवहारों से रहित, स्त्री-पुरुषों से मिलकर राजा के लिये (मनसा) अपने ज्ञान के बल से ( पेशलम् ) अति सुन्दर, सुवर्ण आदि से समृद्ध (वसु) ऐश्वर्य को ( वयति) पट के समान निरन्तर बुनती-सी रहती, पैदा ही करती रहती है । और जिस प्रकार स्त्री (परिस्रुता) परिस्रवण किये गये चुआए गये लाख से, मेंहदी के पीसे हुए रस से (रोहितं रसं न) लाल रस को पैदा कर देती है उसी प्रकार पूर्वोक्त विद्वत्सभा और (धीर: नग्नहुः) बुद्धिमान्, 'नग्न' अर्थात् विशुद्ध ज्ञान के ग्रहण करने हारा सभापति (परिस्रुता) राष्ट्र के समस्त प्रान्तों से प्राप्त राज्यलक्ष्मी से ही (रोहितम्) 'रोहित', आदित्य के समान तेजस्वी, (रसम् ) सारभूत लाल पोषाक पहने राजा को उसी प्रकार उत्पन्न करते हैं जैसे (तसरं वेम न ) तसर और वेमा मिलकर (रोहितं न ) लाल पट बुना करते हैं ।
अथवा - (सरस्वती) स्त्री और (नग्नहुः) सुन्दर स्त्री को स्वीकार करने वाला उसका पति दोनों मिलकर ( रोहितम् ) रक्त, कांचन वर्ण (तसरं वेम न ) दुःखक्षयकारक पुत्र को जिस प्रकार उत्पन्न करते हैं उसी प्रकार (सरस्वती नग्नहुः धीरः) विद्वत्सभा और शुद्ध तत्वज्ञानी बुद्धिमान् सभापति दोनों ( तत्सरम् ) प्रजा के दुःखनाशक (रसम् ) आनन्दप्रद ( रोहितम् ) लोहित, काञ्चन ऐश्वर्य से युक्त अथवा आदित्य के समान तेजस्वी और लाल उज्ज्वल पोषाक पहने सूर्यवत्, तेजस्वी राजा को ( वयति) उत्पन्न करते हैं । सरस्वती - प्रशस्तं सरः विज्ञानं यस्याः सा । दया० | 'नग्नहूः' – नग्नं शुद्धं जुहोति गृह्णाति दया० ॥ अथवा-पतिपक्षे 'नग्नां ' अन्येनानुपगतां कन्यां, अथवा नग्नशरीरे शुभलक्षणवतीं कन्यां जुहोति गृह्णाति यः सः । 'नग्निकां श्रेष्ठां यवीयसीमुपयच्छेत' । 'नग्नशरीरेपि शुभलक्षणवतीमिति' अष्टावक्रः । 'रोहितं' – देखो अथर्ववेद आलोकभाष्य: रोहित सूक्त ( ३ खण्ड ) ।
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर - सरस्वती देवता । त्रिष्टुप् । धैवतः ॥
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