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  • यजुर्वेद - अध्याय 19/ मन्त्र 90
    ऋषिः - शङ्ख ऋषिः देवता - सरस्वती देवता छन्दः - भुरिक् पङ्क्तिः स्वरः - पञ्चमः
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    अवि॒र्न मे॒षो न॒सि वी॒र्याय प्रा॒णस्य॒ पन्था॑ऽअ॒मृतो॒ ग्रहा॑भ्याम्। सर॑स्वत्युप॒वाकै॑र्व्या॒नं नस्या॑नि ब॒र्हिर्बद॑रैर्जजान॥९०॥

    स्वर सहित पद पाठ

    अविः॑। न। मे॒षः। न॒सि। वी॒र्या᳖य। प्रा॒णस्य॑। पन्थाः॑। अ॒मृतः॑। ग्रहा॑भ्याम्। सर॑स्वती। उ॒प॒वाकै॒रित्यु॑प॒ऽवाकैः॑। व्या॒नमिति॑ विऽआ॒नम्। नस्या॑नि। ब॒र्हिः। बद॑रैः। ज॒जा॒न॒ ॥९० ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    अविर्न मेषो नसि वीर्याय प्राणस्य पन्थमृतो ग्रहाभ्याम् । सरस्वत्युपवाकैर्व्यानन्नस्यानि बर्हिर्बदरैर्जजान् ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    अविः। न। मेषः। नसि। वीर्याय। प्राणस्य। पन्थाः। अमृतः। ग्रहाभ्याम्। सरस्वती। उपवाकैरित्युपऽवाकैः। व्यानमिति विऽआनम्। नस्यानि। बर्हिः। बदरैः। जजान॥९०॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 19; मन्त्र » 90
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    भावार्थ -
    इन्द्र ऐश्वर्यवान् राष्ट्र की 'नासिका' से तुलना करते हैं । (नसि ) नाक में जिस प्रकार (मेषः) बल और जीवन का सेचन करने वाला प्राण शरीर की ( अवि: ) रक्षा करता और ( वीर्याय ) शरीर में बल उत्पन्न करने के लिये है (न) उसी प्रकार राष्ट्र में (अविः) राष्ट्र का रक्षक पुरुष और (मेषः) उसको सुख समृद्धि से सेचन करने और शत्रुओं के प्रतिस्पर्द्धा करने में समर्थ होकर राष्ट्र के (वीर्याय) वीर्य, बल वृद्धि के लिये होता है । और यह नाक ( ग्रहाभ्याम् ) सदा ग्रहण करने योग्य प्राण और अपान या उच्छ्वास और निःश्वास दोनों के मार्गों से बनी है और वहीं ( प्राणस्य) प्राण का भी (अमृत) अमृत, जीवनप्रद ( पन्थाः ) मार्ग है उसी प्रकार ( ग्रहाभ्याम् ) एक दूसरे को स्वीकार करने वाले स्त्री-पुरुषों से ही इस राष्ट्र की रचना है, वह (प्राणस्य) मुख्य प्राण या बल का (अमृत) अमृत जीवनप्रद, अविनाशी ( पन्थाः) मार्ग है । और वही (सरस्वती) वाणी शरीर में (उपवाकैः) समीप ही स्थित वचनों से नासिका में ( व्यानम् ) व्यान नामक प्राण के विविध सामर्थ्यो को प्रकट करती है, उसी प्रकार राष्ट्र में (सरस्वती) विद्वत्सभा (उपवाकैः) नाना शास्त्र- प्रवचनों से (व्याषम् ) विविध सामर्थ्यं प्रकट करती है । (नस्यानि ) जिस प्रकार नाक के लोम शुद्ध वायु का प्रवेश कराते हैं और हितकारी हैं उसी प्रकार (बर्हिबंदरैः) कुश आदि ओषधियाँ और बेर आदि अन्य फल के वृक्ष मानो राष्ट्ररूप नाक में लोम के समान हैं । संक्षेप में राष्ट्ररूप नाक में रक्षक राजा प्राण है, स्त्री-पुरुष दो प्राण के मार्ग हैं, विद्वत्सभा द्वारा बनाई नियमाज्ञावचन नाक में स्थित व्यान है और जंगल के ओषधि फलादि वृक्ष नाक के लोम हैं ।

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर - अश्व्यादयः । इन्द्रो देवता । भुरिक् पंक्तिः । पंचमः ॥

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