यजुर्वेद - अध्याय 19/ मन्त्र 20
ऋषिः - हैमवर्चिर्ऋषिः
देवता - यजमानो देवता
छन्दः - भुरिगुष्णिक्
स्वरः - ऋषभः
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प॒शुभिः॑ प॒शूना॑प्नोति पुरो॒डाशै॑र्ह॒वीष्या। छन्दो॑भिः सामिधे॒नीर्या॒ज्याभिर्वषट्का॒रान्॥२०॥
स्वर सहित पद पाठप॒शुभि॒रिति॑ प॒शुभिः॑। प॒शून्। आ॒प्नो॒ति॒। पु॒रो॒डाशैः॑। ह॒वीषि॑। आ। छन्दो॑भि॒रिति॒ छन्दः॑ऽभिः। सा॒मि॒धे॒नीरिति॑ साम्ऽइधे॒नीः। या॒ज्या᳖भिः। व॒ष॒ट्का॒रानिति॑ वषट्ऽका॒रान् ॥२० ॥
स्वर रहित मन्त्र
पशुभिः पशूनाप्नोति पुरोडाशैर्हवीँष्या । छन्दोभिः सामिधेनीर्याज्याभिर्वषट्कारान् ॥
स्वर रहित पद पाठ
पशुभिरिति पशुभिः। पशून्। आप्नोति। पुरोडाशैः। हवीषि। आ। छन्दोभिरिति छन्दःऽभिः। सामिधेनीरिति साम्ऽइधेनीः। याज्याभिः। वषट्कारानिति वषट्ऽकारान्॥२०॥
विषय - राजा का बल-सम्पादन । राष्ट्रयज्ञ का विस्तार ।
भावार्थ -
२८. (पशुभिः पशून् आप्नोति) यज्ञगत पशुओं द्वारा राष्ट्र के पशुओं की तुलना है ।
२९. (पुरोडाशैः हवींषि ) यज्ञ के पुरोडाशों से राष्ट्र के अन्न आदि भोग्य पदार्थों की तुलना है ।
३०. (छन्दोभि: [ छन्दांसि ] ) यज्ञ में मन्त्ररूप छन्दों से राष्ट्र में- नाना अधिकार और व्यवहारों, व्यवसायों, कानूनों, विधानों की तुलना है।
३१. ( [ सामिधेनीभि: ] सामिधेनी: ) यज्ञ में समिधा आधान की ऋचाओं द्वारा सामिधेनी अर्थात् राष्ट्र में सेना के विशेष अधिकार और सेनाबलों की तुलना है ।
३२. ( याज्याभि: [ याज्या: ] ) यज्ञ की याज्या ऋचाओं से राष्ट्र की याज्या अर्थात् भूमि, अन्न और धन के दानों की तुलना है ।
३३. ([ वषट्कारैः ] वषट्कारान् ) यज्ञ के वषट्कारों से राष्ट्र में 'योग्य पुरुषों को योग्य अधिकार सत् कारों की तुलना है । इस प्रकार "यज्ञ' राज्यरचना की व्याख्या करता 1
वज्रो वै सामिधेन्यः । कौ० ३ । २, ३ ॥ ' याज्या' - इयं पृथिवी -याज्या । श० १/७/२/११ ॥ अन्नं वै याज्या | कौ० १५ । ३ ॥ प्रत्तिर्वै याज्या पुण्यैव लक्ष्मीः । ऐ० २।४० ॥
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर - यजमानः । भुरिग् उष्णिक् । ऋषभः ||
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