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  • यजुर्वेद - अध्याय 19/ मन्त्र 42
    ऋषिः - वैखानस ऋषिः देवता - सोमो देवता छन्दः - गायत्री स्वरः - षड्जः
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    पव॑मानः॒ सोऽअ॒द्य नः॑ प॒वित्रे॑ण॒ विच॑र्षणिः। यः पोता॒ स पु॑नातु मा॥४२॥

    स्वर सहित पद पाठ

    पव॑मानः। सः। अ॒द्य। नः॒। प॒वित्रे॑ण। विच॑र्षणि॒रिति॒ विऽच॑र्षणिः। यः। पोता॑। सः। पु॒ना॒तु॒। मा॒ ॥४२ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    पवमानः सोऽअद्य नः पवित्रेण विचर्षणिः । यः पोता स पुनातु मा ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    पवमानः। सः। अद्य। नः। पवित्रेण। विचर्षणिरिति विऽचर्षणिः। यः। पोता। सः। पुनातु। मा॥४२॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 19; मन्त्र » 42
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    भावार्थ -
    (यः) जो (अद्य) आज, नित्य ही, (विचर्षणिः) सब का सूर्य के समान द्रष्टा, (पवमानः) वायु और प्राण के समान सबका पवित्र कर्त्ता एवं व्यापक, (पोता) अग्नि के समान शोधक परमेश्वर, विद्वान् एवं राजा (सः) वह (नः) हमें (पवित्रेण) ज्ञान और कर्म से (मा) मुझ राजा और प्रजा को (पुनातु ) पवित्र करे ।

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर - सोमो । गायत्री । षड्जः ॥

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