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ऋग्वेद मण्डल - 8 के सूक्त 19 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 8/ सूक्त 19/ मन्त्र 34
    ऋषिः - सोभरिः काण्वः देवता - आदित्याः छन्दः - पादनिचृदुष्णिक् स्वरः - ऋषभः

    यमा॑दित्यासो अद्रुहः पा॒रं नय॑थ॒ मर्त्य॑म् । म॒घोनां॒ विश्वे॑षां सुदानवः ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    यम् । आ॒दि॒त्या॒सः॒ । अ॒द्रु॒हः॒ । पा॒रम् । नय॑थ । मर्त्य॑म् । म॒घोना॑म् । विश्वे॑षाम् । सु॒ऽदा॒न॒वः॒ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    यमादित्यासो अद्रुहः पारं नयथ मर्त्यम् । मघोनां विश्वेषां सुदानवः ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    यम् । आदित्यासः । अद्रुहः । पारम् । नयथ । मर्त्यम् । मघोनाम् । विश्वेषाम् । सुऽदानवः ॥ ८.१९.३४

    ऋग्वेद - मण्डल » 8; सूक्त » 19; मन्त्र » 34
    अष्टक » 6; अध्याय » 1; वर्ग » 35; मन्त्र » 4
    Acknowledgment

    संस्कृत (2)

    पदार्थः

    (अद्रुहः, आदित्यासः) हे सर्वेषां मित्रभूता विद्वांसः ! यूयम् (सुदानवः) शोभनदानाः (यम्, मर्त्यम्) यं मनुष्यम् (पारम्, नयथ) विद्यायाः पारं कुरुथ सः (विश्वेषाम्, मघोनाम्) सर्वेषां धनवतां मध्ये धनिको भवति ॥३४॥

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    विषयः

    पुनस्तदनुवर्त्तते ।

    पदार्थः

    हे अद्रुहः=अद्रोग्धारः ! हे सुदानवः=शोभनदानदातारः ! हे आदित्यासः=आचार्य्याः ! विश्वेषाम्=सर्वेषाम् । मघोनाम्=धनवतां मध्ये । यं मर्त्यम्=मनुष्यम् । पारम्=कर्मणां समाप्तिम् । नयथ=प्रापयथ । स एव पूर्वोक्तं फलं प्राप्नोति ॥३४ ॥

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    हिन्दी (4)

    पदार्थ

    (अद्रुहः, आदित्यासः) हे किसी पर द्रोह न करनेवाले अदिति=दैत्यरहित विद्या के पुत्र सदृश विद्वानों ! (सुदानवः) सुन्दर दानवाले आप (यम्, मर्त्यम्) जिस मनुष्य को (पारम्, नयथ) विद्या के पार कर देते हैं, वह (विश्वेषाम्, मघोनाम्) सब धनिकों में श्रेष्ठ होता है ॥३४॥

    भावार्थ

    विद्वान् पुरुष अनेक कलाओं को प्रकाशित कर स्वयं दैन्यरहित होकर प्रजाओं को अनेक विपत्तियों से पार कर सकता है अर्थात् पदार्थविद्यावेत्ता विद्वान् पुरुष कला-कौशलादि-निर्माण द्वारा स्वयं ऐश्वर्य्यसम्पन्न होता और प्रजाजनों को भी धनवान् बनाता है, इसलिये उचित है कि सब विद्वान् पदार्थविद्या द्वारा उन्नत हों ॥३४॥

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    विषय

    पुनः वही विषय आ रहा है ।

    पदार्थ

    हे (अद्रुहः) द्रोहरहित (सुदानवः) हे शोभनदाता (आदित्याः) आचार्य्यो ! आप (विश्वेषाम्) समस्त (मघोनाम्) धनवानों के मध्य (मर्त्यम्) जिस मनुष्य को (पारम्) कर्मों के पार (नयथ) ले जाते हैं, वही पूर्वोक्त फल पाता है ॥३४ ॥

    भावार्थ

    पूर्व सम्पूर्ण सूक्त में अग्निवाच्य ईश्वर की स्तुति-प्रार्थना कही गई है, यहाँ आदित्य की चर्चा देखते हैं । इसका कारण यह है कि आदित्य नाम आचार्य का है । उनकी ही कृपा से सर्व कार्य सिद्ध हो सकता है, क्योंकि वे ज्ञान देते हैं, सन्मार्ग पर ले जाते हैं और ईश्वर की आज्ञाएँ समझाते हैं ॥३४ ॥

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    विषय

    आदित्य विद्वानों का वर्णन।

    भावार्थ

    हे ( आदित्यासः ) सूर्य की किरणोंवत् ज्ञान, ऐश्वर्यादि का संचय करने वाले और हे (सु-दानवः) उत्तम रीति से पुनः जलवत् अपने सञ्चित को अन्यों के उपकारार्थ देने वाले हे ( अद्रुहः ) द्रोहरहित, प्रेममय दयालु पुरुषो ! आप लोग ( यम् मर्त्यम् ) जिस मनुष्य को ( पारं नयथ ) ज्ञानसागर के पार कर देते हो वह ( विश्वेषां मघोनां ) समस्त ऐश्वर्यवानों में पूज्य होजाता है।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    सोभरिः काण्व ऋषिः॥ देवता—१—३३ अग्निः। ३४, ३५ आदित्याः । ३६, ३७ त्रसदस्योर्दानस्तुतिः॥ छन्दः—१, ३, १५, २१, २३, २८, ३२ निचृदुष्णिक्। २७ भुरिगार्ची विराडुष्णिक्। ५, १९, ३० उष्णिक् ककुप् । १३ पुरं उष्णिक्। ७, ९ , ३४ पादनिचृदुष्णिक्। ११, १७, ३६ विराडुष्णिक्। २५ आर्चीस्वराडुष्णिक्। २, २२, २९, ३७ विराट् पंक्तिः। ४, ६, १२, १६, २०, ३१ निचृत् पंक्ति:। ८ आर्ची भुरिक् पंक्तिः। १० सतः पंक्तिः। १४ पंक्ति:। १८, ३३ पादनिचृत् पंक्ति:। २४, २६ आर्ची स्वराट् पंक्ति:। ३५ स्वराड् बृहती॥ सप्तत्रिंशदृचं सूक्तम्॥

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    विषय

    'आदित्य-अद्रुक्-सुदानु'

    पदार्थ

    [१] गत मन्त्र में वर्णित उस महान् अग्नि [प्रभु] की उपेक्षित् अन्य अग्नियों को सम्बोधन करते हुए कहते हैं कि हे अग्नियो ! (यं मर्त्यम्) = जिस मनुष्य को आप (पारं नयथ) = सब अशिवों के पार ले जाते हो। ये मनुष्य (आदित्यासः) = उत्कृष्ट ज्ञान का आदान करनेवाले, ज्ञानों से सूर्य की तरह चमकनेवाले बनते हैं। (अद्रुहः) = ये द्रोह की भावना से रहित होते हैं तथा (विश्वेषां मघोनाम्) = पिता व सब यज्ञशील पुरुषों में (सुदानवः) = खूब ही अधिक दानशील होते हैं। [२] उत्तम माता, आचार्य को प्राप्त करके ये युवक ज्ञान के दृष्टिकोण से सूर्य की तरह चमकनेवाले आदित्य बनते हैं। मन के दृष्टिकोण से ये द्रोह की भावना से रहित होते हैं तथा खूब ही यज्ञों में दान की प्रवृत्तिवाले बनते हैं। मस्तिष्क में 'आदित्य', मन में 'अध्रुक्', हाथों में 'सुदानु' होते हैं।

    भावार्थ

    भावार्थ- हम उत्तम माता, पिता व आचार्य के सम्पर्क में 'आदित्य, अध्रुक् व सुदानु' बनें।

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    इंग्लिश (1)

    Meaning

    O Adityas, generous givers of light and life free from malice and jealousy, of all the people of wealth, honour and power, whoever the mortal you guide and lead across the world of karma and consequence, he is the man of good fortune.

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    पूर्वीच्या संपूर्ण सूक्तात अग्निवाच्य ईश्वराची स्तुती - प्रार्थना सांगितलेली आहे. येथे आदित्याची चर्चा केलेली आहे. याचे कारण हे आहे की, आदित्य आचार्याचे नाव आहे. त्याच्या कृपेने सर्व कार्य सिद्ध होऊ शकते. कारण ते ज्ञान देतात, सन्मार्गाकडे घेऊन जातात व ईश्वराच्या आज्ञा समजावून सांगतात ॥३४॥

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