ऋग्वेद - मण्डल 8/ सूक्त 19/ मन्त्र 7
स्व॒ग्नयो॑ वो अ॒ग्निभि॒: स्याम॑ सूनो सहस ऊर्जां पते । सु॒वीर॒स्त्वम॑स्म॒युः ॥
स्वर सहित पद पाठसु॒ऽअ॒ग्नयः॑ । वः॒ । अ॒ग्निऽभिः॑ । स्याम॑ । सू॒नो॒ इति॑ । स॒ह॒सः॒ । ऊ॒र्जा॒म् । प॒ते॒ । सु॒ऽवीरः॑ । त्वम् । अ॒स्म॒ऽयुः ॥
स्वर रहित मन्त्र
स्वग्नयो वो अग्निभि: स्याम सूनो सहस ऊर्जां पते । सुवीरस्त्वमस्मयुः ॥
स्वर रहित पद पाठसुऽअग्नयः । वः । अग्निऽभिः । स्याम । सूनो इति । सहसः । ऊर्जाम् । पते । सुऽवीरः । त्वम् । अस्मऽयुः ॥ ८.१९.७
ऋग्वेद - मण्डल » 8; सूक्त » 19; मन्त्र » 7
अष्टक » 6; अध्याय » 1; वर्ग » 30; मन्त्र » 2
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अष्टक » 6; अध्याय » 1; वर्ग » 30; मन्त्र » 2
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भाष्य भाग
संस्कृत (2)
पदार्थः
(सहसः, सूनो) हे बलेनोत्पाद्य (ऊर्जाम्, पते) बलानां पते ! (वः, अग्निभिः) युष्माकं विद्वद्भिः वयम् (स्वग्नयः) सुष्ठु अग्निमन्तः (स्याम) भवेम (सुवीरः, त्वम्) सुवीरवान् त्वं च (अस्मयुः) अस्मदिच्छावांश्च स्याः ॥७॥
विषयः
अग्निहोत्रं दर्शयति ।
पदार्थः
हे सहसः सूनो ! सहसा बलेन जायते उत्पद्यते इति सहो जगत् । तस्य सूनो=सवितः=जनयितः । सूयते उत्पादयति यः स सूनुर्जनयिता । विचित्रा हि वैदिकप्रयोगाः । हे ऊर्जाम्=बलवतां सूर्य्यादीनाम् । बलानां वा पते=पालक ! वः=तव । अत्र वचनव्यत्ययः । अग्निभिः=अग्निहोत्रादिकर्मभिः । वयं स्वग्नयः =शोभनाग्निहोत्रादिकर्माणः । स्याम=भवेम । हे भगवन् ! सुवीरो बलवतां बलिष्ठस्त्वम् । अस्मयुः=अस्मान् कामयमानो भव ॥७ ॥
हिन्दी (4)
पदार्थ
(सहसः, सूनो) हे बल से उत्पाद्य (ऊर्जाम्, पते) बलों के स्वामी परमात्मन् ! (वः, अग्निभिः) आपके विद्वानों द्वारा हम लोग (स्वग्नयः) शोभन रीति से आपके उपासक (स्याम) हों (सुवीरः, त्वम्) सुन्दर वीरोंवाले आप (अस्मयुः) हमको चाहनेवाले हों ॥७॥
भावार्थ
इस मन्त्र में उपासक को आत्मरक्षा के लिये दो प्रकार के सहायकों की ईश्वर से प्रार्थना करना कथन की । एक तो अनेक विद्याकुशल विविध विद्वान् और दूसरे संग्रामकुशल वीर, इन दोनों की वृद्धि जिस देश में होती है, वही देश सर्वथा सुरक्षित रहता है, इसलिये सब प्रजाजनों को उचित है कि अपनी रक्षा के लिये उक्त दोनों प्रकार के मनुष्यों के लिये परमात्मा से प्रार्थना करें, ताकि सब सुरक्षित रहकर धार्मिक तथा सामाजिक उन्नति करते हुए ऐश्वर्यसम्पन्न हों ॥७॥
विषय
अग्निहोत्र को दिखाते हैं ।
पदार्थ
(सहसः) हे जगत् के (सूनो) उत्पादक हे (ऊर्जाम्) बलवान् सूर्य्यादिकों का या बलों का (पते) स्वामिन् ! (वः) आपके (अग्निभिः) अग्निहोत्रादि कर्मों से (स्वग्नयः) अच्छे अग्निहोत्रादि शुभकर्म करनेवाले हम सब (स्याम) होवें । हे भगवन् ! वास्तव में (त्वम्) आप ही (सुवीरः) महावीर हैं, आप (अस्मयुः) हम लोगों की कामना करें, हमारी ओर देखें ॥७ ॥
भावार्थ
अग्निहोत्रादि कर्म मनुष्य को पवित्र करनेवाले हैं, अतः उनका सेवन नित्य कर्त्तव्य है ॥७ ॥
विषय
सेनापति के कर्त्तव्य ।
भावार्थ
हे ( सहसः सूनो ) बल के सञ्चालक ! हे (ऊर्जां पते ) बलवान् पराक्रमी सैन्यों के पालक ! हे ( अग्नयः ) अग्निवत् तेजस्वी विद्वान् पुरुषो ! हम लोग ( वः अग्निभिः ) तुम्हारे अग्रणी, ज्ञानी पुरुषों द्वारा ( सु-अग्नयः ) उत्तम सुखजनक अग्नियों वा प्रधान नायकों से युक्त ( स्याम ) होवें । हे अग्रणी ! ( त्वम् ) तू ( अस्मयुः ) हमें चाहने वाला हमारा स्वामी, ( सुवीरः ) उत्तम वीर और वीरों का नायक है ।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
सोभरिः काण्व ऋषिः॥ देवता—१—३३ अग्निः। ३४, ३५ आदित्याः । ३६, ३७ त्रसदस्योर्दानस्तुतिः॥ छन्दः—१, ३, १५, २१, २३, २८, ३२ निचृदुष्णिक्। २७ भुरिगार्ची विराडुष्णिक्। ५, १९, ३० उष्णिक् ककुप् । १३ पुरं उष्णिक्। ७, ९ , ३४ पादनिचृदुष्णिक्। ११, १७, ३६ विराडुष्णिक्। २५ आर्चीस्वराडुष्णिक्। २, २२, २९, ३७ विराट् पंक्तिः। ४, ६, १२, १६, २०, ३१ निचृत् पंक्ति:। ८ आर्ची भुरिक् पंक्तिः। १० सतः पंक्तिः। १४ पंक्ति:। १८, ३३ पादनिचृत् पंक्ति:। २४, २६ आर्ची स्वराट् पंक्ति:। ३५ स्वराड् बृहती॥ सप्तत्रिंशदृचं सूक्तम्॥
विषय
स्वग्नयः
पदार्थ
[१] हे (सहसः सूनो) = बल के पुत्र, बल के पुञ्ज (ऊर्जाम्पते) = बलों व प्राणशक्तियों के स्वामिन् प्रभो ! हम (वः) = आपके (अग्निभिः) = उत्तम मातारूप दक्षिणाग्नि, उत्तम पिता रूप गार्हपत्य अग्नि तथा उत्तम आचार्यरूप आहवनीयाग्नि से (स्वग्नयः स्याम) = उत्तम यज्ञाग्नियोंवाले बनें। इन माता, पिता व आचार्य से पालित पोषित व शिक्षित होकर हम सदा यज्ञ आदि उत्तम कार्यों को करनेवाले बनें। [२] हे प्रभो ! (त्वम्) = आप (सुवीरः) = उत्तम वीर सन्तानों को प्राप्त करानेवाले हैं [शोभना वीराः यस्मात्]। (अस्मयुः) = सदा हमें चाहनेवाले होइये, अर्थात् हम आपके प्रिय बन सकें।
भावार्थ
भावार्थ- प्रभु के अनुग्रह से उत्तम माता, पिता, आचार्यरूप अग्नियों को प्राप्त करके हम उत्तम यज्ञादि कर्मों की ओर झुकाववाले बनें। हम उत्तम सन्तानोंवाले हों और प्रभु के प्रिय हों।
इंग्लिश (1)
Meaning
O lord creator of energy and master controller of strength and power, let us, by yajnic experimentations of various forms of heat and light, all your gifts, be masters of fire energies and light radiations. You are the bravest holy power. Pray be ours, close to us as master giver and power divine.
मराठी (1)
भावार्थ
अग्निहोत्र इत्यादी कर्म मनाला पवित्र करणारे आहे, त्यामुळे त्याचा स्वीकार करणे हे नित्य कर्तव्य आहे. ॥७॥
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