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  • यजुर्वेद - अध्याय 33/ मन्त्र 30
    ऋषिः - विभ्राड् ऋषिः देवता - सूर्यो देवता छन्दः - विराट् जगती स्वरः - निषादः
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    वि॒भ्राड् बृ॒हत् पि॑बतु सो॒म्यं मध्वायु॒र्दध॑द् य॒ज्ञप॑ता॒ववि॑ह्रुतम्।वात॑जूतो॒ योऽअ॑भि॒रक्ष॑ति॒ त्मना॑ प्र॒जाः पु॑पोष पुरु॒धा वि रा॑जति॥३०॥

    स्वर सहित पद पाठ

    वि॒भ्राडिति॑ वि॒ऽभ्राट्। बृ॒हत्। पि॒ब॒तु॒। सो॒म्यम्। मधु॑। आयुः॑। दध॑त्। य॒ज्ञप॑ता॒विति॑ य॒ज्ञऽप॑तौ। अवि॑ह्रुत॒मित्यवि॑ऽह्रुतम् ॥ वात॑जूत॒ इति॒ वात॑ऽजूतः। यः। अ॒भि॒रक्ष॒तीत्य॑भि॒ऽरक्ष॑ति। त्मना॑। प्र॒जा इति॑ प्र॒ऽजाः। पु॒पो॒ष॒। पु॒रु॒धा। वि। रा॒ज॒ति॒ ॥३० ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    विभ्राड्बृहत्पिबतु सोम्यम्मध्वायुर्दधद्यज्ञपतावविह्रुतम् । वातजूतो योऽअभिरक्षति त्मना प्रजाः पुपोष पुरुधा वि राजति ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    विभ्राडिति विऽभ्राट्। बृहत्। पिबतु। सोम्यम्। मधु। आयुः। दधत्। यज्ञपताविति यज्ञऽपतौ। अविह्रुतमित्यविऽह्रुतम्॥ वातजूत इति वातऽजूतः। यः। अभिरक्षतीत्यभिऽरक्षति। त्मना। प्रजा इति प्रऽजाः। पुपोष। पुरुधा। वि। राजति॥३०॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 33; मन्त्र » 30
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    पदार्थ -
    পদার্থঃ–(য়ঃ) যে(বাতজুতঃ) বায়ু হইতে বেগপ্রাপ্ত সূর্য্য সদৃশ (বিভ্রাড্) বিশেষ করিয়া প্রকাশবান্ রাজপুরুষ (অবিহ্রুতম্) অখন্ড সম্পূর্ণ (আয়ুঃ) জীবন (য়জ্ঞপতৌ) যুক্ত ব্যবহার পালক অধিষ্ঠাতা (দধৎ) ধারণ করিয়া (ত্মনা) আত্মাদ্বারা (প্রজাঃ) প্রজাসকলকে (অভিরক্ষতি) সকল দিক দিয়া রক্ষা করিয়া (পুপোষ) পুষ্ট করে এবং (পুরুধা) বহু প্রকারে (বি, রাজতি) বিশেষ করিয়া প্রকাশমান হয় । সুতরাং আপনি (বৃহৎ) বৃহৎ (সোম্যম্) সোমাদি ওষধিসমূহের (মধু) মিষ্টাদি গুণযুক্ত রসকে (পিবতু) পান করুন ॥ ৩০ ॥

    भावार्थ - ভাবার্থঃ–এই মন্ত্রে বাচকলুপ্তোপমালঙ্কার আছে । হে রাজাদি মনুষ্যগণ! যেমন সূর্য্য বৃষ্টি দ্বারা সকল জীবের জীবনপালন করে, তাহার তুল্য উত্তম গুণ দ্বারা মহান্ হইয়া ন্যায় ও বিনয় দ্বারা প্রজাসমূহের নিরন্তর রক্ষা কর ॥ ৩০ ॥

    मन्त्र (बांग्ला) - বি॒ভ্রাড্ বৃ॒হৎ পি॑বতু সো॒ম্যং মধ্বায়ু॒র্দধ॑দ্ য়॒জ্ঞপ॑তা॒ববি॑হ্রুতম্ । বাত॑জূতো॒ য়োऽঅ॑ভি॒রক্ষ॑তি॒ ত্মনা॑ প্র॒জাঃ পু॑পোষ পুরু॒ধা বি রা॑জতি ॥ ৩০ ॥

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर - বিভ্রাডিত্যস্য বিভ্রাড্ ঋষিঃ । সূর্য়ো দেবতা । বিরাট্ জগতী ছন্দঃ ।
    নিষাদঃ স্বরঃ ॥

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