Loading...

मन्त्र चुनें

  • यजुर्वेद का मुख्य पृष्ठ
  • यजुर्वेद - अध्याय 33/ मन्त्र 54
    ऋषिः - वामदेव ऋषिः देवता - विश्वेदेवा देवताः छन्दः - निचृत त्रिष्टुप् स्वरः - धैवतः
    4

    दे॒वेभ्यो॒ हि प्र॑थ॒मं य॒ज्ञिये॑भ्योऽमृत॒त्वꣳ सु॒वसि॑ भा॒गमु॑त्त॒मम्।आदिद् दा॒मान॑ꣳ सवित॒र्व्यूड्टर्णुषेऽनूची॒ना जी॑वि॒ता मानु॑षेभ्यः॥५४॥

    स्वर सहित पद पाठ

    दे॒वेभ्यः॑। हि। प्र॒थ॒मम्। य॒ज्ञिये॑भ्यः। अ॒मृ॒त॒त्वमित्य॑मृत॒ऽत्वम्। सु॒वसि॑। भा॒गम्। उ॒त्त॒ममित्यु॑त्ऽत॒मम् ॥ आत्। इत्। दा॒मान॑म्। स॒वि॒तः॒। वि। ऊ॒र्णु॒षे॒। अ॒नू॒ची॒ना। जी॒वि॒ता। मानु॑षेभ्यः ॥५४ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    देवेभ्यो हि प्रथमँयज्ञियेभ्यो मृतत्वँ सुवसि भागमुत्तमम् । आदिद्दामानँ सवितर्व्यूर्णुषे नूचीना जीविता मानुषेभ्यः ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    देवेभ्यः। हि। प्रथमम्। यज्ञियेभ्यः। अमृतत्वमित्यमृतऽत्वम्। सुवसि। भागम्। उत्तममित्युत्ऽतमम्॥ आत्। इत्। दामानम्। सवितः। वि। ऊर्णुषे। अनूचीना। जीविता। मानुषेभ्यः॥५४॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 33; मन्त्र » 54
    Acknowledgment

    पदार्थ -
    পদার্থঃ–হে (সবিতঃ) সমস্ত জগতের উৎপাদক জগদীশ্বর! (হি) যদ্দ্বারা আপনি (য়জ্ঞিয়েভ্যঃ) যজ্ঞসিদ্ধিকারী (দেবেভ্যঃ) বিদ্বান্দিগের জন্য (উত্তমম্) শ্রেষ্ঠ (প্রথমম্) মুখ্য (অমৃতত্বম্) মোক্ষভাব (ভাগম্) সেবনীয় সুখকে (সুবসি) প্রেরিত করেন (আৎ, ইৎ) ইহার অনন্তরই (দামানম্) সুখদাতা প্রকাশ এবং (অনূচীনা) জানিবার সাধন (জীবিতা) জীবন হেতু কর্ম্মসমূহকে (মানুষেভ্যঃ) মনুষ্যদিগের জন্য (বি, ঊর্ণুষে) বিস্তৃত করেন. এইজন্য উপাসনার যোগ্য ॥ ৫৪ ॥

    भावार्थ - ভাবার্থঃ–হে মনুষ্যগণ! পরমেশ্বরেরই সংযোগ এবং বিদ্বান্দিগের সঙ্গ দ্বারা সর্বোত্তম সুখযুক্ত মোক্ষ প্রাপ্ত করুন ॥ ৫৪ ॥

    मन्त्र (बांग्ला) - দে॒বেভ্যো॒ হি প্র॑থ॒মং য়॒জ্ঞিয়ে॑ভ্যোऽমৃত॒ত্বꣳ সু॒বসি॑ ভা॒গমু॑ত্ত॒মম্ ।
    আদিদ্ দা॒মান॑ꣳ সবিত॒বূ্র্য᳖র্ণুষেऽনূচী॒না জী॑বি॒তা মানু॑ষেভ্যঃ ॥ ৫৪ ॥

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर - দেবেভ্য ইত্যস্য বামদেব ঋষিঃ । বিশ্বেদেবা দেবতাঃ । নিচৃৎ ত্রিষ্টুপ্ ছন্দঃ ।
    ধৈবতঃ স্বরঃ ॥

    इस भाष्य को एडिट करें
    Top