Loading...

मन्त्र चुनें

  • यजुर्वेद का मुख्य पृष्ठ
  • यजुर्वेद - अध्याय 33/ मन्त्र 83
    ऋषिः - मेधातिथिर्ऋषिः देवता - विश्वेदेवा देवताः छन्दः - निचृत्सतः पङ्क्तिः स्वरः - पञ्चमः
    18

    अ॒यंꣳ स॒हस्र॒मृषि॑भिः॒ सह॑स्कृतः समु॒द्रऽइ॑व पप्रथे।स॒त्यः सोऽअ॑स्य महि॒मा गृ॑णे॒ शवो॑ य॒ज्ञेषु॑ विप्र॒राज्ये॑॥८३॥

    स्वर सहित पद पाठ

    अ॒यम्। स॒हस्र॑म्। ऋषि॑भि॒रित्यृषि॑ऽभिः। सह॑स्कृतः। सहः॑कृत॒ इति॒ सहः॑ऽकृतः। स॒मु॒द्रःऽइ॒वेति॑ समु॒द्रःऽइ॑व। प॒प्र॒थे॒ ॥ स॒त्यः। सः। अ॒स्य॒। म॒हि॒मा। गृ॒णे॒। शवः॑। य॒ज्ञेषु॑। वि॒प्र॒राज्य॒ इति॑ विप्र॒ऽराज्ये॑ ॥८३ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    अयँ सहस्रमृषिभिः सहस्कृतः समुद्र इव पप्रथे । सत्यः सो अस्य महिमा गृणे शवो यज्ञेषु विप्रराज्ये ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    अयम्। सहस्रम्। ऋषिभिरित्यृषिऽभिः। सहस्कृतः। सहःकृत इति सहःऽकृतः। समुद्रःऽइवेति समुद्रःऽइव। पप्रथे॥ सत्यः। सः। अस्य। महिमा। गृणे। शवः। यज्ञेषु। विप्रराज्य इति विप्रऽराज्ये॥८३॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 33; मन्त्र » 83
    Acknowledgment

    पदार्थ -
    পদার্থঃ- হে মনুষ্যগণ ! যিনি (অয়ম্) এই সভাপতি রাজা (ঋষিভিঃ) বেদার্থবেত্তা রাজর্ষীদিগের সহ (সহস্রম্) অসংখ্য প্রকারের জ্ঞানপ্রাপ্ত (সহস্কৃতঃ) বল সহ সংযুক্ত (সত্যঃ) এবং শ্রেষ্ঠ ব্যবহার বা বিদ্বান্দিগের মধ্যে সুচতুর । (অস্য) ইহার (মহিমা) মহিমা (সমুদ্রইব) সমুদ্র বা অন্তরিক্ষ সদৃশ (পপ্রথে) প্রসিদ্ধ হয় তাহা হইলে (সঃ) সেই পূর্বোক্ত আমি প্রজা এই রাজার (য়জ্ঞেষু) সঙ্গত রাজকার্য্য এবং (বিপ্ররাজ্যে) বুদ্ধিমানদিগের রাজ্যে (শবঃ) বলের (গৃণে) স্তুতি করি ॥ ৮৩ ॥

    भावार्थ - ভাবার্থঃ- যে সব রাজাদি রাজপুরুষ বিদ্বান্দিগের সঙ্গে প্রীতিসম্পন্ন, সাহসী, সত্যগুণ, কর্ম্ম, স্বভাবযুক্ত বুদ্ধিমানের রাজ্যে অধিকার প্রাপ্ত সঙ্গত ন্যায় ও বিনয় দ্বারা যুক্ত কর্ম্ম করিবে তাহাদের আকাশ সদৃশ কীর্ত্তি বিস্তার লাভ করে ॥ ৮৩ ॥

    मन्त्र (बांग्ला) - অ॒য়ংꣳ স॒হস্র॒মৃষি॑ভিঃ॒ সহ॑স্কৃতঃ সমু॒দ্রऽই॑ব পপ্রথে ।
    স॒ত্যঃ সোऽঅ॑স্য মহি॒মা গৃ॑ণে॒ শবো॑ য়॒জ্ঞেষু॑ বিপ্র॒রাজ্যে॑ ॥ ৮৩ ॥

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर - অয়মিত্যস্য মেধাতিথির্ঋষিঃ । বিশ্বেদেবা দেবতাঃ । নিচৃৎসতঃ পংক্তিশ্ছন্দঃ ।
    পঞ্চমঃ স্বরঃ ॥

    इस भाष्य को एडिट करें
    Top