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  • यजुर्वेद - अध्याय 33/ मन्त्र 56
    ऋषिः - मधुच्छन्दा ऋषिः देवता - इन्द्रवायू देवते छन्दः - गायत्री स्वरः - षड्जः
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    इन्द्र॑वायूऽइ॒मे सु॒ताऽउप॒ प्रयो॑भि॒रा ग॑तम्। इन्द॑वो वामु॒शन्ति॒ हि॥५६॥

    स्वर सहित पद पाठ

    इन्द्र॑वायूऽइ॒तीन्द्र॑वायू। इ॒मे। सु॒ताः। उप॑। प्रयो॑भि॒रिति॒ प्रयः॑ऽभिः। आ। ग॒त॒म्। इन्द॑वः। वा॒म्। उ॒शन्ति॑। हि ॥५६ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    इन्द्रवायूऽइमे सुताऽउप प्रयोभिरागतम् । इन्दवो वामुशन्ति हि ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    इन्द्रवायूऽइतीन्द्रवायू। इमे। सुताः। उप। प्रयोभिरिति प्रयःऽभिः। आ। गतम्। इन्दवः। वाम्। उशन्ति। हि॥५६॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 33; मन्त्र » 56
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    पदार्थ -
    পদার্থঃ–হে (ইন্দ্রবায়ূ) বিদ্যুৎ ও পবনের বিদ্যাবিদ্ বিদ্বান্গণ! তোমাদের জন্য (ইমে) এইগুলি (সুতাঃ) নিষ্পাদিত পদার্থ (হি) যে কারণে (ইন্দবঃ) সোমাদি ওষধিসমূহের রস (বাম্) তোমাকে (উশন্তি) কামনা করে অর্থাৎ তাহারা তোমার যোগ্য, ইহাকে (প্রয়োভিঃ) উত্তমগুণ, কর্ম, স্বভাবের সহিত তাহাদেরকে (উপ, আ, গতম্) নিকট হইতে উত্তম প্রকার প্রাপ্ত হও ॥ ৫৬ ॥

    भावार्थ - ভাবার্থঃ–হে বিদ্বান্গণ! যে কারণে তোমরা আমাদের উপর কৃপা কর এইজন্য সমস্ত লোকেরা তোমার সঙ্গে সাক্ষাৎ করিতে ইচ্ছুক ॥ ৫৬ ॥

    मन्त्र (बांग्ला) - ইন্দ্র॑বায়ূऽই॒মে সু॒তাऽউপ॒ প্রয়ো॑ভি॒রা গ॑তম্ ।
    ইন্দ॑বো বামু॒শন্তি॒ হি ॥ ৫৬ ॥

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर - ইন্দ্রবায়ূ ইত্যস্য মধুচ্ছন্দা ঋষিঃ । ইন্দ্রবায়ূ দেবতে । গায়ত্রী ছন্দঃ ।
    ষড্জঃ স্বরঃ ॥

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