यजुर्वेद - अध्याय 20/ मन्त्र 89
इन्द्राया॑हि॒ तूतु॑जान॒ऽउप॒ ब्रह्मा॑णि हरिवः। सु॒ते द॑धिष्व न॒श्चनः॑॥८९॥
स्वर सहित पद पाठइन्द्र॑। आ। या॒हि॒। तूतु॑जानः। उप॑। ब्रह्मा॑णि। ह॒रि॒व॒ इति॑ हरिऽवः। सु॒ते। द॒धि॒ष्व॒। नः॒॑। चनः॑ ॥८९ ॥
स्वर रहित मन्त्र
इन्द्रा याहि तूतुजानऽउप ब्रह्माणि हरिवः । सुते दधिष्व नश्चनः ॥
स्वर रहित पद पाठ
इन्द्र। आ। याहि। तूतुजानः। उप। ब्रह्माणि। हरिव इति हरिऽवः। सुते। दधिष्व। नः। चनः॥८९॥
विषय - इन्द्र सुत्रामा का आदर कर ।
भावार्थ -
हे (हरिवः) ज्ञानी पुरुषों और वीर अश्वारोहियों के स्वामिन्! हे (इन्द्र) राजन् ! तू (तूतुजानः) राष्ट्र के कार्यों को विद्युत् के समान शीघ्रता से करता हुआ (ब्रह्माणि) अधिकारों, वीर्यों और ऐश्वर्यों को (उप आयाहि) प्राप्त कर । (नः) हमारे (सुते) अभिषेक द्वारा प्राप्त राष्ट्र में भोग्य ऐश्वर्य और अन्न को (दधिष्व) धारण कर ।
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर - गायत्री । षड्जः ॥
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