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  • यजुर्वेद - अध्याय 20/ मन्त्र 86
    ऋषिः - मधुच्छन्दा ऋषिः देवता - सरस्वती देवता छन्दः - गायत्री स्वरः - षड्जः
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    म॒होऽअर्णः॒ सर॑स्वती॒ प्र चे॑तयति के॒तुना॑। धियो॒ विश्वा॒ वि रा॑जति॥८६॥

    स्वर सहित पद पाठ

    म॒हः। अर्णः॑। सर॑स्वती। प्र। चे॒त॒य॒ति॒। के॒तुना॑। धियः॑। विश्वा॑। वि। रा॒ज॒ति॒ ॥८६ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    महोऽअर्णः सरस्वती प्र चेतयति केतुना । धियो विश्वा विराजति ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    महः। अर्णः। सरस्वती। प्र। चेतयति। केतुना। धियः। विश्वा। वि। राजति॥८६॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 20; मन्त्र » 86
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    भावार्थ -
    (सरस्वती) वेदवाणी (केतुना) अपने महान् ज्ञान से (महः अर्णः) बड़े भारी ज्ञान या शब्दसागर को ( प्र चेतयति) प्रकट करती है । और (विश्वाः धियः) समस्त कर्मकाण्डों, कर्मों, कर्त्तव्यों को (वि राजति) प्रकाशित करती है । उसी प्रकार विद्वत्सभा (केतुना) विज्ञान बल से (महः अर्णः) बड़ा ज्ञान प्रकट करती है । राष्ट्र के (विश्वा धियः) समस्त कर्मों या समस्त बुद्धियों, बुद्धिमान् पुरुषों या सामर्थ्यौं को (वि राजति) विविध रूपों में प्रकाशित करती है ।

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर - गायत्री । षड्जः ॥

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