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  • यजुर्वेद - अध्याय 20/ मन्त्र 73
    ऋषिः - विदर्भिर्ऋषिः देवता - अश्विसरस्वतीन्द्रा देवताः छन्दः - निचृदनुष्टुप् स्वरः - गान्धारः
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    अ॒श्विना॒ गोभि॑रिन्द्रि॒यमश्वे॑भिर्वी॒र्यं बल॑म्।ह॒विषेन्द्र॒ꣳ सर॑स्वती॒ यज॑मानमवर्द्धयन्॥७३॥

    स्वर सहित पद पाठ

    अ॒श्विना॑। गोभिः॑। इ॒न्द्रि॒यम्। अश्वे॑भिः। वी॒र्य्य᳕म्। बल॑म्। ह॒विषा॑। इन्द्र॑म्। सर॑स्वती। यज॑मानम्। अ॒व॒र्द्ध॒य॒न् ॥७३ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    अश्विना गोभिरिन्द्रियमश्वेभिर्वीर्यम्बलम् । हविषेन्द्रँ सरस्वती यजमानमवर्दयन् ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    अश्विना। गोभिः। इन्द्रियम्। अश्वेभिः। वीर्य्यम्। बलम्। हविषा। इन्द्रम्। सरस्वती। यजमानम्। अवर्द्धयन्॥७३॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 20; मन्त्र » 73
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    भावार्थ -
    (गोभि:) दुग्धों से जिस प्रकार शरीर में इन्द्रिय सामर्थ्यं बढ़ता है और (अश्वेभिः) व्यापक प्राणों से वीर्य और बल बढ़ता है उसी प्रकार (अश्विनौ) राज्य के दोनों मुख्य पदाधिकारी क्रम से (गोभिः) गौ आदि पालतू पशुओं से ( इन्द्रियम् ) राजा के ऐश्वर्य को बढ़ावें और (अश्वेभिः) घोड़ों से या घुड़सवारों से ( वीर्यम् ) शरीर में वीर्य के समान राष्ट्र में तेज और वीरकर्म से युक्त ( बलम् ) सेना के बल की वृद्धि करें । और (सरस्वती) उत्तम ज्ञान वाली विद्वत्सभा ( यजमानम् ) सबके स्नेही, राज्य के व्यवस्थापक, सर्वाश्रयप्रद ( इन्द्रम् ) इन्द्र, राजा को (हविषा ) आदान योग्य रूप से ( अवर्धयन् ) वृद्धि करें ।

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर - [ ७३–७५ ] अश्विसरस्वतीन्द्राः देवताः । अनुष्टुप् । गान्धारः ॥

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