ऋग्वेद - मण्डल 6/ सूक्त 16/ मन्त्र 24
ऋषिः - भरद्वाजो बार्हस्पत्यः
देवता - अग्निः
छन्दः - निचृद्गायत्री
स्वरः - षड्जः
ता राजा॑ना॒ शुचि॑व्रतादि॒त्यान्मारु॑तं ग॒णम्। वसो॒ यक्षी॒ह रोद॑सी ॥२४॥
स्वर सहित पद पाठता । राजा॑ना । शुचि॑ऽव्रता । आ॒दि॒त्यान् । मारु॑तम् । ग॒णम् । वसो॒ इति॑ । यक्षि॑ । इ॒ह । रोद॑सी॒ इति॑ ॥
स्वर रहित मन्त्र
ता राजाना शुचिव्रतादित्यान्मारुतं गणम्। वसो यक्षीह रोदसी ॥२४॥
स्वर रहित पद पाठता। राजाना। शुचिऽव्रता। आदित्यान्। मारुतम्। गणम्। वसो इति। यक्षि। इह। रोदसी इति ॥२४॥
ऋग्वेद - मण्डल » 6; सूक्त » 16; मन्त्र » 24
अष्टक » 4; अध्याय » 5; वर्ग » 25; मन्त्र » 4
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अष्टक » 4; अध्याय » 5; वर्ग » 25; मन्त्र » 4
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
विषयः
पुनर्मनुष्यैः किं कर्त्तव्यमित्याह ॥
अन्वयः
हे वसो ! त्वमिह ता शुचिव्रता राजानाऽऽदित्यान् मारुतं गणं रोदसी च यक्षि ॥२४॥
पदार्थः
(ता) तौ मित्रद्वर्त्तमानौ (राजाना) प्रकाशमानौ (शुचिव्रता) पवित्रकर्म्माणौ (आदित्यान्) द्वादश मासान् (मारुतम्) मरुतां मनुष्याणामिमम् (गणम्) समूहम् (वसो) शुभगुणवासयितः (यक्षि) सङ्गमय (इह) अस्मिन् संसारे (रोदसी) द्यावापृथिव्यौ ॥२४॥
भावार्थः
ये मनुष्या अध्यापकाऽध्येत्रादीन् सेवित्वा पदार्थविद्यां गृह्णन्ति ते सुखिनो भवन्ति ॥२४॥
हिन्दी (3)
विषय
फिर मनुष्यों को क्या करना चाहिये, इस विषय को कहते हैं ॥
पदार्थ
हे (वसो) श्रेष्ठ गुणों के वसानेवाले ! आप (इह) इस संसार में (ता) उन दोनों मित्र के सदृश वर्त्तमान (शुचिव्रता) पवित्र कर्म्मवाले (राजाना) प्रकाशमान हुए तथा (आदित्यान्) बारह महीनों और (मारुतम्) मनुष्य सम्बन्धी इस (गणम्) समहू को (रोदसी) अन्तरिक्ष और पृथिवी को (यक्षि) उत्तम प्रकार प्राप्त कराइये ॥२४॥
भावार्थ
जो मनुष्य पढ़ाने और पढ़नेवाले आदिकों की सेवा करके पदार्थविद्या को ग्रहण करते हैं, वे सुखी होते हैं ॥२४॥
विषय
राजा का कर्त्तव्य गृहस्थों का बसाना ।
भावार्थ
हे ( वसो ) सबके बसाने हारे ! तू ( शुचि-व्रता राजाना ) शुद्ध आचरण वाले, राजा के तुल्य कान्तिमानू, तेजस्वी ( रोदसी ) सूर्य पृथ्वी के समान पति पत्नी, वर वधू जनों को और ( आदित्यान् ) सूर्य की किरणों वा बारह मासों के समान सबको सुख देने वाले (आदित्यान् = अदितेः पुत्रान् ) भूमि के पालक जनों और ( मारुतं जनम् ) वायुवत् बलवान्, शत्रुमारक वीरों के समूह तथा सामान्य मनुष्यों को भी (इह ) इस अपने राष्ट्र में ( यक्षि ) एकत्र बसा ।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
४८ भरद्वाजो बार्हस्पत्य ऋषिः ।। अग्निर्देवता ॥ छन्दः – १, ६, ७ आर्ची उष्णिक् । २, ३, ४, ५, ८, ९, ११, १३, १४, १५, १७, १८, २१, २४, २५, २८, ३२, ४० निचृद्गायत्री । १०, १९, २०, २२, २३, २९, ३१, ३४, ३५, ३६, ३७, ३८, ३९, ४१ गायत्री । २६, ३० विराड्-गायत्री । १२, १६, ३३, ४२, ४४ साम्नीत्रिष्टुप् । ४३, ४५ निचृत्- त्रिष्टुप् । २७ आर्चीपंक्तिः । ४६ भुरिक् पंक्तिः । ४७, ४८ निचृदनुष्टुप् ॥ अष्टाचत्वारिंशदृचं सूक्तम् ॥
विषय
'मित्र, वरुण, आदित्य, मरुत् व रोदसी' से संपृक्त जीवन
पदार्थ
[१] हे (वसो) = जीवन में उत्तम निवास को प्राप्त करानेवाले प्रभो ! (इह) = इस जीवन में (रोदसी) = यक्षि द्यावापृथिवी को, उत्तम मस्तिष्क व शरीर को हमारे साथ जोड़िये । [२] (ता) = उन (राजाना) = जीवन को दीप्त बनानेवाले (शुचिव्रता) = पवित्र व्रतोंवाले मित्रावरुणों को, स्नेह व निर्देषता की देवताओं को हमारे साथ संगत करिये। (आदित्यान्) = सब उत्तमताओं का आदान करनेवाले अदिति के पुत्रों को, अदीना देव माता के पुत्रों को, दिव्य गुणों को हमारे साथ जोड़िये तथा मारुतं गणम् = इस प्राणों के समूह को हमारे साथ जोड़नेवाले होइये । हम प्राणायाम द्वारा इन प्राणों की शक्ति को बढ़ा पायें।
भावार्थ
भावार्थ- प्रभु हमारे जीवन में स्नेह व निर्देषता के द्वारा पवित्र व्रतों को प्राप्त कराएँ । हमें दिव्य गुणों व प्राणशक्ति को देनेवाले हों, हमारे मस्तिष्क व शरीर को उत्तम बनाएँ ।
मराठी (1)
भावार्थ
जी माणसे अध्यापक, अध्येता इत्यादींची सेवा करून पदार्थ विद्या ग्रहण करतात ती सुखी होतात. ॥ २४ ॥
इंग्लिश (1)
Meaning
Agni, leading light of the world, giver of peaceful and progressive settlement, bring up and honour in unison those refulgent powers of purity and self discipline of universal law, Mitra and Varuna, sun and moon with coolness of the oceans, love and friendship, brilliant divinities of nature and humanity, human and natural forces vibrant as winds, and the wealth of heaven and earth on the vedi of our corporate programmes of yajna.
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