ऋग्वेद - मण्डल 6/ सूक्त 16/ मन्त्र 43
ऋषिः - भरद्वाजो बार्हस्पत्यः
देवता - अग्निः
छन्दः - निचृत्त्रिष्टुप्
स्वरः - धैवतः
अग्ने॑ यु॒क्ष्वा हि ये तवाश्वा॑सो देव सा॒धवः॑। अरं॒ वह॑न्ति म॒न्यवे॑ ॥४३॥
स्वर सहित पद पाठअग्ने॑ । यु॒क्ष्व । हि । ये । तव॑ । अश्वा॑सः । दे॒व॒ । सा॒धवः॑ । अर॑म् । वह॑न्ति । म॒न्यवे॑ ॥
स्वर रहित मन्त्र
अग्ने युक्ष्वा हि ये तवाश्वासो देव साधवः। अरं वहन्ति मन्यवे ॥४३॥
स्वर रहित पद पाठअग्ने। युक्ष्व। हि। ये। तव। अश्वासः। देव। साधवः। अरम्। वहन्ति। मन्यवे ॥४३॥
ऋग्वेद - मण्डल » 6; सूक्त » 16; मन्त्र » 43
अष्टक » 4; अध्याय » 5; वर्ग » 29; मन्त्र » 3
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अष्टक » 4; अध्याय » 5; वर्ग » 29; मन्त्र » 3
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
विषयः
पुनस्तमेव विषयमाह ॥
अन्वयः
हे देवाग्ने ! ये साधवस्तवाश्वासो मन्यवेऽरं वहन्ति तान् हि त्वं यानेषु युक्ष्वा ॥४३॥
पदार्थः
(अग्ने) शिल्पविद्याविद्विद्वन् (युक्ष्वा) संयोजय। अत्र द्व्यचोऽतस्तिङ इति दीर्घः। (हि) (ये) (तव) (अश्वासः) वेगादयो गुणाः (देव) दिव्यसुखप्रद (साधवः) साधुगतयः (अरम्) अलम् (वहन्ति) प्राप्नुवन्ति (मन्यवे) क्रोधाय ॥४३॥
भावार्थः
ये विद्वांसोऽग्न्यादियोजनं यानेषु कुर्वन्ति ते पूर्णकामा भवन्ति ॥४३॥
हिन्दी (3)
विषय
फिर उसी को कहते हैं ॥
पदार्थ
हे (देव) श्रेष्ठ सुख के देने और (अग्ने) शिल्प क्रिया की कुशलता को जाननेवाले विद्वन् ! (ये) जो (साधवः) श्रेष्ठ गमनवाले (तव) आपके (अश्वासः) वेग आदि गुण (मन्यवे) क्रोध के लिये (अरम्) समर्थ को (वहन्ति) प्राप्त होते हैं उनको (हि) ही आप वाहनों में (युक्ष्वा) संयुक्त करिये ॥४३॥
भावार्थ
जो विद्वान् जन अग्नि आदि का योजन वाहनों में करते हैं, वे पूर्ण मनोरथवाले होते हैं ॥४३॥
विषय
उत्तमों की उत्तम कार्यों में नियुक्ति ।
भावार्थ
हे ( अग्ने ) अग्रणी तेजस्वी नायक ! ( ये हि ) जो भी ( तव ) तेरे ( अश्वासः ) अश्वों के समान वेग से जाने वाले, (साधवः) कार्य साधन में चतुर पुरुष ( मन्यवे ) तेरे मन्यु अर्थात् शत्रु के प्रति संग्रामादि वा तेरे ( अभिमत ) उद्देश्य को पूर्ण करने के लिये ( अरं वहन्ति ) खूब कार्यभार उठाते हैं उन को तू ( युक्ष्व ) उचित स्थान पर नियुक्त कर ।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
४८ भरद्वाजो बार्हस्पत्य ऋषिः ।। अग्निर्देवता ॥ छन्दः – १, ६, ७ आर्ची उष्णिक् । २, ३, ४, ५, ८, ९, ११, १३, १४, १५, १७, १८, २१, २४, २५, २८, ३२, ४० निचृद्गायत्री । १०, १९, २०, २२, २३, २९, ३१, ३४, ३५, ३६, ३७, ३८, ३९, ४१ गायत्री । २६, ३० विराड्-गायत्री । १२, १६, ३३, ४२, ४४ साम्नीत्रिष्टुप् । ४३, ४५ निचृत्- त्रिष्टुप् । २७ आर्चीपंक्तिः । ४६ भुरिक् पंक्तिः । ४७, ४८ निचृदनुष्टुप् ॥ अष्टाचत्वारिंशदृचं सूक्तम् ॥
विषय
'साधवः अश्वासः '
पदार्थ
[१] (अग्ने) = हे परमात्मन् ! (देव) = प्रकाशमय प्रभो ! (ये) = जो (तव) = आपके (हि) = निश्चय से (साधवः) = जीवनयात्रा में सब कार्यों को सिद्ध करनेवाले (अश्वास:) = इन्द्रियाश्व हैं, उन्हें युक्ष्व हमारे इस शरीररथ में जोतिये । [२] आपके अनुग्रह से हमारा शरीर-रथ उन इन्द्रियाश्वों से युक्त हो जो हमें (मन्यवे) = ज्ञान प्राप्ति के लिये (अरम्) = खूब ही वहन्ति ले चलते हैं। हमारी इन्द्रियाँ अपनेअपने विषयों का ग्रहण करती हुई ज्ञानवृद्धि का साधन बनें।
भावार्थ
भावार्थ- हे प्रभो ! हमें उन इन्द्रियाश्वों को प्राप्त कराइये जो हमारी ज्ञानवृद्धि का कारण बनें।
मराठी (1)
भावार्थ
जे विद्वान लोक अग्नी इत्यादींना वाहनात वापरतात त्यांचे मनोरथ पूर्ण होतात. ॥ ४३ ॥
इंग्लिश (2)
Meaning
Agni, leading light of knowledge and power, generous creator and giver, yoke those motive powers of yours to the chariot which are best and fastest and which transport you to the destination of your love and passion gracefully without fail.
Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]
The same subject is continued.
Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]
O great technologist ! giver of the divine happiness, harness speed and other qualities which are of good movement and which can accomplish many works in the vehicles when used by a man of righteous indignation or worth.
Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]
N/A
Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]
Those scientists who apply Agni (fire and electricity) and other things in the vehicles are able to fulfil their desires.
Foot Notes
(अग्ने) शिल्पविद्याविद्विद्वन् । अगि-गतौ (भ्वा० ) गतेत्रिष्वर्थेष्वत्र ज्ञानार्थ ग्रहणम् = A highly learned person, knower of the science and technology. (अश्वास:) वेगादयो गुणा: । अश्वास: युक्ष्व इत्यादि प्रसङ्ग वशाच्छिल्प विद्याविग्रहणम् । अशूङ् केषांसत्कार: कर्त्तव्य इत्यारु = Speed and other qualities.
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