ऋग्वेद - मण्डल 6/ सूक्त 16/ मन्त्र 29
सु॒वीरं॑ र॒यिमा भ॑र॒ जात॑वेदो॒ विच॑र्षणे। ज॒हि रक्षां॑सि सुक्रतो ॥२९॥
स्वर सहित पद पाठसु॒ऽवीर॑म् । र॒यिम् । आ । भ॒र॒ । जात॑ऽवेदः॑ । विऽच॑र्षणे । ज॒हि । रक्षां॑सि । सु॒ऽक्र॒तो॒ इति॑ सुऽक्रतो ॥
स्वर रहित मन्त्र
सुवीरं रयिमा भर जातवेदो विचर्षणे। जहि रक्षांसि सुक्रतो ॥२९॥
स्वर रहित पद पाठसुऽवीरम्। रयिम्। आ। भर। जातऽवेदः। विऽचर्षणे। जहि। रक्षांसि। सुऽक्रतो इति सुऽक्रतो ॥२९॥
ऋग्वेद - मण्डल » 6; सूक्त » 16; मन्त्र » 29
अष्टक » 4; अध्याय » 5; वर्ग » 26; मन्त्र » 4
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अष्टक » 4; अध्याय » 5; वर्ग » 26; मन्त्र » 4
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
विषयः
पुना राज्ञं किं कर्त्तव्यमित्याह ॥
अन्वयः
हे जातवेदो विचर्षणे सुक्रतो ! राजँस्त्वं सुवीरं रयिमाऽऽभर रक्षांसि जहि ॥२९॥
पदार्थः
(सुवीरम्) शोभना वीरा येन भवन्ति तम् (रयिम्) धनम् (आ) (भर) (जातवेदः) जातप्रज्ञानबल (विचर्षणे) तेजस्विन् (जहि) (रक्षांसि) दुष्टाचारान् (सुक्रतो) सुष्ठु प्रज्ञाकर्म्मयुक्त ॥२९॥
भावार्थः
राज्ञा सदैव धनादिना धार्मिका विपश्चितः क्षत्रियकुलोद्भवा वीरा संरक्ष्य दुष्टाः सदा तिरस्करणीयाः ॥२९॥
हिन्दी (4)
विषय
फिर राजा को क्या करना चाहिये, इस विषय को कहते हैं ॥
पदार्थ
हे (जातवेदः) उत्पन्न हुआ प्रज्ञानबल जिनके उन (विचर्षणे) तेजस्वी तथा (सुक्रतो) उत्तम बुद्धि और कर्म्म से युक्त राजन् ! आप (सुवीरम्) सुन्दर वीर जिससे होते हैं उस (रयिम्) धन को (आ, भर) सब ओर से धारण करिये और (रक्षांसि) दुष्टाचारियों को (जहि) नष्ट करिये ॥२९॥
भावार्थ
राजा को चाहिये कि सदा ही धन आदि से धार्मिक विद्वान् और क्षत्रिय कुल में हुए वीरों की उत्तम प्रकार रक्षा करे और दुष्टों का सदा तिरस्कार करे ॥२९॥
पदार्थ
पदार्थ = हे ( जातवेदः ) = वेद प्रकट करनेवाले प्रभो अथवा अनेक प्रकार का धन उत्पन्न कर्त्ता ईश्वर ! ( सुवीरम् ) = उत्तम वीरों से युक्त ( रयिम् ) = धन को ( आभर ) = दो ( विचर्षणे ) = हे सर्वज्ञ सर्वद्रष्टा परमात्मन् ! ( सुक्रतो ) = हे जगत् उत्पादन पालनादि उत्तम और दिव्य कर्म करनेवाले प्रभो ! ( रक्षांसि ) = दुष्ट राक्षसों का ( जहि ) = नाश कर ।
भावार्थ
भावार्थ = हे परमात्मन्! दानवीर कर्मवीरादि पुरुषों से युक्त धन हमें प्रदान करो। हम दीन मलीन पराधीन दरिद्री कभी न हों । हे महासमर्थ प्रभो ! दुष्ट राक्षसों का दुष्ट स्वभाव छुड़ा कर, उनको धर्मात्मा श्रेष्ठ बनाओ, जिससे वे लोग भी किसी की कभी हानि न कर सकें ।
विषय
दुष्टों का उत्पीडन
भावार्थ
हे ( जातवेदः ) धनस्वामिन् ! हे ज्ञानवन् ! हे ( विचर्षणे ) विविध मनुष्यों के स्वामिन् ! हे विशेष रूप से तत्वज्ञान के देखने हारे ! तू ( सु-वीरं ) उत्तम पुत्रों, वीरों से युक्त ( रयिम् ) ऐश्वर्य को ( आ भर ) प्राप्त कर और हे ( सुक्रतो ) उत्तम कर्म करने में समर्थ ! तू ( रक्षांसि ) दुष्ट, विघ्नकारी पुरुषों को ( जहि ) नाश कर, उनको दण्ड दे ।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
४८ भरद्वाजो बार्हस्पत्य ऋषिः ।। अग्निर्देवता ॥ छन्दः – १, ६, ७ आर्ची उष्णिक् । २, ३, ४, ५, ८, ९, ११, १३, १४, १५, १७, १८, २१, २४, २५, २८, ३२, ४० निचृद्गायत्री । १०, १९, २०, २२, २३, २९, ३१, ३४, ३५, ३६, ३७, ३८, ३९, ४१ गायत्री । २६, ३० विराड्-गायत्री । १२, १६, ३३, ४२, ४४ साम्नीत्रिष्टुप् । ४३, ४५ निचृत्- त्रिष्टुप् । २७ आर्चीपंक्तिः । ४६ भुरिक् पंक्तिः । ४७, ४८ निचृदनुष्टुप् ॥ अष्टाचत्वारिंशदृचं सूक्तम् ॥
विषय
जहि रक्षांसि सुक्रतो
पदार्थ
[१] हे (जातवेदः) = सर्वज्ञ व सर्वधन, (विचर्षणे) = सब के द्रष्टा, सबका ध्यान करनेवाले प्रभो ! (सुवीरम्) = शोभन वीर सन्तानोंवाले (रयिम्) = धन को (आभर) = हमें सर्वथा प्राप्त कराइये । सामान्यतः धनाधिकृत ऐश्वर्य में पलने के कारण आरामपसन्दगी को प्राप्त कराके सन्तानों के जीवनों को विगाड़ देता है। हमारा धन 'सुवीर' हो, वीर सन्तानोंवाला हो। [२] हे (सुक्रतो) = शोभन कर्म, शोभन प्रज्ञान व शोभन शक्तिवाले प्रभो! आप (रक्षांसि जहि) = राक्षसीभावों को विनष्ट करिये । 'क्रतु' ही हमें इन आसुरभावों को जीवन में समर्थ करता है।
भावार्थ
भावार्थ- हमारा धन वीर सन्तानोंवाला हो तथा हम राक्षसीभावों को विनष्ट करनेवाले हों ।
मराठी (1)
भावार्थ
राजाने सदैव धन इत्यादींनी धार्मिक विद्वान व क्षत्रिय कुळात असलेल्या वीरांचे उत्तम प्रकारे रक्षण करावे व दुष्टांचा तिरस्कार करावा. ॥ २९ ॥
इंग्लिश (2)
Meaning
Lord omniscient, all immanent of universal vision, bring us the wealth of life coupled with noble strength and brave progeny. O lord of creative action, eliminate the cruel and wicked forces of negativity in the interest of progress.
Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]
What should king do is told.
Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]
O king ! you are endowed with knowledge and strength. O full of splendor ! bring us from all sides, riches with heroes. O most wise and doer good deeds! slay you the wicked persons.
Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]
N/A
Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]
A king should always protect with wealth, the righteous, highly learned and brave persons born in Kshatriya ( warriors) family and should subdue the wicked.
Translator's Notes
It is note-worthy that the epithet जातवेदा: has been used for Agni in the mantra which Prof. Wilson has translated as 'all-beholder' and Griffith as 'most wise' and yet they think, it is to the inanimate fire that the prayer is addressed. "How strange and absurd.
Foot Notes
(जातवेदः) जातप्रज्ञानबल । जातवेदाः कस्मात् जातानि वेदेति जातवेदाः (NKT 7, 5, 19 ) = Possessor of knowledge and strength. (विचर्षणे) तेजस्विन् । विश्वचर्षणिः-पश्यतिकर्मा तस्माद् विचर्षणिः विशेषेण प्रष्टव्यः तेजस्वी यथा शरीरं मे विचर्षणम् (तैतिरीयोपनिषदि इत्यादौ (NKT 3, 11 ) 3 = Full of splendor.
बंगाली (1)
পদার্থ
সুবীরং রয়িমাভর জাতবেদো বিচির্ষণে।
জহি রক্ষাংসি সুক্রতো।।১৭।।
(ঋগ্বেদ ৬।১৬।২৯)
পদার্থঃ হে (জাতবেদঃ) বেদ প্রকাশক ঈশ্বর! আমাদের (সুবীরম্) উত্তম বীরপ্রদ (রয়িম্) ঐশ্বর্য (আভর) দান করো। (বিচর্ষণে) হে সর্বজ্ঞ সর্বদ্রষ্টা পরমাত্মা! (সুক্রতো) হে জগৎ উৎপাদন-পালনাদি উত্তম এবং দিব্য কর্মকারী প্রভু! (রক্ষাংসি) দুষ্ট রাক্ষস প্রবৃত্তিকে (জহি) নাশ তথা দূরীভূত করো।
ভাবার্থ
ভাবার্থঃ হে পরমাত্মা! দানবীর, বীরপ্রদ ধন আমাদের প্রদান করো। আমরা মলিন, পরাধীন, দরিদ্র কখনো যেন না হই। হে মহাসমর্থ পরমাত্মা! দুষ্ট রুক্ষস্বভাব সম্পন্ন ব্যক্তির দুষ্ট স্বভাব ছাড়িয়ে তাদের শ্রেষ্ঠ ধর্মাত্মা করো, যাতে সেই সকল ব্যক্তি কারো কোন ক্ষতি করতে না পারে।।১৭।।
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