अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 1/ मन्त्र 13
ऋषिः - ब्रह्मा
देवता - अध्यात्मम्, रोहितः, आदित्यः
छन्दः - अतिशक्वरगर्भा अतिजगती
सूक्तम् - अध्यात्म प्रकरण सूक्त
52
रोहि॑तो य॒ज्ञस्य॑ जनि॒ता मुखं॑ च॒ रोहि॑ताय वा॒चा श्रोत्रे॑ण॒ मन॑सा जुहोमि। रोहि॑तं दे॒वा य॑न्ति सुमन॒स्यमा॑नाः॒ स मा॒ रोहैः॑ सामि॒त्यै रो॑हयतु ॥
स्वर सहित पद पाठरोहि॑त: । य॒ज्ञस्य॑ । ज॒नि॒ता । मुख॑म् । च॒ । रोहि॑ताय । वा॒चा । श्रोत्रे॑ण । मन॑सा । जु॒हो॒मि॒ । रोहि॑तम् । दे॒वा: । य॒न्ति॒ । सु॒ऽम॒न॒स्यमा॑ना: । स: । मा॒ । रोहै॑: । सा॒म्ऽइ॒त्यै । रो॒ह॒य॒तु॒ ॥१.१३॥
स्वर रहित मन्त्र
रोहितो यज्ञस्य जनिता मुखं च रोहिताय वाचा श्रोत्रेण मनसा जुहोमि। रोहितं देवा यन्ति सुमनस्यमानाः स मा रोहैः सामित्यै रोहयतु ॥
स्वर रहित पद पाठरोहित: । यज्ञस्य । जनिता । मुखम् । च । रोहिताय । वाचा । श्रोत्रेण । मनसा । जुहोमि । रोहितम् । देवा: । यन्ति । सुऽमनस्यमाना: । स: । मा । रोहै: । साम्ऽइत्यै । रोहयतु ॥१.१३॥
भाष्य भाग
हिन्दी (4)
विषय
जीवात्मा और परमात्मा का उपदेश।
पदार्थ
(रोहितः) सबका उत्पन्न करनेवाला [परमेश्वर] (यज्ञस्य) यज्ञ [देवपूजा, संगतिकरण और दानव्यवहार] का (जनिता) उत्पन्न करनेवाला (च) और (मुखम्) मुख [मुखिया] है, (वाचा) वाणी से, (श्रोत्रेण) श्रवण से और (मनसा) मन से (रोहिताय) सबके उत्पन्न करनेवाले [परमेश्वर की सेवा] के लिये (जुहोमि) मैं भोजन करता हूँ। (सुमनस्यमानाः) शुभचिन्तक (देवाः) विजय चाहनेवाले लोग (रोहितम्) सबके उत्पन्न करनेवाले [परमेश्वर] को (यन्ति) प्राप्त होते हैं, (सः) वह [परमेश्वर] (मा) मुझको (रोहैः) ऊँचाइयों के साथ (सामित्यै) समिति [संगति] के लिये (रोहयतु) ऊँचा करे ॥१३॥
भावार्थ
जो मनुष्य सब श्रेष्ठ व्यवहारों के उपदेशक परमेश्वर की पूरी भक्ति करते हैं, वे शूरवीरों के समान अनेक प्रकार उन्नति करके श्रेष्ठ सभापति होते हैं ॥१३॥
टिप्पणी
१३−(रोहितः) (यज्ञस्य) देवपूजासंगतिकरणदानव्यवहारस्य (जनिता) उत्पादकः (मुखम्) प्रधानः (च) (रोहिताय) परमेश्वरोपासनाय (वाचा) वाण्या (श्रोत्रेण) श्रवणेन (मनसा) चित्तेन (जुहोमि) हु अदने। अन्नं करोमि (रोहितम्) (देवाः) विजिगीषवः (यन्ति) प्राप्नुवन्ति (सुमनस्यमानाः) अ० १।३५।१। शुभचिन्तकाः (सः) परमेश्वरः (मा) माम् (रोहैः) उन्नतिभिः (सामित्यै) छान्दसो दीर्घः। समित्यै। संगतये (रोहयतु) उन्नयतु ॥
विषय
सामित्यै
पदार्थ
१. (रोहित:) = वह तेजस्वी, सदावृद्ध प्रभु (यज्ञस्य जनिता मुखंच) = यज्ञ को जन्म देनेवाला व इसका प्रवर्तक है-मुखिया है। सर्वप्रथम सर्वमहान् यज्ञ के करनेवाले प्रभु ही हैं। इस रोहिताय-तेजस्वी, सदावृद्ध प्रभु के लिए वाचा (श्रोत्रेण मनसा) = वाणी, श्रोत्र व मन से (जुहोमि) = मैं अपना अर्पण करता हूँ। मैं वाणी से प्रभु के स्तोत्रों का गायन करता हूँ, मेरे कान प्रभुस्तोत्रों का ही श्रवण करते हैं और मन से मैं प्रभु के गुणों व महिमा का ही स्मरण व चिन्तन करता हैं। २. इसप्रकार (समनस्यमानाः) = उत्तम मनवाले होते हुए देवाः देववृत्ति के पुरुष (रोहितं यन्ति) = तेजस्वी, सदावृद्ध प्रभु को प्राप्त करते हैं। (सः) = वह रोहित प्रभु (मा) = मुझे (रोहै:) = सब प्रकार के आरोहणों के द्वारा शरीर के स्वास्थ्य, मन की निर्मलता व बुद्धि की तीव्रता के द्वारा (सामित्यै) = [सम् इति] अपने साथ मेल के लिए-ब्रह्मसंस्पर्श के लिए (रोहयतु) = पृथिवी से अन्तरिक्ष में, अन्तरिक्ष से द्युलोक में, द्युलोक से ब्रह्मलोक में आरूढ़ करे। 'पृष्ठात् पृथिव्या हमन्तरिक्षमारूहमन्तरिक्षाविमारुहं दिवो नाकस्य पृष्ठात् स्वयोतिरगामहम्'। सुखेन ब्रह्मसंस्पर्शमत्यन्तं सुखमश्नुते'।
भावार्थ
प्रभु यज्ञों के उपदेष्टा हैं। यज्ञों को करते हुए तथा उन यज्ञों को प्रभु के प्रति अर्पण करते हुए हम प्रभु को प्राप्त करें, उन्नत होते हुए ब्रह्मसंस्पर्शवाले बनें।
भाषार्थ
(रोहितः) सर्वोपरि आरूढ़ परमेश्वर (यज्ञस्य) यज्ञ का (जनिता) जन्मदाता (च) तथा (मुखम्) उपदेष्टा है, (रोहिताय) सर्वोपरि आरूढ़ परमेश्वर के प्रति (वाचा) स्तुति वचनों द्वारा, (श्रोत्रेण मनसा) श्रवण और मनन द्वारा, (जुहोमि) मैं अपने आप को समर्पित करता हूं। (देवाः) देव कोटि के लोग (सुमनस्यमानाः) सुप्रसन्नचित्त हो कर या उत्तमविधि से मनन करते हुए (रोहितम्) सर्वोपरि आरूढ़ परमेश्वर को (यन्ति) प्राप्त होते हैं। (सः) वह परमेश्वर (सामित्यैः) राजसभा के सदस्यों के साथ (मा) मुझ राजा को (रोहैः) उन्नतियों द्वारा (रोहयतु) समुन्नत करे।
टिप्पणी
[यज्ञस्य = संसार-यज्ञ या द्रव्ययज्ञ। सामित्यैः= समिति (राजसभा) के सदस्य राजवर्ग (अथर्व० १२।१।५६)]।
विषय
‘रोहित’ रूप से परमात्मा और राजा का वर्णन।
भावार्थ
(रोहितः) रोहित सर्वोत्पादक परमात्मा (यज्ञस्य) यज्ञ का (जनिता) उत्पादक और (मुखम् च) मुख अर्थात् उसको प्रारम्भ करने हारा है। (उस) सर्वोत्पादक परमात्मा को मैं (वाचा) वाणी से और (श्रोत्रेण) कानों से और (मनसा) मन, चित्त से (जुहोमि) अपने भीतर धारण करता हूं उसकी उपासना करता हूं। (देवाः) दिव्य प्रकाश और ज्ञान से युक्त विद्वान् पुरुष (सुमनस्यमानाः) शुभ, शुद्ध संकल्प, उत्तम मन होकर (तम् रोहितम्) उस सर्वोत्कृष्ट, सर्वोत्पादक परमात्मा के ही शरण में (यन्ति) प्राप्त होते हैं (सः) वह (रोहैः) नाना जन्मों द्वारा या (मा) मुझे (साम्-इत्यै) अपने साथ मिला लेने के लिये (रोहयतु) उन्नत पद पर चढ़ावे। इसी प्रकार राजा राष्ट्र यज्ञ का प्रमुख है उसे हम स्वीकार करें। वह हमें समिति, सभा के सदस्य पद को प्रदान करें। हमें प्रतिनिधि आदि होने का अधिकार दे।
टिप्पणी
(च०) ‘रोहयति’ इति पैप्प० सं०।
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
ब्रह्मा ऋषिः। रोहित आदित्यो देवता। अध्यात्मं सूक्तम्। ३ मरुतः, २८, ३१ अग्निः, ३१ बहुदेवता। ३-५, ९, १२ जगत्यः, १५ अतिजागतगर्भा जगती, ८ भुरिक्, १६, १७ पञ्चपदा ककुम्मती जगती, १३ अति शाक्वरगर्भातिजगती, १४ त्रिपदा पुरः परशाक्वरा विपरीतपादलक्ष्म्या पंक्तिः, १८, १९ ककुम्मत्यतिजगत्यौ, १८ पर शाक्वरा भुरिक्, १९ परातिजगती, २१ आर्षी निचृद् गायत्री, २२, २३, २७ प्रकृता विराट परोष्णिक्, २८-३०, ५५ ककुम्मती बृहतीगर्भा, ५७ ककुम्मती, ३१ पञ्चपदा ककुम्मती शाक्वरगर्भा जगती, ३५ उपरिष्टाद् बृहती, ३६ निचृन्महा बृहती, ३७ परशाक्वरा विराड् अतिजगती, ४२ विराड् जगती, ४३ विराड् महाबृहती, ४४ परोष्णिक्, ५९, ६० गायत्र्यौ, १, २, ६, ७, १०, ११, २०, २४, २५, ३२-३४, ३८-४१, ४२-५४, ५६, ५८ त्रिष्टुभः। षष्ट्यचं सूक्तम्॥
इंग्लिश (4)
Subject
Rohita, the Sun
Meaning
Rohita, self-refulgent lord of glory as the Sun, is the originator and the original voice of creative and karmic yajna. I offer oblations of homage to Rohita in yajna with words while I chant the sacred mantras, with my mind while I meditate on the divine presence. Sages of divine mind and spirit, happy at heart, rise and reach the divine light and presence of Rohita. May the same lord of the creative yajna of evolution and social progress raise me with steady steps of elevation of my body, mind and soul to join and contribute my yajnic part in the assembly and other important congregations for the progress of humanity.
Translation
The ascendant Lord is the generator and mouth of the sacrifice; I offer oblations to the ascendant Lord with speech, audition and mind. The enlightened ones go to the ascendant Lord with a friendly mind. May He make me ascend by ascents to the chiefship of the council.
Translation
This sun is the creator of Yajna and also its mouth. I, the performer of Yajna offer oblation in fire for the sun through orgain speech, ear and the mind. The brilliant flames of Yajna fire creating pleasure in people mind go to sun. Let it make me rise by its blended light and constructive powers.
Translation
God is the Father and Head of worship. Him do I adore with voice, car, heart. Sages with joyful spirit go unto God. May He through different births raise me till I join Him.
संस्कृत (1)
सूचना
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः
१३−(रोहितः) (यज्ञस्य) देवपूजासंगतिकरणदानव्यवहारस्य (जनिता) उत्पादकः (मुखम्) प्रधानः (च) (रोहिताय) परमेश्वरोपासनाय (वाचा) वाण्या (श्रोत्रेण) श्रवणेन (मनसा) चित्तेन (जुहोमि) हु अदने। अन्नं करोमि (रोहितम्) (देवाः) विजिगीषवः (यन्ति) प्राप्नुवन्ति (सुमनस्यमानाः) अ० १।३५।१। शुभचिन्तकाः (सः) परमेश्वरः (मा) माम् (रोहैः) उन्नतिभिः (सामित्यै) छान्दसो दीर्घः। समित्यै। संगतये (रोहयतु) उन्नयतु ॥
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