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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 1/ मन्त्र 30
    ऋषिः - ब्रह्मा देवता - अग्निः छन्दः - अनुष्टुप् सूक्तम् - अध्यात्म प्रकरण सूक्त
    49

    अ॑वा॒चीना॒नव॑ ज॒हीन्द्र॒ वज्रे॑ण बाहु॒मान्। अधा॑ स॒पत्ना॑न्माम॒कान॒ग्नेस्तेजो॑भि॒रादि॑षि ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    अ॒वा॒चीना॑न् । अव॑ । ज॒हि॒ । इन्द्र॑ । वज्रे॑ण‍ । बा॒हु॒ऽमान् । अध॑ । स॒ऽपत्ना॑न् । मा॒म॒कान् । अ॒ग्ने । तेज॑:ऽभि: । आ । अ॒दि॒षि॒ ॥१.३०॥


    स्वर रहित मन्त्र

    अवाचीनानव जहीन्द्र वज्रेण बाहुमान्। अधा सपत्नान्मामकानग्नेस्तेजोभिरादिषि ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    अवाचीनान् । अव । जहि । इन्द्र । वज्रेण‍ । बाहुऽमान् । अध । सऽपत्नान् । मामकान् । अग्ने । तेज:ऽभि: । आ । अदिषि ॥१.३०॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 13; सूक्त » 1; मन्त्र » 30
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    हिन्दी (4)

    विषय

    जीवात्मा और परमात्मा का उपदेश।

    पदार्थ

    (इन्द्र) हे बड़े ऐश्वर्यवाले पुरुष ! (बाहुमान्) बलवान् भुजाओंवाला तू (वज्रेण) वज्र से (अवाचीनान्) नीचों [अधार्मिकों] को (अव जहि) मार गिरा। (अध) फिर (मामकान्) अपने (सपत्नान्) वैरियों को (अग्निः) अग्नि के (तेजोभिः) तेजों से (आ अदिषि) मैंने पकड़ लिया है ॥३०॥

    भावार्थ

    प्रजागण बली, पराक्रमी, प्रतापी राजा को स्वीकार करके शत्रुओं के मारने में सहायक होवें। सब मनुष्य इस ईश्वरनियम का पालन करें ॥३०॥

    टिप्पणी

    ३०−(अवाचीनान्) अधोगतीन्। अधार्मिकान् (अव जहि) विनाशय (इन्द्र) हे परमैश्वर्यवन् सेनापते (वज्रेण) शस्त्रेण (बाहुमान्) प्रबलभुजः (अध) अथ (सपत्नान्) (मामकान्) अ० १।२९।५। मम सम्बन्धिनः (अग्नेः) पावकस्य (तेजोभिः) ज्वालाभिः (आ अदिषि) ददातेर्लुङ्। गृहीतवानस्मि ॥

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    विषय

    अग्नेः तेजोभिः

    पदार्थ

    १. हे (इन्द्र) = इन्द्रियों को वश में करनेवाले (बाहुमान) = प्रशस्त भुजाओंवाले, अर्थात् शक्तिशाली साधक! तु (वज्रेण) = क्रियाशीलतारूप व्रज से (अवाचीनान्) = निम्न गतिवाले-नीचे की ओर ले जानेवाले इन काम, क्रोधादि शत्रुओं को (अवजहि) = सुदूर विनष्ट कर । जितेन्द्रियता व क्रियाशीलता हमें शत्रुओं को वश में करने योग्य बनाती है। २. (अध) = अब मैं (मामकान् सपत्नान्) = अपने शत्रुओं को (अग्ने: तेजोभिः) = उस अग्रणी प्रभु के तेजों से (आ आदिषि) = निगृहीत कर लेता हूँ। प्रभु की उपासना में उपासक प्रभु के तेज से तेजस्वी बनता है और काम, क्रोधादि शत्रुओं को निगृहीत करने में समर्थ होता है।

    भावार्थ

    हम जितेन्द्रिय व क्रियाशील बनकर शत्रुओं का पराभव करें। प्रभु के तेज से तेजस्वी होकर हम शत्रुओं का निग्रह करने में समर्थ हों।

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    भाषार्थ

    (इन्द्र) हे सेनापति ! (बाहुमान्) बाहुओं में शक्ति वाला तू (वज्रेण) वज्र द्वारा (अवाचीनान्) नीचे गिरे हुओं को (अव जहि) नीचे गिरी अबस्था में मार डाल। (अधा) तब (मामकान् सपत्नान्) मेरे शत्रुओं को (अग्नेः) क्षात्राग्नि के (तेजोभिः) तेजो द्वारा, (आदिषि) अपनी अधीनता में मैं लेता हूं।

    टिप्पणी

    [अग्नेः तेजोभिः = अथवा आग्नेयास्त्रों के तेजों द्वारा]।

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    विषय

    ‘रोहित’ रूप से परमात्मा और राजा का वर्णन।

    भावार्थ

    हे (इन्द्र) राजन् और हे आत्मन् ! तू (वज्रेण) वज्र, ज्ञानरूप वज्र से (बाहुमान्) बाहुवाला, शत्रुओं के बाधन करने में समर्थ साधनसम्पन्न होकर (अवाचीनान्) अपने नीचे दबे हुए अन्तः शत्रु कामादि वर्ग को (अव जहि) और भी नीचे पटक कर विनाश कर। (अधा) और (मामकान्) ‘अहम्’ अर्थात् आत्मा के या मेरे (सपत्नान्) समान अधिकार का दावा करने वाले शत्रुओं को (अग्नेः) ज्ञानस्वरूप परमेश्वर हृदय के सम्राट् के (तेजोभिः) तेजों के बल से (आदिषि) अपने वश करता हूं। राजा और ईश्वर दोनों पक्षों में स्पष्ट है।

    टिप्पणी

    (च०) ‘तेजोभिरादधे’ इति पैप्प० सं०।

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    ब्रह्मा ऋषिः। रोहित आदित्यो देवता। अध्यात्मं सूक्तम्। ३ मरुतः, २८, ३१ अग्निः, ३१ बहुदेवता। ३-५, ९, १२ जगत्यः, १५ अतिजागतगर्भा जगती, ८ भुरिक्, १६, १७ पञ्चपदा ककुम्मती जगती, १३ अति शाक्वरगर्भातिजगती, १४ त्रिपदा पुरः परशाक्वरा विपरीतपादलक्ष्म्या पंक्तिः, १८, १९ ककुम्मत्यतिजगत्यौ, १८ पर शाक्वरा भुरिक्, १९ परातिजगती, २१ आर्षी निचृद् गायत्री, २२, २३, २७ प्रकृता विराट परोष्णिक्, २८-३०, ५५ ककुम्मती बृहतीगर्भा, ५७ ककुम्मती, ३१ पञ्चपदा ककुम्मती शाक्वरगर्भा जगती, ३५ उपरिष्टाद् बृहती, ३६ निचृन्महा बृहती, ३७ परशाक्वरा विराड् अतिजगती, ४२ विराड् जगती, ४३ विराड् महाबृहती, ४४ परोष्णिक्, ५९, ६० गायत्र्यौ, १, २, ६, ७, १०, ११, २०, २४, २५, ३२-३४, ३८-४१, ४२-५४, ५६, ५८ त्रिष्टुभः। षष्ट्यचं सूक्तम्॥

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Rohita, the Sun

    Meaning

    Indra, ruling power and defence force armed with thunder, throw down and destroy the enemies with the strike of thunderbolt. And I too subdue and control my fighting adversaries with the heat and blaze of fire.

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    Subject

    To multi - gods

    Translation

    O resplendent Lord, strong of arms, may you strike down the down-going ones with your adamantine weapon. Thereafter, I shall subdue my rivals with the powers of the adorable Lord.

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    Translation

    Let Indra, the electricity mightly with aria and strength, by bolt kill our foes. I, the king bring into my control my enemies through the energy and force of fire.

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    Translation

    O mighty-armed king, beat down the sinners with thy bolt. I through the energy and force of God have subdued my internal foes !

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    ३०−(अवाचीनान्) अधोगतीन्। अधार्मिकान् (अव जहि) विनाशय (इन्द्र) हे परमैश्वर्यवन् सेनापते (वज्रेण) शस्त्रेण (बाहुमान्) प्रबलभुजः (अध) अथ (सपत्नान्) (मामकान्) अ० १।२९।५। मम सम्बन्धिनः (अग्नेः) पावकस्य (तेजोभिः) ज्वालाभिः (आ अदिषि) ददातेर्लुङ्। गृहीतवानस्मि ॥

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