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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 1/ मन्त्र 14
    ऋषिः - ब्रह्मा देवता - अध्यात्मम्, रोहितः, आदित्यः छन्दः - त्रिपदा पुरःपरशाक्वरा विपरीतपादलक्ष्मा पङ्क्तिः सूक्तम् - अध्यात्म प्रकरण सूक्त
    69

    रोहि॑तो य॒ज्ञं व्यदधाद्वि॒श्वक॑र्मणे॒ तस्मा॒त्तेजां॒स्युप॑ मे॒मान्यागुः॑। वो॒चेयं॑ ते॒ नाभिं॒ भुव॑न॒स्याधि॑ म॒ज्मनि॑ ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    रोहि॑त: । य॒ज्ञम् । वि । अ॒द॒धा॒त् । वि॒श्वऽक॑र्मणे । तस्मा॑त् । तेजां॑सि । उप॑ । मा॒ । इ॒मानि॑। आ । अ॒गु॒: । वो॒चेय॑म् । ते॒ । नाभि॑म् । भुव॑नस्य । अधि॑ । म॒ज्मनि॑॥१.१४॥


    स्वर रहित मन्त्र

    रोहितो यज्ञं व्यदधाद्विश्वकर्मणे तस्मात्तेजांस्युप मेमान्यागुः। वोचेयं ते नाभिं भुवनस्याधि मज्मनि ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    रोहित: । यज्ञम् । वि । अदधात् । विश्वऽकर्मणे । तस्मात् । तेजांसि । उप । मा । इमानि। आ । अगु: । वोचेयम् । ते । नाभिम् । भुवनस्य । अधि । मज्मनि॥१.१४॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 13; सूक्त » 1; मन्त्र » 14
    Acknowledgment

    हिन्दी (4)

    विषय

    जीवात्मा और परमात्मा का उपदेश।

    पदार्थ

    (रोहितः) सबके उत्पन्न करनेवाले [परमेश्वर] ने (यज्ञम्) यज्ञ [संगतियोग्य व्यवहार] को [विश्वकर्मणे] सब कामों में चतुर [मनुष्य] के लिये (वि अदधात्) उत्पन्न किया है, (तस्मात्) उस [परमेश्वर] से (इमानि) यह सब (तेजांसि) तेज (मा) मुझको (उप) समीप से (आ अगुः) प्राप्त हुए हैं। [हे परमेश्वर !] (ते) तेरे (नाभिम्) सम्बन्ध को (भुवनस्य) संसार के (मज्मनि) बल के भीतर (अधि) अधिकारपूर्वक (वोचेयम्) मैं बतलाऊँ ॥१४॥

    भावार्थ

    परमेश्वर ने मनुष्य के हित के लिये सब श्रेष्ठ कर्म उत्पन्न किये हैं, जो विद्वान् उसकी महिमा के प्रकाश को प्रत्येक पदार्थ में देखते हैं, वे बलवान् होते हैं ॥१४॥

    टिप्पणी

    १४−(रोहितः) परमेश्वरः (यज्ञम्) संगतिकरणव्यवहारम् (व्यदधात्) उत्पादितवान् (विश्वकर्मणे) सर्वकर्म्मप्रवीणाय मनुष्याय (तस्मात्) परमेश्वरात् (तेजांसि) (उप) समीपे (मा) माम् (इमानि) दृश्यमानानि (आ अगुः) प्राप्तानि अभवन् (वोचेयम्) वदेयम् (ते) तव (नाभिम्) सम्बन्धम् (भुवनस्य) संसारस्य (अधि) अधिकृत्य (मज्मनि) टुमस्जो शुद्धौ-मनिन्। मज्मना बलनाम-निघ० २।९। बले ॥

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    विषय

    यज्ञ व तेजस्विता

    पदार्थ

    १. (रोहितः) = उस तेजस्वी, सदावृद्ध प्रभु ने (विश्वकर्मणे) = इस सृष्टिरूप कर्म के लिए (यज्ञं व्यदधात्) = यज्ञ का विधान किया। यज्ञसहित ही प्रजाओं को जन्म देकर यह कहा कि इस यज्ञ से ही तुम फूलो-फलोगे। यही तुम्हारी इष्टकामनाओं को पूर्ण करेगा। प्रभु द्वारा विहित (तस्मात्) = उस यज्ञ से ही (इमानि तेजांसि) = ये तेज (मा) = मुझे (उप आगुः) = समीपता से प्राप्त होते हैं। यज्ञ से विपरीत भोगवृत्ति है। यह भोगवृत्ति ही सब तेजों के विनाश का कारण बनती है। २. हे प्रभो! (अधि मज्यनि) = [मज्मनि बलनाम-नि० २.९] बल के निमित (ते भुवनस्य नाभिम्) = आपके इस यज्ञ को-भुवननाभि को ('अयं यज्ञो भुवनस्य नाभिः' वोचेयम्) = अपने जीवन से कहूँ, अर्थात् यज्ञशील बनकर बल व तेज को प्राप्त करूँ।

    भावार्थ

    यज्ञ ही सृष्टिचक्र का आधार है। यही हमें तेजस्वी बनाता है। यज्ञ से विपरीत भोगवृत्ति तेजोविनाश का कारण बनती है।

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    भाषार्थ

    (रोहितः) सर्वोपरि आरूढ़ परमेश्वर ने (विश्वकर्मणे) विविध प्रकार की रचनाओं के करने वाले शिल्पिसमूह के लिये (यज्ञम्) संसार यज्ञ का (व्यदधात्) विधिपूर्वक निर्माण किया है; (तस्मात्) उस शिल्पिसमूह से (मा) मुझ राजा को (इमानि तेजांसि) ये राष्ट्रिय तेज (उपागुः) प्राप्त हुए हैं। हे परमेश्वर! (भुवनस्य) उत्पन्न संसार के (मज्मनि अधि) बलों या शक्तियों में (ते) तेरी (नाभिम्) केन्द्रिय-शक्ति का (वोचेयम्) मैं कथन करता हूं।

    टिप्पणी

    [परमेश्वर ने संसार–यज्ञ विधिपूर्वक रचा है। शिल्पी लोग संसार की विधिपूर्वक रचनाओं को देख कर विविध रचनाएं करते हैं। राष्ट्र के नगरों, मकानों आदि का निर्माण कर शिल्पी राष्ट्र को सुन्दर रूप देते हैं। संसार की रचनाओं में, केन्द्ररूप शक्ति, परमेश्वर की है। मज्मनि= मज्मना बलनाम (निघं० २।९)। नाभिम् = शरीर में नाभि केन्द्ररूप है। माता के पेट में शिशु का पालन नाभिनाल द्वारा होता है। सांसारिक शक्तियों में परमेश्वर की शक्ति नाभिरूप है]।

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    विषय

    ‘रोहित’ रूप से परमात्मा और राजा का वर्णन।

    भावार्थ

    (रोहितः) रोहित, सर्वोत्पादक परमात्मा (विश्वकर्मणे) इस विश्व को रचने के लिये (यज्ञम्) यज्ञ, समस्त पञ्चभूतों के संसर्ग के कार्यों को (वि-अदधात्) नाना प्रकार से करता है। (तस्मात्) उस परमेश्वर से ही (मां) मुझे (इमानि तेजांसि) ये समस्त तेज, तेजस्वी पदार्थ और मानसिक तेजोमय ज्ञान (उप आ अगुः) प्राप्त होते हैं। हे परमात्मन् ! मैं (भुवनस्य) समस्त उत्पन्न संसार के (मज्मनि अधि) प्रवर्तक बल के भी ऊपर अधिष्ठाता रूप से (ते) तेरे ही (नाभिम्) समस्त संसार को व्यवस्था में बांधने वाले महान् सामर्थ्य को (वोचेयम्) बतलाता हूँ।

    टिप्पणी

    (प्र०) ‘विदधाद्’ इति पैप्प० सं०।

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    ब्रह्मा ऋषिः। रोहित आदित्यो देवता। अध्यात्मं सूक्तम्। ३ मरुतः, २८, ३१ अग्निः, ३१ बहुदेवता। ३-५, ९, १२ जगत्यः, १५ अतिजागतगर्भा जगती, ८ भुरिक्, १६, १७ पञ्चपदा ककुम्मती जगती, १३ अति शाक्वरगर्भातिजगती, १४ त्रिपदा पुरः परशाक्वरा विपरीतपादलक्ष्म्या पंक्तिः, १८, १९ ककुम्मत्यतिजगत्यौ, १८ पर शाक्वरा भुरिक्, १९ परातिजगती, २१ आर्षी निचृद् गायत्री, २२, २३, २७ प्रकृता विराट परोष्णिक्, २८-३०, ५५ ककुम्मती बृहतीगर्भा, ५७ ककुम्मती, ३१ पञ्चपदा ककुम्मती शाक्वरगर्भा जगती, ३५ उपरिष्टाद् बृहती, ३६ निचृन्महा बृहती, ३७ परशाक्वरा विराड् अतिजगती, ४२ विराड् जगती, ४३ विराड् महाबृहती, ४४ परोष्णिक्, ५९, ६० गायत्र्यौ, १, २, ६, ७, १०, ११, २०, २४, २५, ३२-३४, ३८-४१, ४२-५४, ५६, ५८ त्रिष्टुभः। षष्ट्यचं सूक्तम्॥

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Rohita, the Sun

    Meaning

    Vishvakarma with his divine vibration of thought sankalpa initiated the cosmic yajna of creative evolution. Mother Nature with divine pervasion, Rohita, the sun, and the ruler organise and extend the yajna of natural and social evolution onwards in the service of the lord supreme, Vishvakarma. From that yajna and this extension come to me all these brilliant gifts of light, comfort and dignity. O lord, O sun, O rulers, in this grand spectacle of existence from the macrocosmic to the microcosmic dynamics of yajna, I sing and celebrate your basic and central glory and majesty.

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    Translation

    The ascendant Lord has performed sacrifice for the one, engaged in all sorts of actions. From that, these lustres have come unto me, May I declare my kinship with you in the vastness of this universe.

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    Translation

    Rohitah, the resplendent igneous energy creates Yajna, the cosmic Yajna for Vishvakarman the make of this creation. These strength splendour and energy come out to me from that Yajna. I, the performer of Yajna declare this fire the naval of the greatness of the world.

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    Translation

    God ordered sacrifice for a person wise in all deeds. From Him have I obtained this strength and energy. May I proclaim Thee as my kin over the greatness of the world.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    १४−(रोहितः) परमेश्वरः (यज्ञम्) संगतिकरणव्यवहारम् (व्यदधात्) उत्पादितवान् (विश्वकर्मणे) सर्वकर्म्मप्रवीणाय मनुष्याय (तस्मात्) परमेश्वरात् (तेजांसि) (उप) समीपे (मा) माम् (इमानि) दृश्यमानानि (आ अगुः) प्राप्तानि अभवन् (वोचेयम्) वदेयम् (ते) तव (नाभिम्) सम्बन्धम् (भुवनस्य) संसारस्य (अधि) अधिकृत्य (मज्मनि) टुमस्जो शुद्धौ-मनिन्। मज्मना बलनाम-निघ० २।९। बले ॥

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