अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 1/ मन्त्र 23
ऋषिः - ब्रह्मा
देवता - अध्यात्मम्, रोहितः, आदित्यः
छन्दः - त्रिष्टुप्
सूक्तम् - अध्यात्म प्रकरण सूक्त
65
इ॒दं सदो॒ रोहि॑णी॒ रोहि॑तस्या॒सौ पन्थाः॒ पृष॑ती॒ येन॒ याति॑। तां ग॑न्ध॒र्वाः क॒श्यपा॒ उन्न॑यन्ति॒ तां र॑क्षन्ति क॒वयोऽप्र॑मादम् ॥
स्वर सहित पद पाठइ॒दम् । सद॑: । रोहि॑णी । रोहि॑तस्य । अ॒सौ । पन्था॑: । पृष॑ती । येन॑ । याति॑ । ताम् । ग॒न्ध॒र्वा: । क॒श्यपा॑: । उत् । न॒य॒न्ति॒ । क॒वय॑: । अप्र॑ऽमादम् ॥१.२३॥
स्वर रहित मन्त्र
इदं सदो रोहिणी रोहितस्यासौ पन्थाः पृषती येन याति। तां गन्धर्वाः कश्यपा उन्नयन्ति तां रक्षन्ति कवयोऽप्रमादम् ॥
स्वर रहित पद पाठइदम् । सद: । रोहिणी । रोहितस्य । असौ । पन्था: । पृषती । येन । याति । ताम् । गन्धर्वा: । कश्यपा: । उत् । नयन्ति । कवय: । अप्रऽमादम् ॥१.२३॥
भाष्य भाग
हिन्दी (4)
विषय
जीवात्मा और परमात्मा का उपदेश।
पदार्थ
(रोहिणी) उत्पत्तिशक्ति [प्रकृति] (इदम्) यहाँ (रोहितस्य) उत्पन्न करनेवाले [परमेश्वर] का (सदः) प्राप्तियोग्य पद है, (असौ) वही (पन्थाः) मार्ग है, (येन) जिस से (पृषती) सींचनेवाली [प्रकृति] (याति) चलती है। (ताम्) उस [प्रकृति] को (गन्धर्वाः) पृथिवी वा जल धारण करनेवाले [मेघ] और (कश्यपाः) रस पीनेवाले [किरण] (उत् नयन्ति) ऊँचा करते हैं, (ताम्) उस [प्रकृति] को (कवयः) बुद्धिमान् लोग (अप्रमादम्) विना चूके (रक्षन्ति) पालते हैं ॥२३॥
भावार्थ
प्रकृति की चाल के ज्ञान से मनुष्य परमात्मा की महिमा जानकर अनेक लाभ उठाते हैं, जैसे मेघ जल बरसाकर और किरणें जल खींचकर और प्रकाश करके प्रकृति के उत्तम गुणों को दिखाते हैं। बुद्धिमान् लोग इसी प्रकृति को निरन्तर खोजते हुए नवीन-नवीन अविष्कार करते हैं ॥२३॥
टिप्पणी
२३-उत्पत्तिशक्तिः (रोहितस्य) म० १। सर्वोत्पादकस्य परमेश्वरस्य (असौ) (पन्थाः) मार्गः (पृषती) म० २१। सेचनशीला प्रकृतिः (येन) पथा (याति) गच्छति (ताम्) प्रकृतिम् (गन्धर्वाः) कॄगॄशॄदॄभ्यो वः। उ० १।१५५। गो+धृञ् धारणे-व प्रत्ययः, गोर्गमादेशः। गोः पृथिव्या जलस्य वा धारकाः। मेघाः (कश्यपाः) अ० १।१४।४। कश शब्दे-करणे यत्। कशति अनेनेति कश्यं रसः। कश्य+पा पाने-क। रसस्य पानशीलाः किरणाः (उन्नयन्ति) उन्नतां व्याख्यातां कुर्वन्ति (ताम्) (रक्षन्ति) (कवयः) मेधाविनः (अप्रमादम्) सावधानं यथा तथा ॥
विषय
रोहिणी रोहितस्य इदं सदः
पदार्थ
१. (रोहिणी) = प्रकृति (रोहितस्य) = उस तेजस्वी प्रभु का (इदं सदः) = यह घर है-निवास स्थान है। प्रभु प्रकृति के प्रत्येक पदार्थ में विद्यमान हैं। (असौ पन्थाः) = मार्ग वह है (पृषती येन याति) = यह [पृष् to give] सब पदार्थों को देनेवाली प्रकृति जिससे जाती है। प्रकृति का प्रत्येक पदार्थ पिण्ड एकदम नियमित गति से चल रहा है। जीव को भी चाहिए की वह सूर्य और चन्द्र की भौति नियमित गति से चले। 'स्वस्तिपन्थामनु चरेम सूर्याचन्द्रमसाविव'। २. (ताम्) = उस प्रकृति को (गन्धर्वाः) = ज्ञान की वाणियों का धारण करनेवाले (कश्यपा:) = तत्त्वद्रष्टा लोग (उन्नयन्ति) = उन्नत करते हैं-अपने जीवन में उत्कर्षेण प्राप्त करते हैं-प्रकृति का ठीक प्रयोग करते हुए वे उसे उचित आदर देते हैं। ताम्-उस प्रकृति को (कवयः) = ज्ञानी लोग (अप्रमादम्) = प्रमादशून्य होकर (रक्षन्ति) = रक्षित करते हैं। प्रकृति के बने हुए इस शरीर के रक्षण को भी वे धर्म समझते हैं और इस शरीर की बड़ी सावधानी से रक्षा करते हैं |
भावार्थ
प्रकृति में सर्वत्र प्रभु का वास है। प्रकृति के बने सूर्यादि सब पिण्डों को प्रभु ही प्रकाश प्राप्त कराते हैं। इन सूर्य-चन्द्रादि की भाँति नियमित मार्ग का ये अनुसरण करते हैं। प्रकृति के ठीक प्रयोग से वे उसका आदर करते हैं और शरीर-रथ का पूर्णरूपेण रक्षण करते हैं।
भाषार्थ
(रोहिणी) समुन्नतिशील प्रजा है। (इदम् सदः) यह सिंहासन स्थिति का स्थान है (रोहितस्य) सिंहासनारूढ़ राजा का। (असौ पन्थाः) और वह मार्ग है (येन) जिस मार्ग द्वारा (पृषती) सींचने वाली नहर (याति) जाती है। (ताम्) उस नहर को (गन्धर्वाः) पृथिवी के धारक राज्याधिकारी तथा (कश्यपाः) राज्यनिरीक्षक लोग (उन्नयन्ति) समुन्नत करते हैं, (ताम्) उस की (अप्रमादम्) आलस्य छोड़कर (रक्षन्ति) रक्षा करते हैं (कवयः) वेदकाव्य के विद्वान्।
टिप्पणी
[अभिप्राय यह कि प्रजा तो स्वयं समुन्नतिशील हैं, उन्नतिमार्ग पर स्वयं आरोहण करने वाली है। राजा का स्थान है राजसिंहासन, जिस पर आरूढ़ होकर उस ने शासन करना है। प्रजा के जल के लिये तथा कृषि की उन्नति के लिये राज्याधिकारी नहर और उस के मार्ग की रक्षा करें, और वेदकाव्य के विद्वान भूमि की उपज के सम्बन्ध में मार्ग प्रदर्शन करें]।
विषय
‘रोहित’ रूप से परमात्मा और राजा का वर्णन।
भावार्थ
(रोहितस्य) रोहित, परमेश्वर का (इदं सदः) यही विश्व, निवासस्थान, आश्रय है कि यह (रोहिणी) उसकी परम शक्ति या प्रकृति और उसका (असौ) यह (पन्थाः) मार्ग है (येन) जिस मार्ग से (पृषती) चित्र वर्णा व्यापक प्रकृति (याति) गति करती है। (तां) उसको (गन्धर्वाः) वेद वाणी के धारण करने वाले (कश्यपाः) प्रकाश के पालक, ज्ञानी लोग (उन्नयन्ति) ज्ञान करते हैं, धारण करते हैं और (ताम्) उसको (कवयः) क्रान्त-दर्शी विद्वान् लोग (अप्रमादम्) प्रमाद रहित होकर (रक्षन्ति) रक्षा करते हैं। राजा के पक्ष में स्पष्ट है।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
ब्रह्मा ऋषिः। रोहित आदित्यो देवता। अध्यात्मं सूक्तम्। ३ मरुतः, २८, ३१ अग्निः, ३१ बहुदेवता। ३-५, ९, १२ जगत्यः, १५ अतिजागतगर्भा जगती, ८ भुरिक्, १६, १७ पञ्चपदा ककुम्मती जगती, १३ अति शाक्वरगर्भातिजगती, १४ त्रिपदा पुरः परशाक्वरा विपरीतपादलक्ष्म्या पंक्तिः, १८, १९ ककुम्मत्यतिजगत्यौ, १८ पर शाक्वरा भुरिक्, १९ परातिजगती, २१ आर्षी निचृद् गायत्री, २२, २३, २७ प्रकृता विराट परोष्णिक्, २८-३०, ५५ ककुम्मती बृहतीगर्भा, ५७ ककुम्मती, ३१ पञ्चपदा ककुम्मती शाक्वरगर्भा जगती, ३५ उपरिष्टाद् बृहती, ३६ निचृन्महा बृहती, ३७ परशाक्वरा विराड् अतिजगती, ४२ विराड् जगती, ४३ विराड् महाबृहती, ४४ परोष्णिक्, ५९, ६० गायत्र्यौ, १, २, ६, ७, १०, ११, २०, २४, २५, ३२-३४, ३८-४१, ४२-५४, ५६, ५८ त्रिष्टुभः। षष्ट्यचं सूक्तम्॥
इंग्लिश (4)
Subject
Rohita, the Sun
Meaning
This house of the people is the ruling leader’s seat of power, and this people’s power, Rohini, is the real strength and foundation of the ruler, and that policy and programme decided in the house is the path by which the leading power of the nation advances to progress and achievement. And this leading power of the nation, the people and the policy, Gandharvas, sagely scholars of divine speech, and Kashyapas, enlightened leaders of the nation, preserve in tradition and raise higher, and that very culture, character and tradition, poets and artists celebrate, protect and promote, continuously, without relent and doubt or question.
Translation
This ascending dawn is the abode of the ascending sun. This is the way along which the speckled earth moves. The Sustainers of earth, the keen observers, lead her upwards; the far-sighted sages guard her with ceaseless care.
Translation
Rohini is this house of sun. This is the track by which moves Sun-beam of variegated colours. Men in house hold life, men of sharp vision take it in to their high thought. Those who are perspicacious carefully guard it (for the advantage).
Translation
Matter is the abode of God. That is the path the multi-hued Matter pursueth, Vedic scholars and learned persons lead it upwards and sages free from sloth ever guard it.
Footnote
God pervades Matter, hence it is His dwelling-place. Griffith has interpreted Kasyapas; as a class of semi-divine genu or spirits who regulate the course of the Sun. The word means Vedic scholars. Gandharvas: has been interpreted by Griffith as celestial beings who dwell in the sky and govern the course of the heavenly bodies. The word means learned persons.
संस्कृत (1)
सूचना
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः
२३-उत्पत्तिशक्तिः (रोहितस्य) म० १। सर्वोत्पादकस्य परमेश्वरस्य (असौ) (पन्थाः) मार्गः (पृषती) म० २१। सेचनशीला प्रकृतिः (येन) पथा (याति) गच्छति (ताम्) प्रकृतिम् (गन्धर्वाः) कॄगॄशॄदॄभ्यो वः। उ० १।१५५। गो+धृञ् धारणे-व प्रत्ययः, गोर्गमादेशः। गोः पृथिव्या जलस्य वा धारकाः। मेघाः (कश्यपाः) अ० १।१४।४। कश शब्दे-करणे यत्। कशति अनेनेति कश्यं रसः। कश्य+पा पाने-क। रसस्य पानशीलाः किरणाः (उन्नयन्ति) उन्नतां व्याख्यातां कुर्वन्ति (ताम्) (रक्षन्ति) (कवयः) मेधाविनः (अप्रमादम्) सावधानं यथा तथा ॥
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