Loading...
मन्त्र चुनें
  • अथर्ववेद का मुख्य पृष्ठ
  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 1/ मन्त्र 5
    ऋषिः - ब्रह्मा देवता - अध्यात्मम्, रोहितः, आदित्यः छन्दः - जगती सूक्तम् - अध्यात्म प्रकरण सूक्त
    66

    आ ते॑ रा॒ष्ट्रमि॒ह रोहि॑तोऽहार्षी॒द्व्यास्थ॒न्मृधो॒ अभ॑यं ते अभूत्। तस्मै॑ ते द्यावापृथि॒वी रे॒वती॑भिः॒ कामं॑ दुहाथामि॒ह शक्व॑रीभिः ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    आ । ते॒ । रा॒ष्ट्रम् । इ॒ह । रोहि॑त: । अ॒हा॒र्षी॒त् । वि । आ॒स्थ॒त् । मृध॑: । अभ॑यम् । ते॒ । अ॒भू॒त् । तस्मै॑ । ते॒ । द्यावा॑पृथि॒वी इति॑ । रे॒वती॑भि: । काम॑म् । दु॒हा॒था॒म् । इ॒ह । शक्व॑रीभि: ॥१.५॥


    स्वर रहित मन्त्र

    आ ते राष्ट्रमिह रोहितोऽहार्षीद्व्यास्थन्मृधो अभयं ते अभूत्। तस्मै ते द्यावापृथिवी रेवतीभिः कामं दुहाथामिह शक्वरीभिः ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    आ । ते । राष्ट्रम् । इह । रोहित: । अहार्षीत् । वि । आस्थत् । मृध: । अभयम् । ते । अभूत् । तस्मै । ते । द्यावापृथिवी इति । रेवतीभि: । कामम् । दुहाथाम् । इह । शक्वरीभि: ॥१.५॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 13; सूक्त » 1; मन्त्र » 5
    Acknowledgment

    हिन्दी (3)

    विषय

    जीवात्मा और परमात्मा का उपदेश।

    पदार्थ

    [हे मनुष्य !] (रोहितः) सबका उत्पन्न करनेवाला [परमेश्वर] (ते) तेरे (राष्ट्रम्) राज्य को (इह) यहाँ [संसार में] (आ अहार्षीत्) लाया है और उसने (मृधः) हिंसक [शत्रुओं] को (वि आस्थत्) गिरा दिया है, (ते) तेरे लिये (अभयम्) अभय (अभूत्) हो गया है। (तस्मै ते) उस तेरे लिये (द्यावापृथिवी) सूर्य्य और पृथिवी दोनों (रेवतीभिः) धनवाली (शक्वरीभिः) शक्तियों के साथ (कामम्) कामना को (इह) यहाँ [इस राज्य में] (दुहाथाम्=०−ताम्) पूरी करें ॥५॥

    भावार्थ

    जो मनुष्य ईश्वर की आज्ञा में तत्पर होकर राज्य चलाता है, उसको आध्यात्मिक, आधिभौतिक और आधिदैविक क्लेश नहीं होते ॥५॥

    टिप्पणी

    ५−(ते) तव (राष्ट्रम्) राज्यम् (इह) संसारे (रोहितः) म० १। सर्वोत्पादकः परमेश्वरः (आ अहार्षीत्) आनीतवान् (वि) पृथग्भावे (आस्थत्) असु क्षेपणे-लुङ्। क्षिप्तवान् (मृधः) मृधु उन्दने हिंसायां च-क्विप्। हिंसकान्। शत्रून् (अभयम्) भयराहित्यम् (ते) तुभ्यम् (अभूत्) (तस्मै) तथाभूताय (ते) तुभ्यम् (द्यावापृथिवी) सूर्य्यभूमी (रेवतीभिः) अ० ३।४।७। धनवतीभिः (कामम्) कामनाम् (दुहाथाम्) तकारस्य थः। दुहाताम्। पूरयताम् (इह) राज्ये (शक्वरीभिः) अ० ३।१३।७। शक्लृ शक्तौ-वनिप्। शक्तिभिः ॥

    इस भाष्य को एडिट करें

    विषय

    व्यास्थन् मृधः

    पदार्थ

    १. हे जीव! (रोहितः) = वह सदा से वृद्ध प्रभु (ते) = तेरे लिए (इह) = यहाँ (राष्ट्रम्) = इस ब्रह्माण्ड राष्ट्र को (आ आहर्षित्) = प्रास कराते हैं-जीव की उन्नति के लिए ही प्रभु ने सष्टि को रचा है। वे प्रभु ही जीव के (मृधः) = हिंसक काम-क्रोधादि शत्रुओं को (वि आस्थत्) = [असु क्षेपणे] सदूर विनष्ट करते हैं। हे जीव! उस प्रभु की गोद में (ते अभयं अभूत्) = तेरे लिए अभय हो गया है। २. (तस्मै ते) = प्रभु की गोद में रहनेवाले तेरे लिए (द्यावापृथिवी) = ये पिता व मातारूप धुलोक व पृथिवीलोक (इह) = यहाँ (शक्वरीभिः रेवतीभिः) = शक्तियों से युक्त सम्पत्तियों के द्वारा (कामं दुहाथाम्) = सब काम्य पदार्थों का दोहन करें। ये द्यावापृथिवी जीव को शक्तियुक्त सम्पत्तियाँ प्राप्त कराएँ और उन्नति के लिए आवश्यक सब पदार्थों को सिद्ध करें।

    भावार्थ

    प्रभु इस ब्रह्माण्डरूप राष्ट्र को बनाते हैं। उपासक के कामादि शत्रुओं को विनष्ट करके उसे अभय प्राप्त कराते हैं। इस उपासक को ये द्यावापृथिवी शक्ति व सम्पत्ति प्राप्त कराते हुए सब इष्ट पदार्थों को देते हैं।

    इस भाष्य को एडिट करें

    भाषार्थ

    हे राजन्! (रोहितः) सर्वोपरि आरूढ़ परमेश्वर (इह) इस पृथिवी पर (ते) तेरे लिये (राष्ट्रम्) राष्ट्र या राज्य (आ अहार्षीत्) लाया है (मृधः) संग्रामकारी शत्रुओं को (व्यास्थत्) उस ने स्थानच्युत कर दिया है (ते) तेरे लिये राष्ट्र (अभयम् अभूत) भय रहित हुआ है। (द्यावापृथिवी) द्युलोक और पृथिवी लोक, (रेवतीभिः) धन सम्पन्न तथा (शक्वरीभिः) शक्ति सम्पन्न प्रजाओं के द्वारा, (तस्मैते) उस तेरे लिये (इह) इस राष्ट्र में (कामम्) कामना को (दुहाथाम्) प्रपूरित करें, दोहें।

    टिप्पणी

    [मृधः संग्रामनाम (निघं० २।१७)]।

    इस भाष्य को एडिट करें

    इंग्लिश (4)

    Subject

    Rohita, the Sun

    Meaning

    O man, it is the ruler refulgent as the sun who has brought the organised order of the Rashtra for you here on earth, removed the violent away, and consequently there is freedom from fear all round. May the heaven and earth with generous showers of divine power and favour bless you with fulfilment of your desires and ambitions.

    इस भाष्य को एडिट करें

    Translation

    The ascendant Lord has brought your kingdom here and has driven the enemies away. There is freedom from fear for you now. For you,a such, may the heaven and earth fulfil your desires with wealths and powers.

    इस भाष्य को एडिट करें

    Translation

    O strong man ! Rohita, All creating God has brought this kingdom in the world for you. He has removed all the internal and external obstacles and there prevails fearlessness, throughout. Let these earth and heaven for your sake, yield everything by powers to fulfil your desire by grains.

    इस भाष्य को एडिट करें

    Translation

    For thee hath God granted this dominion, scattered thine enemies, made thee free from fear. Let Heaven and Earth, with wealth and strength fulfill all thy wishes.

    Footnote

    Thee: The King.

    इस भाष्य को एडिट करें

    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    ५−(ते) तव (राष्ट्रम्) राज्यम् (इह) संसारे (रोहितः) म० १। सर्वोत्पादकः परमेश्वरः (आ अहार्षीत्) आनीतवान् (वि) पृथग्भावे (आस्थत्) असु क्षेपणे-लुङ्। क्षिप्तवान् (मृधः) मृधु उन्दने हिंसायां च-क्विप्। हिंसकान्। शत्रून् (अभयम्) भयराहित्यम् (ते) तुभ्यम् (अभूत्) (तस्मै) तथाभूताय (ते) तुभ्यम् (द्यावापृथिवी) सूर्य्यभूमी (रेवतीभिः) अ० ३।४।७। धनवतीभिः (कामम्) कामनाम् (दुहाथाम्) तकारस्य थः। दुहाताम्। पूरयताम् (इह) राज्ये (शक्वरीभिः) अ० ३।१३।७। शक्लृ शक्तौ-वनिप्। शक्तिभिः ॥

    इस भाष्य को एडिट करें
    Top