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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 1/ मन्त्र 10
    ऋषिः - यम, मन्त्रोक्त देवता - त्रिष्टुप् छन्दः - अथर्वा सूक्तम् - पितृमेध सूक्त
    52

    रात्री॑भिरस्मा॒अह॑भिर्दशस्ये॒त्सूर्य॑स्य॒ चक्षु॒र्मुहु॒रुन्मि॑मीयात्। दि॒वा पृ॑थि॒व्यामि॑थु॒ना सब॑न्धू य॒मीर्य॒मस्य॑ विवृहा॒दजा॑मि ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    रात्री॑भि: । अ॒स्मै॒ । अह॑ऽभि: । द॒श॒स्ये॒त् । सूर्य॑स्य । चक्षु॑: । मुहु॑: । उत् । मि॒मी॒या॒त् । दि॒वा । पृ॒थि॒व्या । मि॒थु॒ना । सब॑न्धू॒ इति॒ सऽब॑न्धू । य॒मी: । य॒मस्य॑ । वि॒वृ॒हा॒त् । अजा॑मि ॥१.१०॥


    स्वर रहित मन्त्र

    रात्रीभिरस्माअहभिर्दशस्येत्सूर्यस्य चक्षुर्मुहुरुन्मिमीयात्। दिवा पृथिव्यामिथुना सबन्धू यमीर्यमस्य विवृहादजामि ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    रात्रीभि: । अस्मै । अहऽभि: । दशस्येत् । सूर्यस्य । चक्षु: । मुहु: । उत् । मिमीयात् । दिवा । पृथिव्या । मिथुना । सबन्धू इति सऽबन्धू । यमी: । यमस्य । विवृहात् । अजामि ॥१.१०॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 18; सूक्त » 1; मन्त्र » 10
    Acknowledgment

    हिन्दी (4)

    विषय

    भाई-बहिन के परस्पर विवाह के निषेध का उपदेश।

    पदार्थ

    (रात्रीभिः) रात्रियोंके साथ और (अहभिः) दिनों के साथ (अस्मै) इस [भाई] को (सूर्यस्य) सूर्य की (चक्षुः) ज्योति (दशस्येत्) [सुमति] देवे और (मुहुः) बारम्बार (उत् मिमीयात्)फैली रहे। (दिवा) सूर्य के साथ और (पृथिव्या) पृथिवी के साथ (मिथुना) जोड़ा-जोड़ा (सम्बन्धू) भाई के साथवाले हैं, [फिर] (यमीः) जोड़िया बहिन (यमस्य)जोड़िया भाई के (अजामि) बिना सम्बन्ध से (विवृहात्) उद्यम करे ॥१०॥

    भावार्थ

    स्त्री का वचन है। हेभाई ! सूर्य के प्रकाश में आँख खोल कर देख कि राति और दिन बहिन-भाई होकर पति-पत्नी भाव से रहते हैं और सूर्य और पृथिवी के बीच सब पदार्थों में भी यहीसम्बन्ध है, फिर मैं भी बहिन होकर अपने भाई से ही विवाह करूँ ॥१०॥

    टिप्पणी

    १०−(रात्रीभिः) (अस्मै) यमाय (अहभिः) अहोभिः। दिनैः (दशस्येत्) दद्यात् सुमतिम् (सूर्यस्य) (चक्षुः) प्रकाशकं तेजः (मुहुः) बारम्बारम् (उन्मिमीयात्) माङ् माने, परस्मैपदंछान्दसम्। ऊर्ध्वं मानं गमनं कुर्यात् (दिवा) सूर्येण सह (पृथिव्या) भूम्या सह (मिथुना) स्त्रीपुरुषयोर्युग्मे। द्वन्द्वे (सबन्धू) बन्धुना भ्रात्रा सहिते (यमीः) विसर्गश्छान्दसः-म० ८। यमी। एकगर्भजायमाना यमजा भगिनी (यमस्य) म० ८।एकगर्भजायमानस्य यमजस्य। भ्रातुः (वि वृहात्) वृहू उद्यमने। विविधं यत्नंकुर्यात् (अजामि) अजामित्वेन। सम्बन्धराहित्येन ॥

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    विषय

    सुदूर सम्बन्ध

    पदार्थ

    १. यम चाहता है कि उसकी बहिन [मद् अन्येन] उससे भिन्न जिस भी पुरुष को पति रूप में प्राप्त करे (रात्रीभिः अहभिः) = रात-दिन (अस्मा) = अपने इस पति के लिए (दशास्येत्) = आराम देने की इच्छा करें। उसकी बहिन व बहिन के पति पर (सूर्यस्य चक्षुः) = सूर्य की आँख (मुहुः) = बारम्बार (उन्मिमीयात्) = खुले, अर्थात् इनका जीवन दीर्घ हो। २. जैसे (दिवा पृथिव्या) = द्युलोक पृथिवीलोक के साथ मिथुना सबन्धू-परस्पर साथ-साथ समान बन्धुत्ववाले होते हैं, उसीप्रकार ये भी बन्धुत्ववाले हों। द्युलोक व पृथिवीलोक कितने दूर-दूर हैं। इसीप्रकार यम चाहता है कि उसकी बहिन व उसके भावी पति भी सुदूर स्थितिवाले हों। (यमी:) = संयत जीवनवाली मेरी बहिन (यमस्य) = मुझ यम के (अजामि) = [अभ्रातरम्] असम्बद्ध व्यक्ति को, अर्थात् किसी सुदूर गोत्रवाले को ही विवृहात्-बढ़ानेवाली हो-उसी के वंश की वृद्धि करनेवाली बने।

    भावार्थ

    पत्नी दिन-रात पति के सुख का ध्यान करे। परस्पर मेल व प्रेम से ये पति पत्नी दीर्घजीवी हों। युलोक व प्रथिवीलोक जिस प्रकार परस्पर दूरी पर हैं, इसीप्रकार दुरस्थ पुरुष ही पति-पत्नी सम्बन्धवाले बनें, भिन्न गोत्रों में ही सम्बन्ध हो।

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    भाषार्थ

    (रात्रीभिः) रात्रियों के साथ रहनेवाले दिन, और (अहभिः) दिनों के साथ रहनेवाली रात्रियां, इन दृष्टान्तों द्वारा, (अस्मै) इस यम के लिये, परमेश्वर (दशस्येत्) मार्ग का निर्देश करे। देख, (सूर्यस्य चक्षुः) सूर्य जो इन दोनों का अर्थात् रात और दिन का पिता है, उसकी आंख (मुहुः) बार-बार (उन्मिमीयात्) इन घटनाओं को देख रही है। और देख, द्यूलोक के साथ पृथिवी, और (पृथिव्या) पृथिवी के साथ द्युलोक (मिथुना) ये भी दो मिथुन हैं, पति-पत्नीरूप जोड़े है, (सबन्धू) और एक ही परमेश्वर इन का समान रूप में बन्धु है, पिता है परन्तु (यमीः) यमी ही (यमस्य) यम के (अजामि) बन्धुत्व के बिना (विवृहात्) इस जगत् में उद्यमशील बनी रहे। [दशस्येत् = दश् भाषार्थः।]

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    विषय

    सन्तान के निमित्त पति-पत्नी का परस्पर व्यवहार।

    भावार्थ

    वह परमात्मा (रात्रीभिः) बहुत सी रातों और (अहभिः) बहुत से दिन गुजर जाने पर स्वयं ही (अस्मै) इस पुरुष को (दशस्येत्) उसका मनोरथ पुत्र आदि दे दिया करता है। इसलिये सम्भव है कि (सूर्यस्य) सर्वप्रेरक उस परमेश्वर की (चक्षुः) दयामय दृष्टि, हम निरपत्य पति पत्नी पर (मुहुः) फिर भी (उत् मिमीयात्) पड़े। और हम (दिवा) प्रकाशमान सूर्य के और (पृथिव्या) पृथिवो के समान परस्पर (मिथुना) जोड़े बने हुए हम (सबन्धू) समान रूप से बन्धू होते हुए (यमीः) मैं पुनः संयमी, यमी अर्थात् व्रतनिष्ट होकर (यमस्य) व्रतनिष्ठ तुझ पति के साथ (अजामि) दोषरहितरूप से (विवृहात्) संग करूं। चिरकाल तक यदि अपत्य उत्पन्न न हो तो स्त्री का विचार होता है कि कुछ वर्षों में ईश्वर की कृपा दृष्टि से पुनः पुत्रलाभ हो। या सूर्य—पृथिवी के समान दोनों पति पत्नी, परस्पर एकत्र रहकर भी ब्रह्मचारी और व्रती रह कर तप करें तो पुनः पुत्रोत्पन्न कर सकें।

    टिप्पणी

    (च०) ‘बिभृयात्’ इति ऋ०। ‘उन्मिमील्यात्’ इति ह्विटनिकामितः। ‘आमिमीयात्’ इति तै० ब्रा०।

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    अथर्वा ऋषिः। यमो मन्त्रोक्ता वा देवताः। ४१, ४३ सरस्वती। ४०, रुद्रः। ४०-४६,५१,५२ पितरः। ८, १५ आर्षीपंक्ति। १४,४९,५० भुरिजः। १८, २०, २१,२३ जगत्यः। ३७, ३८ परोष्णिक्। ५६, ५७, ६१ अनुष्टुभः। ५९ पुरो बृहती शेषास्त्रिष्टुभ्। एकाशीयृचं सूक्तम्॥

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Victory, Freedom and Security

    Meaning

    Yami: I wish the eye of the sun were to open again and again, and the days with nights and the nights with days were to favour and enlighten him that just as the sun is in union with the earth together, so would Yamis too like nights join Yama, the day, as strangers, in love.

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    Translation

    By nights, by days one may pay reverence to him: the sun’s eye may open for a moment; with heaven, with earth paired of near connection;-Yami must bear the unbrotherly (conduct) of Yama.

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    Translation

    Let nights and days teach wisdom to this Yama, let the light of the Sun fall on him again and again to open his eyes. If both the Sun and Earth can live together, why cannot I live with Yama discarding our relation of a brother and sister.

    Footnote

    Yami speaks. If days and nights being brother and sister can live as husband and wife, and the Sun and Earth mutually related can live as husband and wife, then why can’t I, his sister live with him as wife, casting aside our near relation. He should open his eyes and learn wisdom from these material objects. See Rig, 10-10-9.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    १०−(रात्रीभिः) (अस्मै) यमाय (अहभिः) अहोभिः। दिनैः (दशस्येत्) दद्यात् सुमतिम् (सूर्यस्य) (चक्षुः) प्रकाशकं तेजः (मुहुः) बारम्बारम् (उन्मिमीयात्) माङ् माने, परस्मैपदंछान्दसम्। ऊर्ध्वं मानं गमनं कुर्यात् (दिवा) सूर्येण सह (पृथिव्या) भूम्या सह (मिथुना) स्त्रीपुरुषयोर्युग्मे। द्वन्द्वे (सबन्धू) बन्धुना भ्रात्रा सहिते (यमीः) विसर्गश्छान्दसः-म० ८। यमी। एकगर्भजायमाना यमजा भगिनी (यमस्य) म० ८।एकगर्भजायमानस्य यमजस्य। भ्रातुः (वि वृहात्) वृहू उद्यमने। विविधं यत्नंकुर्यात् (अजामि) अजामित्वेन। सम्बन्धराहित्येन ॥

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