अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 1/ मन्त्र 19
रप॑द्गन्ध॒र्वीरप्या॑ च॒ योष॑णा न॒दस्य॑ ना॒दे परि॑ पातु नो॒ मनः॑। इ॒ष्टस्य॒मध्ये॒ अदि॑ति॒र्नि धा॑तु नो॒ भ्राता॑ नो ज्ये॒ष्ठः प्र॑थ॒मो वि वो॑चति ॥
स्वर सहित पद पाठरप॑त् । ग॒न्ध॒र्वी: । अप्या॑ । च॒ । योष॑णा । न॒दस्य॑ । ना॒दे । परि॑ । पा॒तु॒ । न॒: । मन॑: । इ॒ष्टस्य॑ । मध्ये॑ । अदि॑ति: । नि । धा॒तु॒ । न॒:। भ्राता॑ । न॒: । ज्ये॒ष्ठ: । प्र॒थ॒म: । वि । वो॒च॒ति॒ ॥१.१९॥
स्वर रहित मन्त्र
रपद्गन्धर्वीरप्या च योषणा नदस्य नादे परि पातु नो मनः। इष्टस्यमध्ये अदितिर्नि धातु नो भ्राता नो ज्येष्ठः प्रथमो वि वोचति ॥
स्वर रहित पद पाठरपत् । गन्धर्वी: । अप्या । च । योषणा । नदस्य । नादे । परि । पातु । न: । मन: । इष्टस्य । मध्ये । अदिति: । नि । धातु । न:। भ्राता । न: । ज्येष्ठ: । प्रथम: । वि । वोचति ॥१.१९॥
भाष्य भाग
हिन्दी (4)
विषय
विद्वानों के कर्त्तव्य का उपदेश।
पदार्थ
(गन्धर्वीः) विद्वानोंको धारण करनेवाली, (अप्या) सत्कर्मों में प्रसिद्ध (च) और (योषणा) सेवने योग्य [वेदवाणी] (रपत्) स्पष्ट कहती है−कि वह [वेदवाणी] (नदस्य) स्तोता [गुणज्ञ] पुरुषके (नादे) सत्कार में (नः) हमारे (मनः) मन [वा विज्ञान] की (परि) सब ओर से (पातु) रक्षा करे। (अदितिः) अखण्ड वेदवाणी (इष्टस्य) अभीष्ट सुख के (मध्ये) बीचमें (नः) हमें (नि) नित्य (धातु) रक्खे, (भ्राता) भाई [के समान हितकारी] (ज्येष्ठः) अतिश्रेष्ठ, (प्रथमः) मुख्य पुरुष (नः) हम को (वि) अनेक प्रकार (वोचति) उपदेश करे ॥१९॥
भावार्थ
वेदवाणी हमें उपदेशकरती है कि मनुष्य गुणों के जानने से अपनी रक्षा करता और अभीष्ट सुख पाता है, श्रेष्ठ विद्वान् परस्पर यही उपदेश करे ॥१९॥
टिप्पणी
१९−(रपत्) रपति। उपदिशति (गन्धर्वीः)गौः स्तोतृनाम-निघ० ३।१६। स्तोतॄणां धारयित्री (अप्या) म० ४। सत्कर्मसु भवा (च) (योषणा) युष भजने-ल्यु, टाप्। सेवनीया (नदस्य) नदः स्तोतृनाम-निघ० ३।१६।स्तोतुः। गुणज्ञस्य (नादे) नदतिरर्चतिकर्मा-निघ० ३।१४। अर्चने। सत्कारे (परि)सर्वतः (पातु) रक्षतु (नः) अस्माकम् (मनः) विज्ञानम्। अन्तःकरणम् (इष्टस्य)अभीष्टसुखस्य (मध्ये) (अदितिः) अखण्डिता वेदवाणी (नि) नित्यम् (धातु) दधातु (नः)अस्मान् (भ्राता) भ्रातेव हितकारी (नः) अस्माकम् (ज्येष्ठः) प्रशस्यतमः (प्रथमः)मुख्यः पुरुषः (वि) विविधम् (वोचति) वक्तु। उपदिशतु ॥
विषय
स्तवन+वेदज्ञान+यज्ञ [रपद-गन्धर्वी:+अप्या]
पदार्थ
१. एक घर में गृहिणी (रपत्) = प्रात: उठकर प्रभु के स्तोत्रों का उच्चारण करती है। इससे बच्चों में भी भक्तिभाव का उदय होता है। यह गृहिणी वेदवाणी का धारण करती है। स्वाध्याय को जीवन का नियमित अंग बनाती है। यह स्वाध्याय ही तो जीवन को पवित्र बनाता है। (च) = और यह (अप्या) = [अप्यु साध्वी] कर्मों में उत्तम होती है। वेदज्ञान के अनुसार कर्मों में प्रवृत्त रहती है। इस कर्मशीलता के कारण ही (योषणा) = यह अवगुणों से अपने को पृथक् करनेवाली तथा गुणों से अपने को संपृक्त करनेवाली होती है। २. गृहपति भी प्रार्थना करता है कि (नदस्य) = स्तवन करनेवालों में मेरे स्तवन करने पर (न:) = हमारे (मन:) = मनों को (अदिति:) = अदीना देवमाता-अथवा अखण्डित [अ-दिति] यज्ञक्रिया, अथवा अविनाशी प्रभु (परिपातु) = सुरक्षित करें। प्रभु-स्तवन में लगा हुआ मेरा मन वासनाओं से आक्रान्त होगा ही कैसे? (न:) = हम सब [इस घर के व्यक्तियों] को (अदितिः) = वे अविनाशी प्रभु (इष्टस्य मध्ये निदधातु) = यज्ञों के बीच में स्थापित करें-प्रभु कृपा से हमारा जीवन यज्ञमय हो। (न:) = हमारा (भ्राता) = भरण करनेवाला (न:) = हममें सबसे बड़ा, (प्रथमः) = प्रथम स्थान में स्थित व्यक्ति (विवोचति) = हमारे लिए विविध क्रियाओं का उपदेश करता है। उस बड़े के कहने के अनुसार ही घर में हम सब क्रियाओं को करते हैं।
भावार्थ
आदर्श घर वही है जिसमें पति-पत्नी 'प्रभु का स्तवन करनेवाले, स्वाध्यायशील व पवित्र वृत्तिवाले' हैं। प्रभु कृपा से उनका मन यज्ञप्रवण बना रहता है। उस घर में यह नियम होता है कि बड़े ने कहा और छोटे ने किया। यही देवपूजा है।
भाषार्थ
(गन्धर्वी) वेदवाणी के धारक परमेश्वर की वेदवाणी (रपद्= रपत्) हमें जीवनीय तत्त्वों का कथन करती है, जैसे कि (अप्या) प्राणप्रिया या जलवत् शीतलस्वभावा (योषणा) पत्नी अपने पति को परामर्शों का कथन करती है। (नदस्य) वेदों का अन्तर्नाद करनेवाले परमेश्वर का वैदिक अन्तर्नाद होने पर वह परमेश्वर (नः) हमारी (मनः) मननशक्ति की (परि पातु) सब प्रकार से रक्षा करता है। (इष्टस्य मध्ये) जीवन में वस्तुतः अभीष्ट मार्ग क्या है, इसके निर्णय में (अदितिः) अनश्वर नित्या वेदवाणी (नः) हमें (नि धातु) यथार्थ मार्ग में स्थापित करे। तदनन्तर (भ्राता) सब, सब का भरण-पोषण करनेवाला (प्रथमः ज्येष्ठः) सर्वश्रेष्ठ परमेश्वर (नः) हमें (वि वोचति) विशेषतया जीवनमार्ग का उपदेश करता है।
टिप्पणी
[गन्धर्वः= गां वेदवाणीं धरति = परमेश्वरः; तस्य वाणी गन्धर्वी। गान्धर्वी = वाक् (निघं० १।११), ह्रस्वः छान्दसः। अप्या= आपः प्राणाः, तत्-प्रिया। अदितिः = (मन्त्र १८)। च= पादपूरणार्थः (आप्टे)।]
विषय
सन्तान के निमित्त पति-पत्नी का परस्पर व्यवहार।
भावार्थ
(गन्धर्वी) गौ, वाणी को धारण करने वाली (अप्या च) और अप्=कर्म और ज्ञान को देने में हितकर या प्रजा की हितकर (घोषणा) अप्या=जलमयी स्त्री के समान सेवन करने योग्य (नदस्य) अति समृद्ध ऐश्वर्यवान्, या स्तुत्य परमेश्वर के (नादे) ऐश्वर्य या महिमा के स्तवन में लगा कर इस प्राकृतिक अपार संसार में (नः) हमारे (मन) मनन सामर्थ्य की (परि पातु) सब प्रकार से रक्षा करे। वही (अदितिः) अखण्ड परमेश्वर की अखण्ड, नित्य वेद वाणी हमारे मनको (इष्टस्य मध्ये) इष्ट, अभिलषित, हितकारी, सुखकर कार्य में (नि धातु) स्थापित करे। (नः) हम में से (प्रथमः) सब से श्रेष्ठ और (ज्येष्ठः) बड़ा, पूजनीय महान् परमेश्वर ही सब का (भ्राता) भरण पोषण करने हारा है। सब से प्रथम वही हमें (वि वोचति) नाना प्रकार से उपदेश करता है।
टिप्पणी
(द्वि०) यातु मे इति ऋ०।
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
अथर्वा ऋषिः। यमो मन्त्रोक्ता वा देवताः। ४१, ४३ सरस्वती। ४०, रुद्रः। ४०-४६,५१,५२ पितरः। ८, १५ आर्षीपंक्ति। १४,४९,५० भुरिजः। १८, २०, २१,२३ जगत्यः। ३७, ३८ परोष्णिक्। ५६, ५७, ६१ अनुष्टुभः। ५९ पुरो बृहती शेषास्त्रिष्टुभ्। एकाशीयृचं सूक्तम्॥
इंग्लिश (4)
Subject
Victory, Freedom and Security
Meaning
Gandharvi, Vedic voice that holds and expresses the voice of the Lord of the universe, which is adorable and inspiring and which eternally proclaims the divine Word, may, we pray, establish and promote our mind and soul in the celebration of the resounding flood of the divine voice. And may Aditi, Mother Nature, and her eternal voice, and Agni, leading light of life, first and highest brotherly supporter, establish us at the centre of our desire and fulfilment and continue to speak to us of nature, knowledge and wisdom.
Translation
Prateth the Gandharvi and watery woman; in the noise of the noisy one let (her) protect our mind; let Aditi set us in the midst of what is desired; our oldest brother shall first speak out.
Translation
N/A
Translation
Vedic speech, the preserver of the learned, the teacher of knowledge and action, worthy of adoration, clearly sings the glory of God. May He protect from all sides our knowledge for honoring His eulogizer. May the Vedic speech ever fulfill our desires. God, the Sustainer, Most Gracious, Foremost, instructs us first of all.
Footnote
See Rig, 10-11-2. Griffith interprets Gandharvi to be the daughter of Surabbi, one of the daughters of Dakshan and the mother of the race of horses. This interpretation is unacceptable as there is no history in the Vedas. The word means the Vedic speech that preserves the learned.
संस्कृत (1)
सूचना
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः
१९−(रपत्) रपति। उपदिशति (गन्धर्वीः)गौः स्तोतृनाम-निघ० ३।१६। स्तोतॄणां धारयित्री (अप्या) म० ४। सत्कर्मसु भवा (च) (योषणा) युष भजने-ल्यु, टाप्। सेवनीया (नदस्य) नदः स्तोतृनाम-निघ० ३।१६।स्तोतुः। गुणज्ञस्य (नादे) नदतिरर्चतिकर्मा-निघ० ३।१४। अर्चने। सत्कारे (परि)सर्वतः (पातु) रक्षतु (नः) अस्माकम् (मनः) विज्ञानम्। अन्तःकरणम् (इष्टस्य)अभीष्टसुखस्य (मध्ये) (अदितिः) अखण्डिता वेदवाणी (नि) नित्यम् (धातु) दधातु (नः)अस्मान् (भ्राता) भ्रातेव हितकारी (नः) अस्माकम् (ज्येष्ठः) प्रशस्यतमः (प्रथमः)मुख्यः पुरुषः (वि) विविधम् (वोचति) वक्तु। उपदिशतु ॥
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