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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 1/ मन्त्र 12
    ऋषिः - यम, मन्त्रोक्त देवता - त्रिष्टुप् छन्दः - अथर्वा सूक्तम् - पितृमेध सूक्त
    62

    किंभ्राता॑स॒द्यद॑ना॒थं भवा॑ति॒ किमु॒ स्वसा॒ यन्निरृ॑तिर्नि॒गच्छा॑त्। काम॑मूताब॒ह्वे॒तद्र॑पामि त॒न्वा॑ मे त॒न्वं सं पि॑पृग्धि ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    किम् । भ्राता॑ । अ॒स॒त् । यत् । अ॒ना॒थम् । भवा॑ति । किम् । ऊं॒ इति॑ । स्वसा॑ । यत् । नि:ऽऋ॑ति: । नि॒ऽगच्छा॑त् । काम॑ऽमूता । ब॒हू । ए॒तत् । र॒पा॒मि॒ । त॒न्वा᳡ । मे॒ । त॒न्व᳡म् । सम् । पि॒पृ॒ग्धि॒ ॥१.१२॥


    स्वर रहित मन्त्र

    किंभ्रातासद्यदनाथं भवाति किमु स्वसा यन्निरृतिर्निगच्छात्। काममूताबह्वेतद्रपामि तन्वा मे तन्वं सं पिपृग्धि ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    किम् । भ्राता । असत् । यत् । अनाथम् । भवाति । किम् । ऊं इति । स्वसा । यत् । नि:ऽऋति: । निऽगच्छात् । कामऽमूता । बहू । एतत् । रपामि । तन्वा । मे । तन्वम् । सम् । पिपृग्धि ॥१.१२॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 18; सूक्त » 1; मन्त्र » 12
    Acknowledgment

    हिन्दी (4)

    विषय

    भाई-बहिन के परस्पर विवाह के निषेध का उपदेश।

    पदार्थ

    (भ्राता) भाई (किम्)क्या (असत्) होवे, (यत्) जब [बहिन को] (अनाथम्) बिन सहारा (भवाति) होवे, (उ) और (स्वसा) बहिन (किम्) क्या है (यत्) जब [भाई पर] (निर्ऋतिः) महाविपत्ति (निगच्छात्) आपड़े। (काममूता) काम से बँधी हुई मैं (बहु) बहुत कुछ (एतत्) यह (रपामि) कहती हूँ, (तन्वा) [अपने] शरीर से (मे) मेरे (तन्वम्) शरीर को (संपिपृग्धि) मिलकर छू ॥१२॥

    भावार्थ

    स्त्री का वचन है। वहभाई नहीं है जो बहिन की विपत्ति में सहाय न करे और न वह बहिन है जो भाई के कष्टको न मिटावे। मैं काम से पीड़ित होकर तेरे साथ विवाह के लिये कहती हूँ॥१२॥

    टिप्पणी

    १२−(किम्) किमर्थम्। निष्फलम् (भ्राता) सहोदरः (असत्) भवेत् (यत्) यदि (अनाथम्) अनाथत्वम्। अनाश्रयत्वम् (भवाति) भवेत्, भगिन्याम् (किम्) निष्फलम् (उ)समुच्चये (स्वसा) भगिनी (यत्) यदि (निर्ऋतिः) कृच्छ्रापत्तिः (निगच्छात्)निपतेत् भ्रातरि (काममूता) मूङ् बन्धने-क्त। कामेन बद्धा पीडिता (बहु)नानाप्रकारेण (एतत्) इदं वचनम् (रपामि) कथयामि (तन्वा) स्वशरीरेण (मे) मम (सम्)संगत्य (पिपृग्धि) पृची सम्पर्के। छान्दसःश्लुः, अभ्यासस्य इत्वम्। संपर्चय ॥

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    विषय

    संरक्षण व सुस्थिति

    पदार्थ

    १. यमी परीक्षा लेती हुई कहती है कि (यत) = यदि (अनाथं भवाति) = बहिन अनाथ-रक्षक से रहित होती है तो (किं भ्राता असत्) = वह भाई कुत्सित होता है। भाई को तो बहिन का सदा रक्षक होना चाहिए, (उ) = और (यत्) = यदि भाई को (निर्ऋति:) = दुर्गति व कष्ट (निगच्छात्) = प्राप्त होता है तो वह (किं स्वसा) = कुत्सित ही तो बहिन है, अर्थात् हे यम! तू सदा मेरा रक्षक बन और मैं तुझे सदा सुख पहुँचानेवाली बनें। ऐसा ही हमारा सम्बन्ध बना रहे। २. काम-मता [मव बन्धने]-प्रेमभाव से बद्ध हुई-हुई (एतत्) = यह बात (बहुरपामि) = फिर-फिर मैं कहती हूँ। तू में (तन्वा) = मेरे शरीर से (तन्वम्) = अपने शरीर को (संपिग्धि) = सम्यक् संपृक्त करनेवाला हो। इसप्रकार हम दो होते हुए भी एक हो जाएँ।

    भावार्थ

    पति पत्नी का रक्षण करता है। पत्नी पति को सुस्थिति प्राप्त कराती है। परस्पर प्रेमभाव से युक्त होकर वे एक-दूसरे की न्यूनताओं को दूर करनेवाले होते हैं। पति पत्नी वस्तुत: एक दूसरे के पूरक हैं।

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    भाषार्थ

    (किम्) क्या (असत्) है (भ्राता) भाई, (यत्) जिस के होते बहिन (अनाथं भवाति) अनाथ होती है, और (किम् उ) क्या है (स्वसा) बहिन, (यत्) जिस के होते भाई को (निर्ऋतिः) कृच्छ्रापत्ति (निगच्छात्) प्राप्त होती है। हे भाई ! (काममूता) पुत्र की कामना से बन्धी हुई मैं (एतत् बहु) यह बहुत (रपामि) स्पष्ट कथन कर रही हूं।‌ तू (तन्वा) निज तनू द्वारा, (मे तन्वम्) मेरी तनू के साथ, (सं पिपृग्धि) सम्यक् सम्पर्क कर।

    टिप्पणी

    [मुता = मू बन्धने। निर्ऋतिः= भाई अकेला रह जाय, और कष्ट भोगे- यह भी बहिन के होते ठीक नहीं। इस प्रकार यमी यम को यह सुझाती है कि हमारा परस्पर विवाह हो जाने पर न मैं अनाथ रहूंगी, और न तुम ही कष्ट भोगते रहोगे। अनाथम्= भवाति का क्रियाविशेषण।]

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    विषय

    सन्तान के निमित्त पति-पत्नी का परस्पर व्यवहार।

    भावार्थ

    इस प्रकार नियोग अर्थात् आज्ञा पूर्वक अपने से अन्य पति कर लेने की आज्ञा देते हुए पुत्र उत्पादन में असमर्थ पति के प्रति स्त्री लज्जावश पुनः अपने पति को कहती हैं। हे प्रियतम ! (किम्) क्या (भ्राता असत्) आप भाई हैं (यंत्) कि जिससे आप (अनाथम्) नाथ के समान नहीं (भवति) आचरण करते ? और (किम् उ) क्या मैं भी (स्वसा) आपकी भगिनी हूं कि परस्पर स्वयं पुत्र उत्पन्न करने में हमें (निर्ऋतिः) पाप (निगच्छात्) लगे ? यद्यपि मैं आपकी वर्त्तमान में पुत्र उत्पन्न करने में असमर्थता, नपुंसकता एवं कुष्ठ आदि व्याधि के विषय में जानती हूं तो भी मैं (काममूता) आप के प्रति अति अभिलाषा से आविष्ट होकर (एतत् बहु) यह सब, बहुत कुछ (रपामि) कह रही हूं। मेरी इच्छा यही है कि (तन्वा) अपने देह से (मे तन्वम्) इस मेरे शरीर को (सं पिपृग्धि) भली प्रकार आलिंगन करो।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    अथर्वा ऋषिः। यमो मन्त्रोक्ता वा देवताः। ४१, ४३ सरस्वती। ४०, रुद्रः। ४०-४६,५१,५२ पितरः। ८, १५ आर्षीपंक्ति। १४,४९,५० भुरिजः। १८, २०, २१,२३ जगत्यः। ३७, ३८ परोष्णिक्। ५६, ५७, ६१ अनुष्टुभः। ५९ पुरो बृहती शेषास्त्रिष्टुभ्। एकाशीयृचं सूक्तम्॥

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Victory, Freedom and Security

    Meaning

    Yami: O Yama, what? Then have you become a supporter without support? And I, without support and care, become a stream of life, bereft and forlorn, going away elsewhere in search of another? Love lorn, I am babbling so much, pray join me body with body.

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    Translation

    What should brother be when there is no protector ? or what sister, when destruction impends ? Impelled by desire, I prate thus much; mingle thou thy body with my body.

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    Translation

    Is he a brother, who leaves the sister helpless? Is she a sister who saves not his brother from destruction? Impelled by lust I utter these many words. Come near, and hold me in thy close embrace.

    Footnote

    See Rig, 10-10-11. Destruction: Utter extinction of the family for refusal to marry.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    १२−(किम्) किमर्थम्। निष्फलम् (भ्राता) सहोदरः (असत्) भवेत् (यत्) यदि (अनाथम्) अनाथत्वम्। अनाश्रयत्वम् (भवाति) भवेत्, भगिन्याम् (किम्) निष्फलम् (उ)समुच्चये (स्वसा) भगिनी (यत्) यदि (निर्ऋतिः) कृच्छ्रापत्तिः (निगच्छात्)निपतेत् भ्रातरि (काममूता) मूङ् बन्धने-क्त। कामेन बद्धा पीडिता (बहु)नानाप्रकारेण (एतत्) इदं वचनम् (रपामि) कथयामि (तन्वा) स्वशरीरेण (मे) मम (सम्)संगत्य (पिपृग्धि) पृची सम्पर्के। छान्दसःश्लुः, अभ्यासस्य इत्वम्। संपर्चय ॥

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