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  • अथर्ववेद - काण्ड 11/ सूक्त 1/ मन्त्र 27
    सूक्त - ब्रह्मा देवता - ब्रह्मौदनः छन्दः - अतिजागतगर्भा जगती सूक्तम् - ब्रह्मौदन सूक्त

    शु॒द्धाः पू॒ता यो॒षितो॑ य॒ज्ञिया॑ इ॒मा ब्र॒ह्मणां॒ हस्ते॑षु प्रपृ॒थक् सा॑दयामि। यत्का॑म इ॒दम॑भिषि॒ञ्चामि॑ वो॒ऽहमिन्द्रो॑ म॒रुत्वा॒न्त्स द॑दादि॒दं मे॑ ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    शु॒ध्दा: । पू॒ता: । यो॒षित॑: । य॒ज्ञिया॑: । इ॒मा: । ब्र॒ह्मणा॑म् । हस्ते॑षु । प्र॒ऽपृ॒थक् । सा॒द॒या॒मि॒ । यत्ऽका॑म: । इ॒दम् । अ॒भि॒ऽसि॒ञ्चामि॑ । व॒: । अ॒हम् । इन्द्र॑: । म॒रुत्वा॑न् । स: । द॒दा॒त् । इ॒दम् । मे॒ ॥१.२७॥


    स्वर रहित मन्त्र

    शुद्धाः पूता योषितो यज्ञिया इमा ब्रह्मणां हस्तेषु प्रपृथक् सादयामि। यत्काम इदमभिषिञ्चामि वोऽहमिन्द्रो मरुत्वान्त्स ददादिदं मे ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    शुध्दा: । पूता: । योषित: । यज्ञिया: । इमा: । ब्रह्मणाम् । हस्तेषु । प्रऽपृथक् । सादयामि । यत्ऽकाम: । इदम् । अभिऽसिञ्चामि । व: । अहम् । इन्द्र: । मरुत्वान् । स: । ददात् । इदम् । मे ॥१.२७॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 11; सूक्त » 1; मन्त्र » 27

    पदार्थ -

    १. (इमा:) = ये (योषितः)=-स्त्रियों (शुद्धाः) = शुद्ध जीवनवाली, (पूताः) = पवित्र मानस भावनावाली व (यज्ञिया:) = यज्ञशीला हैं। इन्हें (ब्रह्मणाम्) = ज्ञानियों के (हस्तेषु) = हाथों में (पृथक्) = अलग-अलग (प्र सादयामि) = प्रकर्षेण बिठाता हूँ-स्थापित करता हूँ। एक का विवाह एक के ही साथ करता हूँ। एक युवति को एक युवक का ही जीवनसखा बनाता हूँ, २. (यत् काम:) = जिस कामनावाला होकर (अहम्) = मैं (व:) = तुम्हें (इदम् अभिषिञ्चामि) = इस अभिषेक क्रियावाला करता हूँ (सः मरुत्वान् इन्द्रः) = वह प्राणोंवाला-प्राणसाधना करनेवाला जितेन्द्रिय पुरुष (मे इदं ददात्) = मेरे लिए इस कामना को देनेवाला हो। पिता पुत्री को गृहस्थ में इसीलिए अभिषिक्त करता है कि वह सन्तान को जन्म देनेवाली बने। यदि उसे जीवन-साथी [पति] प्राणशक्ति-सम्पन्न व जितेन्द्रिय प्राप्त होता है, तो वह अवश्य उत्तम सन्तान को जन्म देनेवाली बनती है।

    भावार्थ -

    पिता अपनी कन्याओं को 'शुद्ध, पवित्र, यज्ञशील' बनाने का प्रयत्न करे। बड़ा होने पर उन्हें ज्ञानी पुरुषों के हाथों में अलग-अलग सौंपे। इनके पति प्राणसाधक व जितेन्द्रिय होते हुए उत्तम सन्तान को जन्म देनेवाले हों।

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