अथर्ववेद - काण्ड 11/ सूक्त 1/ मन्त्र 3
सूक्त - ब्रह्मा
देवता - ब्रह्मौदनः
छन्दः - चतुष्पदा शाक्वरगर्भा जगती
सूक्तम् - ब्रह्मौदन सूक्त
अग्नेऽज॑निष्ठा मह॒ते वी॒र्याय ब्रह्मौद॒नाय॒ पक्त॑वे जातवेदः। स॑प्तऋ॒षयो॑ भूत॒कृत॒स्ते त्वा॑जीजनन्न॒स्यै र॒यिं सर्व॑वीरं॒ नि य॑च्छ ॥
स्वर सहित पद पाठअग्ने॑ । अज॑निष्ठा:: । म॒ह॒ते । वी॒र्या᳡य । ब्र॒ह्म॒ऽओद॒नाय॑ । पक्त॑वे । जा॒त॒ऽवे॒द॒: । स॒प्त॒ऽऋ॒षय॑: । भू॒त॒ऽकृत॑: । ते । त्वा॒ । अ॒जी॒ज॒न॒न् । अ॒स्यै । र॒यिम् । सर्व॑ऽवीरम् । नि । य॒च्छ॒ ॥१.३॥
स्वर रहित मन्त्र
अग्नेऽजनिष्ठा महते वीर्याय ब्रह्मौदनाय पक्तवे जातवेदः। सप्तऋषयो भूतकृतस्ते त्वाजीजनन्नस्यै रयिं सर्ववीरं नि यच्छ ॥
स्वर रहित पद पाठअग्ने । अजनिष्ठा:: । महते । वीर्याय । ब्रह्मऽओदनाय । पक्तवे । जातऽवेद: । सप्तऽऋषय: । भूतऽकृत: । ते । त्वा । अजीजनन् । अस्यै । रयिम् । सर्वऽवीरम् । नि । यच्छ ॥१.३॥
अथर्ववेद - काण्ड » 11; सूक्त » 1; मन्त्र » 3
विषय - महते वीर्याय,ब्रह्मौदनाय पक्तवे
पदार्थ -
१. (अग्ने) = हे प्रगतिशील जीव! तू (महते वीर्याय) = महनीय वीर्य के लिए प्रशस्त पराक्रम के लिए-(अजनिष्ठाः) = प्रादुर्भूत हुआ है। हे (जातवेदः) = उत्पन्न ज्ञानवाले जीव! तू (ब्रह्मौदनाय पक्तवे) = ज्ञान के भोजन के परिपाक के लिए प्रादुर्भूत हुआ है। तूने शक्ति व ज्ञान का सम्पादन किया है। २. (ते) = वे (सप्त ऋषयः) = प्रभुपूजन करनेवाले [सप् to worship] व प्रभुपूजन द्वारा वासनाओं का संहार करनेवाले [ऋष् tokill] (भूतकृतः) = यथार्थ [सत्य] कमों को ही करनेवाले (त्वा अजीजनन्) = तुझे जन्म देनेवाले हुए। तू भी (अस्यै) = इस अपनी गृहपत्नी के लिए (सर्ववीरं रयिं नियच्छ) = सब वीर सन्तानोंवाले ऐश्वर्य को देनेवाला हो। गृहपति का यह कर्तव्य है कि संयत जीवन के द्वारा वह वीर सन्तानों को जन्म देनेवाला हो तथा उनके पालने के लिए पुरुषार्थ से आवश्यक ऐश्वर्य को जुटानेवाला बने।
भावार्थ -
गृहपति को शक्तिशाली व ज्ञानप्रधान जीवनवाला बनना योग्य है। वह वीर सन्तानों से युक्त हो और ऐश्वर्य को घर में प्राप्त करानेवाला बने।
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