अथर्ववेद - काण्ड 12/ सूक्त 4/ मन्त्र 53
यदि॑ हु॒तां यद्यहु॑ताम॒मा च॒ पच॑ते व॒शाम्। दे॒वान्त्सब्रा॑ह्मणानृ॒त्वा जि॒ह्मो लो॒कान्निरृ॑च्छति ॥
स्वर सहित पद पाठयदि॑। हु॒ताम् । यदि॑। अहु॑ताम् । अ॒मा । च॒ । पच॑ते । व॒शाम् । दे॒वान् । सऽब्रा॑ह्मणान् । ऋ॒त्वा । जि॒ह्म:। लो॒कात् । नि: । ऋ॒च्छ॒ति॒ ॥४.५३॥
स्वर रहित मन्त्र
यदि हुतां यद्यहुताममा च पचते वशाम्। देवान्त्सब्राह्मणानृत्वा जिह्मो लोकान्निरृच्छति ॥
स्वर रहित पद पाठयदि। हुताम् । यदि। अहुताम् । अमा । च । पचते । वशाम् । देवान् । सऽब्राह्मणान् । ऋत्वा । जिह्म:। लोकात् । नि: । ऋच्छति ॥४.५३॥
अथर्ववेद - काण्ड » 12; सूक्त » 4; मन्त्र » 53
विषय - ‘वशा’ शक्ति का वर्णन।
भावार्थ -
(यदि हुताम्) यदि दान दी हो, (यदि अहुताम्) दान न दी हो तो भी यदि गोपति (वशाम अमा च पचते) ‘वशा’ को अपने ही घर में पकाता है, वह (सब्राह्मणान्) ब्राह्मण सहित (देवान्) देवों के अति (ऋत्वा) अपराध करके (जिह्मः) कुटिलाचारी होकर (लोकात्) इस लोक से (निर्ऋच्छति) कष्ट पाकर निकलता है।
पूर्वोक्त सूक्त का शब्दार्थ वाक्यरचनानुसार कर दिया है। इस सूक्त की संगति अथर्ववेद के १० काण्ड के १० सूक्त के साथ लगाने से इस सूक्त का भावार्थ स्पष्ट हो जाता है। वहां भी तीन वशाओं का वर्णन है। “वशा द्यौर्वशा पृथिवी वशा विष्णुः प्रजापतिः”। इसी प्रकार यहां भी विलिप्ति, सूतवशा और दशा इन तीन वशाओं का वर्णन है। इस सूत्र में क्रम से नारद = विद्वान्, जीव। बृहस्पति = परमात्मा। विशेष विचार भूमिका भाग में करेंगे।
टिप्पणी -
(तृ०) ‘स ब्राह्मणान्नृत्वा’ इति बहुत्र।
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर - कश्यप ऋषिः। मन्त्रोक्ता वशा देवता। वशा सूक्तम्। १-६, ८-१९, २१-३१, ३३-४१, ४३–५३ अनुष्टुभः, ७ भुरिग्, २० विराड्, ३३ उष्णिग्, बृहती गर्भा, ४२ बृहतीगर्भा। त्रिपञ्चाशदृचं सूक्तम्॥
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