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यजुर्वेद अध्याय - 6

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  • यजुर्वेद - अध्याय 6/ मन्त्र 32
    ऋषिः - मधुच्छन्दा ऋषिः देवता - सभापती राजा देवता छन्दः - पंचपदा ज्योतिष्मती जगती, स्वरः - निषादः
    41

    इन्द्रा॑य त्वा॒ वसु॑मते रु॒द्रव॑त॒ऽइन्द्रा॑य त्वादि॒त्यव॑त॒ऽइन्द्रा॑य त्वाभिमाति॒घ्ने। श्ये॒नाय॑ त्वा सोम॒भृते॒ऽग्नये॑ त्वा रायस्पोष॒दे॥३२॥

    स्वर सहित पद पाठ

    इन्द्रा॑य। त्वा॒। वसु॑मत॒ इति॒ वसु॑ऽमते। रु॒द्रव॑त॒ इति॑ रु॒द्रऽव॑ते। इन्द्रा॑य। त्वा॒। आ॒दि॒त्यव॑त॒ इत्या॑दित्यऽव॑ते। इन्द्रा॑य। त्वा॒। अ॒भि॒मा॒ति॒घ्न इत्य॑भिमाति॒ऽघ्ने। श्ये॒नाय॑। त्वा॒। सो॒म॒भृत॒ इति॑ सोम॒ऽभृते॑। अ॒ग्नये॑। त्वा॒। रा॒य॒स्पो॒ष॒द इति॑ रायस्पोष॒दे ॥३२॥


    स्वर रहित मन्त्र

    इन्द्राय त्वा वसुमते रुद्रवते इन्द्राय त्वादित्यवते इन्द्राय त्वाभिमातिघ्ने । श्येनाय त्वा मोमभृतेग्नये त्वा रायस्पोषदे ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    इन्द्राय। त्वा। वसुमत इति वसुऽमते। रुद्रवत इति रुद्रऽवते। इन्द्राय। त्वा। आदित्यवत इत्यादित्यऽवते। इन्द्राय। त्वा। अभिमातिघ्न इत्यभिमातिऽघ्ने। श्येनाय। त्वा। सोमभृत इति सोमऽभृते। अग्नये। त्वा। रायस्पोषद इति रायस्पोषदे॥३२॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 6; मन्त्र » 32
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    संस्कृत (1)

    विषयः

    राज्यव्यवहारः सभाधीन एव तर्हि कस्मै प्रयोजनाय प्रजापुरुषैः सभापतिस्स्वीकार्य्य इत्युपदिश्यते॥

    अन्वयः

    हे सभापते! वसुमते वयं रुद्रवत इन्द्राय त्वा आदित्यवत इन्द्राय त्वा अभिमातिघ्न इन्द्राय त्वा सोमभृते श्येनाय त्वा रायस्पोषदेऽग्नये त्वा त्वां वृणुमः॥३२॥

    पदार्थः

    (इन्द्राय) परमैश्वर्य्याय (त्वा) त्वाम् (वसुमते) बहवो वसवश्चतुर्विंशतिवर्षब्रह्मचर्यसम्पन्ना विद्वांसो विद्यन्ते यत्र तस्मै कर्म्मणे (रुद्रवते) प्रशस्ताः कृतचतुश्चत्वारिंशद्वर्षब्रह्मचर्या विद्वांसो वीराः शत्रुरोदयितारो रुद्रा भवन्ति यत्र तस्मै (इन्द्राय) परमविद्याप्रकाशेनविद्याविदारकाय (त्वा) त्वाम् (अभिमातिघ्ने) येनाभिमानयुक्ताः शत्रवो हन्यन्ते तस्मै (श्येनाय) श्येनवत् प्रवर्त्तमानाय (त्वा) त्वाम् (सोमभृते) यः सोममैश्वर्य्यसमूहं बिभर्त्तीति तस्मै (अग्नये) विद्युदाद्याय (त्वा) त्वाम् (रायः) धनस्य (पोषदे) पुष्टिप्रदाय। सुपां सुलुग् [अष्टा॰७.१.३९] ङेः स्थाने शे इत्यादेशः॥ अयं मन्त्रः (शत॰३। ९। ४। ९-१०) व्याख्यातः॥३२॥

    भावार्थः

    य इन्द्रानिलयमार्काग्निवरुणचन्द्रवित्तेशानां गुणैर्युक्तो विद्वत्प्रियो विद्याप्रचारी सर्वेभ्यः सुखं दद्यात्, स एव सर्वै राजा मन्तव्य इति॥३२॥

    हिन्दी (1)

    विषय

    जो राज्य व्यवहार सभा के ही आधीन हो तो किसलिये प्रजाजनों को सभापति का स्वीकार करना चाहिये, यह अगले मन्त्र में उपदेश किया है॥

    पदार्थ

    हे सभापते! (वसुमते) जिस कर्म में चौबीस वर्ष ब्रह्मचर्य्य सेवन कर अच्छे-अच्छे विद्वान् होते हैं, (रुद्रवते) जिस में चवालीस वर्ष तक ब्रह्मचर्य्य सेवन करते हैं, उस (इन्द्राय) परमैश्वर्य्ययुक्त पुरुष के लिये (त्वा) आप को ग्रहण करते हैं। (आदित्यवते) जिसमें अड़तालीस वर्ष तक ब्रह्मचर्य्य सेवन कर सूर्य्यसदृश परम विद्वान् होते हैं, उस (इन्द्राय) उत्तम गुण पाने के लिये (त्वा) आप के (अभिमातिघ्ने) जिस कर्म में बड़े-बड़े अभिमानी शत्रुजन मारे जायें, उस (इन्द्राय) परमोत्कृष्ट शत्रुविदारक काम के लिये (त्वा) आप (सोमभृते) उत्तम ऐश्वर्य धारण करने हारे (श्येनाय) युद्धादि कामों में श्येनपक्षी के तुल्य लपट-भपट मारने वाले (त्वा) आप (रायस्पोषदे) धन की दृढ़ता देने के लिये और (अग्नये) विद्युत् आदि पदार्थों के गुण प्रकाश कराने के लिये (त्वा) आपको हम स्वीकार करते हैं॥३२॥

    भावार्थ

    जो इन्द्र, अग्नि, यम, सूर्य, वरुण और धनाढ्य के गुणों से युक्त, विद्वानों का प्रिय, विद्या का प्रचार करने वाला सबको सुख देवे, उसी को राजा मानना चाहिये॥३२॥

    मराठी (1)

    भावार्थ

    इंद्र (ऐश्वर्यवान) , अग्नी (ज्ञानी) , सूर्य (तेजस्वी) , वरुण (श्रेष्ठ) , यम (नियंता) , लक्ष्मीने युक्त, विद्वानांना प्रिय, विद्येचा प्रसार करणारा व सर्वांना सुख देणारा अशा व्यक्तीला राजा मानावे.

    इंग्लिश (2)

    Meaning

    O Lord, we appoint thee as a king, as thou possessest the vigour of a Vasu Brahmchari, as thou hast got the strength of a Rudra Brahmchari, as thou art full of splendour, full of knowledge like an Aditya Brahmchari, as thou hast the power of killing the proud foes, as thou art full of dignity, and art quick in attacking in the battle-field like a falcon, as thou strengthenest our finances, and advancest the knowledge of science.

    Meaning

    We elect and appoint you for Indra, honour and glory of the land, for the creation of Vasus, young men of 24 years standing of education, and for Rudras, young men of 44 years education who can rout the enemy. We appoint you for the honour and glory of education and creation of Adityas, heroes of 48 years education and training who can shatter the pride of the enemies of the land. We accept and appoint you for the force of eagle¬ like commandos of defence, for the lovers of peace and good health, for the development of energy and electricity and for the producers of wealth and prosperity.

    बंगाली (1)

    विषय

    রাজ্যব্যবহারঃ সভাধীন এব তর্হি কস্মৈ প্রয়োজনায় প্রজাপুরুষৈঃ সভাপতিস্স্বীকার্য়্য ইত্যুপদিশ্যতে ॥
    যে রাজ্য ব্যবহার সভারই অধীন তাহলে কীজন্য প্রজাদিগকে সভাপতির স্বীকার করা উচিত, ইহা পরবর্ত্তী মন্ত্রে উপদেশ করা হইয়াছে ॥

    पदार्थ

    পদার্থঃ- হে সভাপতে ! (বসুমতে) যে কর্মে চব্বিশ বর্ষ পর্য্যন্ত ব্রহ্মচর্য্য সেবন করিয়া ভাল-ভাল বিদ্বান্ হয় (রুদ্রবতে) যাহাতে চুয়াল্লিশ বর্ষ পর্য্যন্ত ব্রহ্মচর্য্য সেবন করে সেই (ইন্দ্রায়) পরমৈশ্বর্য্যযুক্ত পুরুষের জন্য (ত্বা) আপনাকে গ্রহণ করি, (আদিত্যবতে) যাহাতে আটচল্লিশ বর্ষ পর্য্যন্ত ব্রহ্মচর্য্য সেবন করিয়া সূর্য্য সদৃশ পরম বিদ্বান্ হইয়া থাকে সেই (ইন্দ্রায়) উত্তম গুণ পাইবার জন্য, (ত্বা) আপনার (অভিমাতিঘ্নে) যে কর্মে বড়-বড় অভিমানী শত্রুগণ মারা যায় সেই (ইন্দ্রায়) পরমোৎকৃষ্ট শত্রুবিদারক কর্ম হেতু, (ত্বা) আপনি (সোমভৃতে) উত্তম ঐশ্বর্য্য ধারণকারী (শ্যেনায়) যুদ্ধাদি কর্মে শ্যেনপক্ষী তুল্য আক্রমণকারী (ত্বা) আপনি (রায়স্পোষদে) ধনের পুষ্টি দেওয়ার জন্য এবং (অগ্নয়ে) বিদ্যুতাদি পদার্থের গুণপ্রকাশ কারী (ত্বা) আপনাকে আমরা স্বীকার করি ॥ ৩২ ॥

    भावार्थ

    ভাবার্থঃ- যে ইন্দ্র, অগ্নি, যম, সূর্য্য, বরুণ ও ধনাঢ্যের গুণযুক্ত বিদ্বান্দিগের প্রিয় বিদ্যার প্রচারক, সকলকে সুখ প্রদান করে, তাহাকে রাজা স্বীকার করা উচিত ॥ ৩২ ॥

    मन्त्र (बांग्ला)

    ইন্দ্রা॑য় ত্বা॒ বসু॑মতে রু॒দ্রব॑ত॒ऽইন্দ্রা॑য় ত্বাদি॒ত্যব॑ত॒ऽইন্দ্রা॑য় ত্বাভিমাতি॒ঘ্নে । শ্যে॒নায়॑ ত্বা সোম॒ভৃতে॒ऽগ্নয়ে॑ ত্বা রায়স্পোষ॒দে ॥ ৩২ ॥

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    ইন্দ্রায় ত্বেত্যস্য মধুচ্ছন্দা ঋষিঃ । সভাপতী রাজা দেবতা । পঞ্চপাজ্জ্যোতিষ্মতী জগতী ছন্দঃ । নিষাদঃ স্বরঃ ॥

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