अथर्ववेद - काण्ड 12/ सूक्त 4/ मन्त्र 3
कू॒टया॑स्य॒ सं शी॑र्यन्ते श्लो॒णया॑ का॒टम॑र्दति। ब॒ण्डया॑ दह्यन्ते गृ॒हाः का॒णया॑ दीयते॒ स्वम् ॥
स्वर सहित पद पाठकू॒टया॑ । अ॒स्य॒ । सम् । शी॒र्य॒न्ते॒ । श्लो॒णया॑ । का॒टम् । अ॒र्द॒ति॒ । ब॒ण्डया॑ । द॒ह्य॒न्ते॒ । गृ॒हा: । का॒णया॑ । दी॒य॒ते॒ । स्वम् ॥४.३॥
स्वर रहित मन्त्र
कूटयास्य सं शीर्यन्ते श्लोणया काटमर्दति। बण्डया दह्यन्ते गृहाः काणया दीयते स्वम् ॥
स्वर रहित पद पाठकूटया । अस्य । सम् । शीर्यन्ते । श्लोणया । काटम् । अर्दति । बण्डया । दह्यन्ते । गृहा: । काणया । दीयते । स्वम् ॥४.३॥
अथर्ववेद - काण्ड » 12; सूक्त » 4; मन्त्र » 3
भाषार्थ -
(कूटया) कूटनीति द्वारा (अस्य) इस क्षत्रिय राजा की प्रजाएं (सं शीर्यन्ते) जीर्ण-शीर्ण हो जाती हैं, (श्लोणया) लंगड़ीनीति के द्वारा (काटम्) काटे गए गढ़े में (अर्दति) दुःख भोगता है। (बण्डया) प्रलोभन की नीति द्वारा (गृहा) गृहवासी (दह्यन्ते) दग्ध हो जाते हैं, (काणया) निमीलन की नीति द्वारा (स्वम्) उस का निजधन (दीयते) क्षीण हो जाता है।
टिप्पणी -
[क्षत्रिय राजा यदि ब्रह्मज्ञों को वाणी का स्वातन्त्र्य न दे कर भिन्न-भिन्न नीतियों की चालें चलता है तो उन का जो परिणाम होता है उसे मन्त्र में दर्शाया है। वे नीतियां हैं, (१) कूटनीति अर्थात् झूठ और धोखे की नीति (२) श्लोणानीति, अर्थात् वचन दे कर उसे पूरा न करना, कुछ अंश में दिये वचन को पूरा करना, अवशिष्ट वचन स्थगित कर देना। (३) बण्डानीति१, अर्थात् प्रलोभन की नीति, लालच दिखा कर वाणी स्वातान्त्र्य के आन्दोलन को रोकने का यत्न करना। (४) कानीनीति, अर्थात् आन्दोलन पर पूरा ध्यान ही न देना, आंख मूंद रखना। काणया= कण निमीलने (आंख बन्द रखना)]। [१. बण्डि= बण्टि= fish-hook।