Loading...

काण्ड के आधार पर मन्त्र चुनें

  • अथर्ववेद का मुख्य पृष्ठ
  • अथर्ववेद - काण्ड 12/ सूक्त 4/ मन्त्र 25
    सूक्त - कश्यपः देवता - वशा छन्दः - अनुष्टुप् सूक्तम् - वशा गौ सूक्त

    अ॑नप॒त्यमल्प॑पशुं व॒शा कृ॑णोति॒ पूरु॑षम्। ब्रा॑ह्म॒णैश्च॑ याचि॒तामथै॑नां निप्रिया॒यते॑ ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    अ॒न॒प॒त्यम् । अल्प॑ऽपशुम् । व॒शा । कृ॒णो॒ति॒ । पुरु॑षम् । ब्रा॒ह्म॒णै: । च॒ । या॒चि॒ताम् । अथ॑ । ए॒ना॒म् । नि॒ऽप्रि॒य॒यते॑ ॥४.२५॥


    स्वर रहित मन्त्र

    अनपत्यमल्पपशुं वशा कृणोति पूरुषम्। ब्राह्मणैश्च याचितामथैनां निप्रियायते ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    अनपत्यम् । अल्पऽपशुम् । वशा । कृणोति । पुरुषम् । ब्राह्मणै: । च । याचिताम् । अथ । एनाम् । निऽप्रिययते ॥४.२५॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 12; सूक्त » 4; मन्त्र » 25

    पदार्थ -

    १. यह (वशा) = कमनीया वेदवाणी (पुरुषम्) = पुरुष को (अनपत्यम्) = सन्तानरहित तथा (अल्प पुशम्) = अल्प गवादि पशुओंवाला (कृणोति) = कर देती है, (अथ च) = यदि (ब्राह्मणैः) = ज्ञान के इच्छुक पुरुषों से (याचिता) = यह माँगी जाए और यह गोपति (एनां निप्रियायते) = इस वशा को नीच भाव से अपना ही प्रिय धन मानकर छिपा रखता है।

     

    भावार्थ -

    ब्राह्मणों से प्रार्थित होने पर भी जो इस वेदवाणी को उनके लिए न देकर इसे प्रिय धन की भाँति छिपा रखता है तो वह 'अनपत्य व अल्पपशु' हो जाता है।

    इस भाष्य को एडिट करें
    Top