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  • अथर्ववेद - काण्ड 12/ सूक्त 4/ मन्त्र 7
    सूक्त - कश्यपः देवता - वशा छन्दः - भुरिगनुष्टुप् सूक्तम् - वशा गौ सूक्त

    यद॑स्याः॒ कस्मै॑ चि॒द्भोगा॑य॒ बाला॒न्कश्चि॑त्प्रकृ॒न्तति॑। ततः॑ किशो॒रा म्रि॑यन्ते व॒त्सांश्च॒ घातु॑को॒ वृकः॑ ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    यत्। अ॒स्या॒: । कस्मै॑ । चि॒त् । भोगा॑य । बाला॑न् । क: । चि॒त् । प्र॒ऽकृ॒न्तति॑ । तत॑: । कि॒शो॒रा: । म्रि॒य॒न्ते॒ । व॒त्सान्। च॒ । घातु॑क: । वृक॑: ॥४.७॥


    स्वर रहित मन्त्र

    यदस्याः कस्मै चिद्भोगाय बालान्कश्चित्प्रकृन्तति। ततः किशोरा म्रियन्ते वत्सांश्च घातुको वृकः ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    यत्। अस्या: । कस्मै । चित् । भोगाय । बालान् । क: । चित् । प्रऽकृन्तति । तत: । किशोरा: । म्रियन्ते । वत्सान्। च । घातुक: । वृक: ॥४.७॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 12; सूक्त » 4; मन्त्र » 7

    पदार्थ -

    १. (यत्) = जब (कस्मैचित् भोगाय) = किसी सांसारिक भोग-विलास के दृष्टिकोण से (कश्चित्) = कोई व्यक्ति (बालान्) = अपने छोटे बच्चों को (अस्याः प्रकृन्तति) = इस वेदवाणी से विच्छिन्न करता है, अर्थात् इसप्रकार सोचकर कि 'वेद पढ़कर क्या करेगा? क्या कमा पाएगा?' वह अपने सन्तानों को वेद न पढ़ाकर अन्य मार्गों पर ले जाता है, (तत:) = तब (किशोरा: मियन्ते) = वे युवक विलासवृत्ति के शिकार होकर युवावस्था में ही मर जाते हैं । २. वस्तुत: इस दिशा में सोचनेवाला व्यक्ति अपने (वत्सान्) = सन्तानों को (घातुक:) = मारनेवाला (वृक:) = भेड़िया ही होता है। वह सन्तानों का कल्याण नहीं कर पाता।

    भावार्थ -

    माता-पिता को चाहिए कि वे अपने सन्तानों को वेद अवश्य पढाएँ। 'वेद पढाने से उतना रुपया न कमा पाएगा' यह सोचकर वेद न पढ़ानेवाला पिता एक वृक के समान है जोकि अपने सन्तानरूप वत्सों को मारता है।

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