अथर्ववेद - काण्ड 12/ सूक्त 4/ मन्त्र 49
दे॒वा व॒शां पर्य॑वद॒न्न नो॑ऽदा॒दिति॑ हीडि॒ताः। ए॒ताभि॑रृ॒ग्भिर्भे॒दं तस्मा॒द्वै स परा॑भवत् ॥
स्वर सहित पद पाठदे॒वा: । व॒शाम् । परि॑ । अ॒व॒द॒न् । न । न॒: । अ॒दा॒त् । इति॑ । ही॒डि॒ता: । ॒ए॒ताभि॑: । ऋ॒क्ऽभि: । भे॒दम् । तस्मा॑त् । वै । स: । परा॑ । अ॒भ॒व॒त् ॥४.४९॥
स्वर रहित मन्त्र
देवा वशां पर्यवदन्न नोऽदादिति हीडिताः। एताभिरृग्भिर्भेदं तस्माद्वै स पराभवत् ॥
स्वर रहित पद पाठदेवा: । वशाम् । परि । अवदन् । न । न: । अदात् । इति । हीडिता: । एताभि: । ऋक्ऽभि: । भेदम् । तस्मात् । वै । स: । परा । अभवत् ॥४.४९॥
अथर्ववेद - काण्ड » 12; सूक्त » 4; मन्त्र » 49
विषय - भेद
पदार्थ -
१.(न:) = हमारे लिए इसने (न अदात्) = इस वेदवाणी को नहीं दिया (इति) = इस कारण (हीडिता:) = क्रुद्ध हुए-हुए (देवा:) = देवों ने (वशाम्) = वेदवाणी से (एताभिः ऋग्भिः) = इन ऋचाओं से इसके (भेदम्) = पार्थक्य को (पर्यवदन्) = किया। देववृत्ति के व्यक्तियों ने गोपति से वशा की याचना की। उसने याचना की उपेक्षा करके वेदवाणी को नहीं दिया। देवों को यह ठीक नहीं लगा। देवों ने वशा से ही कहा कि इस गोपति का ऋचाओं से पार्थक्य हो जाए। २. (तस्माद्) = उस कारण से (स:) = गोपति (चै) = निश्चय से (पराभवत्) = पराभूत हो गया। वस्तुत: वेदज्ञान का प्रसार आवश्यक ही है। इसका प्रसार न करनेवाला 'भेद' है-इस वाणी का विदारण करनेवाला है। इस विदारण करने से इसका स्वयं विदारण हो जाता है।
भावार्थ -
हम वेदज्ञान प्राप्त करें। इस वेदज्ञान को देववृत्ति के व्यक्तियों को देनेवाले बनें। इसका अदान हमारा ही विदारण करनेवाला होगा।
इस भाष्य को एडिट करें