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अथर्ववेद - काण्ड 18/ सूक्त 3/ मन्त्र 24
सूक्त - यम, मन्त्रोक्त
देवता - त्रिष्टुप्
छन्दः - अथर्वा
सूक्तम् - पितृमेध सूक्त
अक॑र्म ते॒स्वप॑सो अभूम ऋ॒तम॑वस्रन्नु॒षसो॑ विभा॒तीः। विश्वं॒ तद्भ॒द्रं यदव॑न्ति दे॒वाबृ॒हद्व॑देम वि॒दथे॑ सु॒वीराः॑ ॥
स्वर सहित पद पाठअक॑र्म । ते॒ । सु॒ऽअप॑स: । अ॒भू॒म॒ । ऋ॒तम् । अ॒व॒स्र॒न् । उ॒षस॑: । वि॒ऽभा॒ती: । विश्व॑म् । तत् । भ॒द्रम् । यत् । अव॑न्ति । दे॒वा: । बृ॒हत्। व॒दे॒म॒ । वि॒दथे॑ । सु॒ऽवीरा॑: ॥३.२४॥
स्वर रहित मन्त्र
अकर्म तेस्वपसो अभूम ऋतमवस्रन्नुषसो विभातीः। विश्वं तद्भद्रं यदवन्ति देवाबृहद्वदेम विदथे सुवीराः ॥
स्वर रहित पद पाठअकर्म । ते । सुऽअपस: । अभूम । ऋतम् । अवस्रन् । उषस: । विऽभाती: । विश्वम् । तत् । भद्रम् । यत् । अवन्ति । देवा: । बृहत्। वदेम । विदथे । सुऽवीरा: ॥३.२४॥
अथर्ववेद - काण्ड » 18; सूक्त » 3; मन्त्र » 24
भाषार्थ -
हे जगत् के स्वामिन्! (ते) आप के वैदिक निर्देशों के अनुसार (अकर्म) हम ने कर्तव्यकर्म किये हैं, अतः (स्वपसः अभूम) सुकर्मी हो गए हैं। (ऋतम्) वैदिक सच्चाइयों का (अवस्रन्) हम ने प्रसार किया है, जैसे (विभातीः) चमकती (उषसः) उषाएं (अवस्रन्) आकाश में प्रसृत होती हैं। (देवाः) देवकोटि के लोग (यद्) जिस कर्मकलाप की (अवन्ति) रक्षा करते हैं, (तद् विश्वम्) वह सब कर्मकलाप (भद्रम्) सुखदायी और कल्याणकारी होता है। उस कर्मकलाप को करते हुए हम (सुवीराः) उत्तम धर्मवीर बन कर, (विदथे) ज्ञान-गोष्ठियों में (बृहद् वदेम) उस कर्मकलाप की महा महिमा का कथन किया करें।