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  • अथर्ववेद - काण्ड 18/ सूक्त 3/ मन्त्र 8
    सूक्त - यम, मन्त्रोक्त देवता - सतः पङ्क्ति छन्दः - अथर्वा सूक्तम् - पितृमेध सूक्त

    उत्ति॑ष्ठ॒प्रेहि॒ प्र द्र॒वौकः॑ कृणुष्व सलि॒ले स॒धस्थे॑। तत्र॒ त्वं पि॒तृभिः॑संविदा॒नः सं सोमे॑न॒ मद॑स्व॒ सं स्व॒धाभिः॑ ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    उत् । ति॒ष्ठ॒ । प्र । इ॒हि॒ । प्र॒ । द्र॒व॒ । ओक॑: । कृ॒णु॒ष्व॒ । स॒लि॒ले । स॒धऽस्थे॑ । तत्र॑ । त्वम् । प‍ि॒तृऽभि॑: । स॒म्ऽवि॒दा॒न: । सम् । सोमे॑न । मद॑स्व । सम् । स्व॒धाभि॑: ॥३.८॥


    स्वर रहित मन्त्र

    उत्तिष्ठप्रेहि प्र द्रवौकः कृणुष्व सलिले सधस्थे। तत्र त्वं पितृभिःसंविदानः सं सोमेन मदस्व सं स्वधाभिः ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    उत् । तिष्ठ । प्र । इहि । प्र । द्रव । ओक: । कृणुष्व । सलिले । सधऽस्थे । तत्र । त्वम् । प‍ितृऽभि: । सम्ऽविदान: । सम् । सोमेन । मदस्व । सम् । स्वधाभि: ॥३.८॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 18; सूक्त » 3; मन्त्र » 8

    भाषार्थ -
    हे मुक्तात्मन्! (उत्तिष्ठ) मोक्ष की आनन्दमयी मुद्रा से तू उत्थान कर, (प्रेहि) संसार की ओर प्रयाण कर, (प्र द्रव) द्रुत गति कर। (सधस्थे) नए सहवासस्थान (सलिले) अर्थात् मातृगर्भ के रज-वीर्य तथा द्रवरस में (ओकः) निजगृह (कृणुष्व) बना। तदनन्तर (तत्र त्वम्) वहां पितृगृह में तू (पितृभिः) माता-पिता आदि बन्धुओं के साथ (सुविदानः) ऐकमत्य को प्राप्त होकर, (सोमेन) दुग्ध द्वारा (सं मदस्व) सम्यक्-तृप्त हो, (स्वधाभिः) और स्वधारण और स्वपोषण करने वाले अन्नों द्वारा (संमदस्व) सम्यक् तृप्त हो। [मन्त्र में मुक्ति सुख के भोग के पश्चात् पुनः गर्भग्रहण का वर्णन किया गया है।]

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