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अथर्ववेद - काण्ड 18/ सूक्त 3/ मन्त्र 52
सूक्त - यम, मन्त्रोक्त
देवता - भुरिक् त्रिष्टुप्
छन्दः - अथर्वा
सूक्तम् - पितृमेध सूक्त
उत्ते॑ स्तभ्नामिपृथि॒वीं त्वत्परी॒मं लो॒गं नि॒दध॒न्मो अ॒हं रि॑षम्। ए॒तां स्थूणां॑ पि॒तरो॑धारयन्ति ते॒ तत्र॑ य॒मः साद॑ना ते कृणोतु ॥
स्वर सहित पद पाठउत् । ते॒ । स्त॒भ्ना॒मि॒ । पृ॒थि॒वीम् । त्वत् । परि॑ । इ॒मम् । लो॒गम् । नि॒ऽदध॑त् । मो इति॑ । अ॒हम् । रि॒ष॒म् । ए॒ताम् । स्थूणा॑म् । पि॒तर॑:। धा॒र॒य॒न्ति॒ । ते॒ । तत्र॑ । य॒म: । सद॑ना । ते॒ । कृ॒णो॒तु॒ ॥३.५२॥
स्वर रहित मन्त्र
उत्ते स्तभ्नामिपृथिवीं त्वत्परीमं लोगं निदधन्मो अहं रिषम्। एतां स्थूणां पितरोधारयन्ति ते तत्र यमः सादना ते कृणोतु ॥
स्वर रहित पद पाठउत् । ते । स्तभ्नामि । पृथिवीम् । त्वत् । परि । इमम् । लोगम् । निऽदधत् । मो इति । अहम् । रिषम् । एताम् । स्थूणाम् । पितर:। धारयन्ति । ते । तत्र । यम: । सदना । ते । कृणोतु ॥३.५२॥
अथर्ववेद - काण्ड » 18; सूक्त » 3; मन्त्र » 52
भाषार्थ -
हे सन्तान ! (ते) तेरे लिये (पृथिवीम्) मिट्टी से निर्मित (उत् स्तभ्नामि) स्तम्भ खड़ा करता हूं। (त्वत् परि) और तेरे इस निवासगृह से परे हटकर (इमं लोगं निदधन्) इस लकड़ी के घर की नींव रखता हुआ (अहम्) मैं कारीगर (मा उ रिषम्) किसी प्रकार की चोट आदि द्वारा हिंसित न होऊं। (एताम्) इस (स्थूणाम्) स्तम्भ को (ते) तेरे (पितरः) माता-पिता (धारयन्ति) नींवरूप में स्थापित करते हैं। (यमः) राज्य का नियन्ता (तत्र) उन गृहों में (ते) तेरा (सदना) निवास (कृणोतु) निश्चित कर दे।
टिप्पणी -
[सन्तान के लिये नवगृह निर्माण का वर्णन मन्त्र में हुआ है। “उत् स्तभ्नामि" = द्वारा मिट्टी या मिट्टी से बनी ईंटों द्वारा गृहनिर्माण को सूचित किया है। वेदों में ईंटों को “इष्टका” कहा है; (यजु० १७।२)। यथा – “इमा म अग्न इष्टका – एका च- परार्धश्च” मन्त्र में “एक से परार्ध” तक की ईंटों का वर्णन हुआ है। पदार्थ संख्या = १००,०००,०००,०००,०००,०००। त्वत् परि=”अपपरी वर्जने” (अष्टा० १।४।८८) अतः परि=वर्जन। “अपपरिबहिरञ्चवः पञ्चम्याः” (अष्टा० २।१।१२) द्वारा “त्वत्” में पञ्चमी विभक्ति। “लोगम्" = सम्भवतः अंग्रेजी शब्द Log वैदिक तत्सम शब्द है। Log=a bulky piece of wood. Log-house=a hut built of logs । स्थूणः= स्तम्भ यथा- ऋतेन स्थूणामधि रोह वंशोग्रो विराजन्नप वृङ्क्ष्व शत्रून्। मा ते रिषन्नुपसत्तारो गृहाणां शाले शतं जीवेम शरदः सर्ववीराः ॥ (अथर्व० ३।१२।९)। (शाला-सुक्त)। यमः = प्रत्येक नवगृह का निर्माण और उस पर अधिकार, नियन्ता राजा द्वारा प्राप्त करने का वर्णन है। जैसे कि वर्तमान में भी गृह का नक्शा देकर राजाज्ञा का प्राप्त करना, और अधिकार के लिये रजिस्टरी करानी होती है]