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अथर्ववेद - काण्ड 18/ सूक्त 3/ मन्त्र 13
सूक्त - यम, मन्त्रोक्त
देवता - त्रिष्टुप्
छन्दः - अथर्वा
सूक्तम् - पितृमेध सूक्त
यो म॒मार॑प्रथ॒मो मर्त्या॑नां॒ यः प्रे॒याय॑ प्रथ॒मो लो॒कमे॒तम्। वै॑वस्व॒तं सं॒गम॑नं॒जना॑नां य॒मं राजा॑नं ह॒विषा॑ सपर्यत ॥
स्वर सहित पद पाठय:। म॒मार॑ । प्र॒थ॒म: । मर्त्या॑नाम् । य:। प्र॒ऽई॒याय॑ । प्र॒थ॒म: । लो॒कम् । ए॒तम् । वै॒व॒स्व॒तम् । स॒म्ऽगम॑नम् । जना॑नाम् । य॒मम् । राजा॑नम् । ह॒विषा॑ । स॒प॒र्य॒त॒ ॥३.१३॥
स्वर रहित मन्त्र
यो ममारप्रथमो मर्त्यानां यः प्रेयाय प्रथमो लोकमेतम्। वैवस्वतं संगमनंजनानां यमं राजानं हविषा सपर्यत ॥
स्वर रहित पद पाठय:। ममार । प्रथम: । मर्त्यानाम् । य:। प्रऽईयाय । प्रथम: । लोकम् । एतम् । वैवस्वतम् । सम्ऽगमनम् । जनानाम् । यमम् । राजानम् । हविषा । सपर्यत ॥३.१३॥
अथर्ववेद - काण्ड » 18; सूक्त » 3; मन्त्र » 13
भाषार्थ -
(यः) जो (प्रथमः) अनादि प्रथमशक्ति (मर्त्यानाम्=मर्त्यान्) मर्त्यों की (ममार) मृत्यु करती, और (जनानाम्) प्रजाजनों को (संगमनम्) जन्म देती, और (यः) जो (प्रथमः) अनादि प्रथमशक्ति (एतम्) इस (लोकम्) लोक में सर्वप्रथम (प्रेयाय) प्रकट हुई थी, उस (वैवस्वतम्) विवस्वान् अर्थात् सूर्य के अधिष्ठाता (यमम्) सर्व नियन्ता, (राजानम्) जगत् के महाराज की (हविषा) यज्ञिय हवियों द्वारा, तथा आत्मसमर्पणरूपी हवियों द्वारा (सपर्यत) परिचर्या सेवा तथा पूजा किया करो।
टिप्पणी -
[ममार= मारयामास, तथा मारयति। मन्त्र में "प्रेयाय एतं लोकम्" है; "प्रेयाय तं लोकम्" नहीं। यदि "तम्" पाठ होता, तब तो "परलोक" अर्थ होता, और समझा जाता कि "यम" वह व्यक्ति है, जोकि इस-लोक में सर्वप्रथम मनुष्यरूप में पैदा होकर, सब मनुष्यों से पहिले मर कर परलोक में गया, और तभी से मृत्यु का अधिष्ठाता बना। परन्तु इस के विपरीत मन्त्र में यह कहा है कि यम वह प्रथम शक्ति है, जोकि इस लोक में सर्वप्रथम प्रकट हुई। अथर्ववेद के अंग्रेजी अनुवादकर्त्ता ह्विटनी ने "एतम्" का अर्थ किया है- "That", अर्थ करना चाहिये था "This"]