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अथर्ववेद - काण्ड 18/ सूक्त 3/ मन्त्र 38
सूक्त - यम, मन्त्रोक्त
देवता - त्रिष्टुप्
छन्दः - अथर्वा
सूक्तम् - पितृमेध सूक्त
इ॒तश्च॑मा॒मुत॑श्चावतां य॒मे इ॑व॒ यत॑माने॒ यदै॒तम्। प्र वां॑ भर॒न्मानु॑षा देव॒यन्त॒आ सी॑दतां॒ स्वमु॑ लो॒कं विदा॑ने ॥
स्वर सहित पद पाठइ॒त: । च॒ । मा॒ । अ॒मुत॑: । च॒ । अ॒व॒ता॒म् । य॒मे इ॒वेति॑ य॒मेऽइ॑व । यत॑माने॒ इति॑ । यत् । ऐ॒तम् । प्र । वा॒म् । भ॒र॒न् । मानु॑षा: । दे॒व॒ऽयन्त॑: । आ । सी॒द॒ता॒म् । स्वम् । ऊं॒ इति॑ । लो॒कम् । विदा॑ने॒ इति॑ ॥३.३८॥
स्वर रहित मन्त्र
इतश्चमामुतश्चावतां यमे इव यतमाने यदैतम्। प्र वां भरन्मानुषा देवयन्तआ सीदतां स्वमु लोकं विदाने ॥
स्वर रहित पद पाठइत: । च । मा । अमुत: । च । अवताम् । यमे इवेति यमेऽइव । यतमाने इति । यत् । ऐतम् । प्र । वाम् । भरन् । मानुषा: । देवऽयन्त: । आ । सीदताम् । स्वम् । ऊं इति । लोकम् । विदाने इति ॥३.३८॥
अथर्ववेद - काण्ड » 18; सूक्त » 3; मन्त्र » 38
भाषार्थ -
हे प्रधानमन्त्री तथा मुख्यसेनापति! अथवा हे राजा और राणी! (यद्) जब (ऐतम्) तुम दोनों शासन-गद्दी पर आओ, तब (मा) मुझ प्रजाजन की आप दोनों (इतः च) इहलोक से (च) और (अमुतः) उस परलोक से (अवताम्) रक्षा कीजिये। (इव) जैसे कि (यमे) यमाचार्य और यमाचार्या (यतमाने) यत्नपूर्वक, सदुपदेशों द्वारा शिष्यवर्ग की रक्षा इहलोक और परलोक से करते हैं। (देवयन्तः) परमेश्वर देव की कामनावाले (मानुषाः) प्रजाजन (वाम्) आप दोनों को (प्र भरन्) ऐश्वर्य से भर दें। आप दोनों (स्वं लोकम्) शासकरूप में स्थित हूजिये। (विदाने) आप दोनों अपने-अपने विभाग का पूर्णज्ञान रखें, और परस्पर ऐकमत्य से शासन करें।
टिप्पणी -
[इतश्च अमुतश्च=प्रधानमन्त्री तथा मुख्यसेनापति इहलोक की दृष्टि से, अर्थात् लौकिक समृद्धि तथा शत्रु से रक्षा की दृष्टि से, और परलोक की दृष्टि से, अर्थात् सदाचार और आत्मिकोन्नति की भी दृष्टि से प्रजावर्ग की रक्षा करें। और वे यतमाने=इस उद्देश्य की पूर्ति में सदा यत्नवान् रहें।यमे=यमश्च यमा च यमे। एकशेष में स्त्री का शेष हुआ। जैसे कि "पितरा" अर्थात् "पिता च माता च" में पिता का शेष होता है। और "मातरा" अर्थात् "माता च पिता च" में माता का शेष होता है। पितरा मातरा (अथर्व १८।१।२३; ५।१।४, तथा २०।१०५।२)। यम=यमनियमवान् आचार्य, अशद्यिच्; तथा यमा=यमनियमवती आचार्या। शिक्षा की दृष्टि से प्रधानमन्त्री और मुख्यसेनापति प्रजावर्ग की रक्षा करें। देवयन्तः— जब प्रजावर्ग आस्तिक हो, तभी प्रजावर्ग अपने अधिकारियों का समुचित चुनाव कर सकता हैं।]