Sidebar
अथर्ववेद - काण्ड 18/ सूक्त 3/ मन्त्र 73
सूक्त - यम, मन्त्रोक्त
देवता - त्रिष्टुप्
छन्दः - अथर्वा
सूक्तम् - पितृमेध सूक्त
ए॒तदा रो॑ह॒ वय॑उन्मृजा॒नः स्वा इ॒ह बृ॒हदु॑ दीदयन्ते। अ॒भि प्रेहि॑ मध्य॒तो माप॑ हास्थाःपितॄ॒णां लो॒कं प्र॑थ॒मो यो अत्र॑ ॥
स्वर सहित पद पाठए॒तत् । आ । रो॒ह॒ । वय॑: । उ॒त्ऽमृ॒जा॒न: । स्वा: । इ॒ह । बृ॒हत् । ऊं॒ इति॑ । दी॒द॒य॒न्ते॒ । अ॒भि । प्र । इ॒हि॒ । म॒ध्य॒त: । मा ।अप॑ । हा॒स्था॒: । पि॒तॄणाम् । लो॒कम् । प्र॒थ॒म:। य: । अत्र॑ ॥३.७३॥
स्वर रहित मन्त्र
एतदा रोह वयउन्मृजानः स्वा इह बृहदु दीदयन्ते। अभि प्रेहि मध्यतो माप हास्थाःपितॄणां लोकं प्रथमो यो अत्र ॥
स्वर रहित पद पाठएतत् । आ । रोह । वय: । उत्ऽमृजान: । स्वा: । इह । बृहत् । ऊं इति । दीदयन्ते । अभि । प्र । इहि । मध्यत: । मा ।अप । हास्था: । पितॄणाम् । लोकम् । प्रथम:। य: । अत्र ॥३.७३॥
अथर्ववेद - काण्ड » 18; सूक्त » 3; मन्त्र » 73
भाषार्थ -
(एतद) इस गृह पर (आरोह) तू आरोहण कर, (वयः) अपनी वायु को (उत् मृजानः) उन्नत और शुद्ध-पवित्र कर, (स्वाः) तेरे अपने सम्बन्धी (इह) इस गृहस्थाश्रम में (बृहत् उ) निश्चय से अपने सद्गुणों के कारण बहुत (दीदयन्ते) चमकते रहे हैं। (अभि प्रेहि) हे ब्रह्मचारी ! तू गृहस्थाश्रम की ओर आ, (मध्यतः) गृहस्थाश्रम को बीच में ही (मा अप हास्थाः) मत छोड़ जाना। गृहस्थाश्रम (पितृणां लोकम्) माता-पिता बनने का स्थान है। (यः) जो गृहस्थाश्रम कि (अत्र) इस जीवन काल में (प्रथमः) सर्वश्रेष्ठ आश्रम है।
टिप्पणी -
["अत्र" का अर्थ ह्विटनी ने किया है "There; " करना चाहिये- "Here.” “There" अर्थ इस लिये किया हैं कि मन्त्र परलोक-वर्णन सम्बन्धी हो सके। आरोह = वैदिकशाला का निर्माण ऊंचे स्तम्भों पर करने का विधान है। इसीलिये वैदिकशाला को "हस्तिनीव पद्वती" द्वारा उपमित किया है (अथर्व० ९।३।१७)। वयः = सायण ने इस पद का अर्थ "अन्तरिक्ष" किया है, जो कि वैदिक प्रथा के विरुद्ध है। प्रथमः = यस्मात् त्रयोऽप्याश्रमिणो ज्ञानेनान्नेन चान्वहम्। गृहस्थेनैव धार्यन्ते तस्माज् ज्येष्ठाश्रमो गृही॥ (मनु० ३।७८)।]