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  • अथर्ववेद - काण्ड 13/ सूक्त 1/ मन्त्र 2
    सूक्त - ब्रह्मा देवता - अध्यात्मम्, रोहितः, आदित्यः छन्दः - त्रिष्टुप् सूक्तम् - अध्यात्म प्रकरण सूक्त

    उद्वाज॒ आ ग॒न्यो अ॒प्स्वन्तर्विश॒ आ रो॑ह॒ त्वद्यो॑नयो॒ याः। सोमं॒ दधा॑नो॒ऽप ओष॑धी॒र्गाश्चतु॑ष्पदो द्वि॒पद॒ आ वे॑शये॒ह ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    उत् । वाज॑: । आ । ग॒न् । य: । अ॒प्ऽसु । अ॒न्त: । विश॑: । आ । रो॒ह॒ । त्वत्ऽयो॑नय: । या: । सोम॑म् । दधा॑न: । अ॒प: । ओष॑धी: । गा: । चतु॑:ऽपद: । द्वि॒ऽपद॑: । आ । वे॒श॒य॒ । इह॥१.२॥


    स्वर रहित मन्त्र

    उद्वाज आ गन्यो अप्स्वन्तर्विश आ रोह त्वद्योनयो याः। सोमं दधानोऽप ओषधीर्गाश्चतुष्पदो द्विपद आ वेशयेह ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    उत् । वाज: । आ । गन् । य: । अप्ऽसु । अन्त: । विश: । आ । रोह । त्वत्ऽयोनय: । या: । सोमम् । दधान: । अप: । ओषधी: । गा: । चतु:ऽपद: । द्विऽपद: । आ । वेशय । इह॥१.२॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 13; सूक्त » 1; मन्त्र » 2

    पदार्थ -
    (वाजः) वह बलवान् [परमेश्वर] (उत्) उत्तमता से (आ गन्) प्राप्त हुआ है, (यः) जो (अप्सु अन्तः) प्रजाओं के भीतर है, [हे राजन् !] (विशः) उन प्रजाओं पर (आ रोह) ऊँचा हो, (याः) जो [प्रजाएँ] (त्वद्योनयः) तुझ से मेल रखनेवाली हैं। (सोमम्) ऐश्वर्य, (अपः) कर्म्म, (ओषधीः) ओषधियों [अन्न, सोमलता आदि] और (गाः) गौ आदि को (दधानः) धारण करता हुआ तू (चतुष्पदः) चौपायों और (द्विपदः) दोपायों को (इह) यहाँ [प्रजाओं में] (आ वेशय) प्रवेश करा ॥२॥

    भावार्थ - राजा को योग्य है कि सर्वनियामक परमेश्वर का ध्यान में रख कर अपनी प्रजा का पालन करे और योग्यता और कार्य्यदक्षता से अपनी और प्रजा की आवश्यक सम्पत्ति, जैसे अन्न, गौ, घोड़ा, हाथी, मनुष्य आदि को बढ़ावे ॥२॥

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