Loading...

काण्ड के आधार पर मन्त्र चुनें

  • अथर्ववेद का मुख्य पृष्ठ
  • अथर्ववेद - काण्ड 13/ सूक्त 1/ मन्त्र 33
    सूक्त - ब्रह्मा देवता - अध्यात्मम्, रोहितः, आदित्यः छन्दः - त्रिष्टुप् सूक्तम् - अध्यात्म प्रकरण सूक्त

    व॒त्सो वि॒राजो॑ वृष॒भो म॑ती॒नामा रु॑रोह शु॒क्रपृ॑ष्ठो॒ऽन्तरि॑क्षम्। घृ॒तेना॒र्कम॒भ्यर्चन्ति व॒त्सं ब्रह्म॒ सन्तं॒ ब्रह्म॑णा वर्धयन्ति ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    व॒त्स: । वि॒ऽराज॑: । वृ॒ष॒भ: । म॒ती॒नाम् । आ । रु॒रो॒ह॒ । शु॒क्रऽपृ॑ष्ठ: । अ॒न्तर‍ि॑क्षम् । घृ॒तेन॑ । अ॒र्कम् । अ॒भि । अ॒र्च॒न्ति॒ । व॒त्सम् । ब्रह्म॑ । सन्त॑म् । ब्रह्म॑णा । व॒र्ध॒य॒न्ति॒ ॥१.३३॥


    स्वर रहित मन्त्र

    वत्सो विराजो वृषभो मतीनामा रुरोह शुक्रपृष्ठोऽन्तरिक्षम्। घृतेनार्कमभ्यर्चन्ति वत्सं ब्रह्म सन्तं ब्रह्मणा वर्धयन्ति ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    वत्स: । विऽराज: । वृषभ: । मतीनाम् । आ । रुरोह । शुक्रऽपृष्ठ: । अन्तर‍िक्षम् । घृतेन । अर्कम् । अभि । अर्चन्ति । वत्सम् । ब्रह्म । सन्तम् । ब्रह्मणा । वर्धयन्ति ॥१.३३॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 13; सूक्त » 1; मन्त्र » 33

    पदार्थ -
    (वत्सः) उपदेश करनेवाला, (विराजः) बड़े ऐश्वर्यवाला, (शुक्रपृष्ठः) वीरता बढ़ानेवाला (वृषभः) बड़ी शक्तिवाला [पुरुष] (मतीनाम्) बुद्धिमानों के (अन्तरिक्षम्) मध्यवर्ती दृश्य पर (आ रुरोह) ऊँचा हुआ है। वे [बुद्धिमान् लोग] (घृतेन) प्रकाश के साथ [वर्तमान] (अर्कम्) पूजनीय, (वत्सम्) उपदेश करनेवाले [परमेश्वर] को (अभि) सब ओर से (अर्चन्ति) पूजते हैं और (सन्तम्) सेवनीय (ब्रह्म) ब्रह्म [सबसे बड़े परमेश्वर] को (ब्रह्मणा) वेद द्वारा (वर्धयन्ति) बढ़ाते हैं [सराहते हैं] ॥३३॥

    भावार्थ - जिस परमेश्वर ने बड़े-बड़े पराक्रमी शूर वीर पुरुष बनाये हैं, उसकी महिमा को ज्ञानी लोग जानकर संसार में प्रकट करते हैं ॥३३॥

    इस भाष्य को एडिट करें
    Top