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  • अथर्ववेद - काण्ड 13/ सूक्त 1/ मन्त्र 6
    सूक्त - ब्रह्मा देवता - अध्यात्मम्, रोहितः, आदित्यः छन्दः - त्रिष्टुप् सूक्तम् - अध्यात्म प्रकरण सूक्त

    रोहि॑तो॒ द्यावा॑पृथि॒वी ज॑जान॒ तत्र॒ तन्तुं॑ परमे॒ष्ठी त॑तान। तत्र॑ शिश्रिये॒ऽज एक॑पा॒दोऽदृं॑ह॒द्द्यावा॑पृथि॒वी बले॑न ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    रोहि॑त: । द्यावा॑पृथि॒वी । इति॑ । ज॒जा॒न॒ । तत्र॑ । तन्तु॑म् । प॒र॒मे॒ऽस्थी । त॒ता॒न॒ । तत्र॑ । शि॒श्रि॒ये॒ । अ॒ज: । एक॑ऽपाद: । अदृं॑हत् । द्यावा॑पृथि॒वी इति॑ । बले॑न ॥१,६॥


    स्वर रहित मन्त्र

    रोहितो द्यावापृथिवी जजान तत्र तन्तुं परमेष्ठी ततान। तत्र शिश्रियेऽज एकपादोऽदृंहद्द्यावापृथिवी बलेन ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    रोहित: । द्यावापृथिवी । इति । जजान । तत्र । तन्तुम् । परमेऽस्थी । ततान । तत्र । शिश्रिये । अज: । एकऽपाद: । अदृंहत् । द्यावापृथिवी इति । बलेन ॥१,६॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 13; सूक्त » 1; मन्त्र » 6

    पदार्थ -
    (रोहितः) सबके उत्पन्न करनेवाले [परमेश्वर] ने (द्यावापृथिवी) सूर्य्य और पृथिवी को (जजान) उत्पन्न किया, (तत्र) उस में (परमेष्ठी) सबसे ऊँचे पदवाले [उस परमेश्वर] ने (तन्तुम्) तन्तु [सूत्रात्मा वायु] को (ततान) फैलाया। (तत्र) उसमें (अजः) वह अजन्मा (एकपादः) एक डगवाला [सब जगत् में एकरस व्यापक] (शिश्रिये) ठहरा, उसने (द्यावापृथिवी) सूर्य्य और पृथिवी को (बलेन) अपने बल से (अदृंहत्) दृढ़ किया ॥६॥

    भावार्थ - जैसे परमात्मा ने सब सूर्य्य पृथ्वी आदि लोकों को उत्पन्न करके, और उनके भीतर सूत्रात्मा वायु वा आकर्षण रखकर सबको नियम में बाँधा है, वैसे ही बलवान् पुरुष अपने इन्द्रियों और सब लोगों को विविध प्रकार अपने वश में रक्खे ॥६॥

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