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  • अथर्ववेद - काण्ड 13/ सूक्त 1/ मन्त्र 48
    सूक्त - ब्रह्मा देवता - अध्यात्मम्, रोहितः, आदित्यः छन्दः - अनुष्टुप् सूक्तम् - अध्यात्म प्रकरण सूक्त

    स्व॒र्विदो॒ रोहि॑तस्य॒ ब्रह्म॑णा॒ग्निः समि॑ध्यते। तस्मा॑द्घ्रं॒सस्तस्मा॑द्धि॒मस्तस्मा॑द्य॒ज्ञोजा॑यत ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    स्व॒:ऽविद॑: । रोहि॑तस्य । ब्रह्म॑णा । अ॒ग्नि: । सम् । इ॒ध्य॒ते॒ । तस्मा॑त् । घ्रं॒स: । तस्मा॑त् । हि॒म: । तस्मा॑त् । य॒ज्ञ: । अ॒जा॒य॒त॒ १.४८॥


    स्वर रहित मन्त्र

    स्वर्विदो रोहितस्य ब्रह्मणाग्निः समिध्यते। तस्माद्घ्रंसस्तस्माद्धिमस्तस्माद्यज्ञोजायत ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    स्व:ऽविद: । रोहितस्य । ब्रह्मणा । अग्नि: । सम् । इध्यते । तस्मात् । घ्रंस: । तस्मात् । हिम: । तस्मात् । यज्ञ: । अजायत १.४८॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 13; सूक्त » 1; मन्त्र » 48

    पदार्थ -
    (स्वर्विदः) सुख पहुँचानेवाले (रोहितस्य) सबके उत्पन्न करनेवाले परमेश्वर के (ब्रह्मणा) वेदज्ञान द्वारा (अग्नि) अग्नि [सूर्य आदि] (सम् इध्यते) यथावत् प्रकाशित होता है। (तस्मात्) उसी [परमेश्वर] से (घ्रंसः) ताप (तस्मात्) उसी से (हिमः) शीत और (तस्मात्) उसी से (यज्ञः) यज्ञ [संयोग-वियोग व्यवहार] (अजायत) उत्पन्न हुआ है ॥४८॥

    भावार्थ - परमेश्वर के सामर्थ्य से ही सूर्य-चन्द्र आदि पदार्थ उत्पन्न होकर ताप शीत, संयोग-वियोग द्वारा संसार का उपकार करते हैं ॥४८॥

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