अथर्ववेद - काण्ड 13/ सूक्त 1/ मन्त्र 22
सूक्त - ब्रह्मा
देवता - अध्यात्मम्, रोहितः, आदित्यः
छन्दः - त्रिष्टुप्
सूक्तम् - अध्यात्म प्रकरण सूक्त
अनु॑व्रता॒ रोहि॑णी॒ रोहि॑तस्य सू॒रिः सु॒वर्णा॑ बृह॒ती सु॒वर्चाः॑। तया॒ वाजा॑न्वि॒श्वरू॑पां जयेम॒ तया॒ विश्वाः॒ पृत॑ना अ॒भि ष्या॑म ॥
स्वर सहित पद पाठअनु॑ऽव्रता । रोहि॑णी । रोहि॑तस्य । सू॒रि: । सु॒ऽवर्णा॑ । बृ॒ह॒ती । सु॒ऽवर्चा॑: । तया॑ । वाजा॑न् । वि॒श्वऽरू॑पान् । ज॒ये॒म॒ । तया॑ । विश्वा॑: । पृत॑ना: । अ॒भि । स्या॒म॒ ॥१.२२॥
स्वर रहित मन्त्र
अनुव्रता रोहिणी रोहितस्य सूरिः सुवर्णा बृहती सुवर्चाः। तया वाजान्विश्वरूपां जयेम तया विश्वाः पृतना अभि ष्याम ॥
स्वर रहित पद पाठअनुऽव्रता । रोहिणी । रोहितस्य । सूरि: । सुऽवर्णा । बृहती । सुऽवर्चा: । तया । वाजान् । विश्वऽरूपान् । जयेम । तया । विश्वा: । पृतना: । अभि । स्याम ॥१.२२॥
अथर्ववेद - काण्ड » 13; सूक्त » 1; मन्त्र » 22
विषय - जीवात्मा और परमात्मा का उपदेश।
पदार्थ -
(रोहितस्य) सब के उत्पन्न करनेवाले [परमेश्वर] की (अनुव्रता) आज्ञा में चलनेवाली (रोहिणी) उत्पत्तिशक्ति [प्रकृति] (सूरिः) प्रेरणा करनेवाली, (सुवर्णा) अच्छे प्रकार स्वीकारयोग्य, (बृहती) विशाल और (सुवर्चाः) बहुत अन्नवाली [वा बहुत चमकीली] है। (तया) उस [प्रकृति] के द्वारा (विश्वरूपान्) सब प्रकार के (वाजान्) बलों को (जयेम) हम जीतें, (तया) उस [प्रकृति] के द्वारा (विश्वाः) सब (पृतनाः) संग्रामों को (अभि ष्याम) हम परास्त करें ॥२२॥
भावार्थ - परमेश्वर ने प्रकृति में अनेक श्रेष्ठ रत्न पदार्थों के उत्पन्न करने की शक्ति दी है। जो मनुष्य पुरुषार्थ करके उससे ज्ञानपूर्वक उपयोग लेते हैं, वे विघ्नों को हटाकर सब कार्य सिद्ध करते हैं ॥२२॥
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