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  • अथर्ववेद - काण्ड 13/ सूक्त 1/ मन्त्र 59
    सूक्त - ब्रह्मा देवता - अध्यात्मम्, रोहितः, आदित्यः छन्दः - गायत्री सूक्तम् - अध्यात्म प्रकरण सूक्त

    मा प्र गा॑म प॒थो व॒यं मा य॒ज्ञादि॑न्द्र सो॒मिनः॑। मान्त स्थु॑र्नो॒ अरा॑तयः ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    मा । प्र । गा॒म॒ । प॒थ: । व॒यम् । मा । य॒ज्ञात् । इ॒न्द्र॒ । सो॒मिन॑: । मा । अ॒न्त: । स्थु॒: । न॒: । अरा॑तय: ॥१.५९॥


    स्वर रहित मन्त्र

    मा प्र गाम पथो वयं मा यज्ञादिन्द्र सोमिनः। मान्त स्थुर्नो अरातयः ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    मा । प्र । गाम । पथ: । वयम् । मा । यज्ञात् । इन्द्र । सोमिन: । मा । अन्त: । स्थु: । न: । अरातय: ॥१.५९॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 13; सूक्त » 1; मन्त्र » 59

    पदार्थ -
    (इन्द्र) हे बड़े ऐश्वर्यवाले जगदीश्वर ! (पथः) वैदिक मार्ग से (वयम्) हम (मा प्र गाम) कभी दूर न जावें, और (मा)(सोमिनः) ऐश्वर्ययुक्त (यज्ञात्) यज्ञ [देवपूजा, संगतिकरण और दान व्यवहार] से [दूर जावें]। (अरातयः) अदानी लोग (नः अन्तः) हमारे बीच (मा स्थुः) न ठहरें ॥५९॥

    भावार्थ - विद्वान् लोग परमात्मा की उपासना करते हुए सदा वैदिक मार्ग पर चल कर श्रेष्ठ कर्म करें और सुपात्रों को योग्य दान देते रहें ॥५९॥यह मन्त्र ऋग्वेद में है-म० १०।५७।१ ॥

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