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  • अथर्ववेद - काण्ड 13/ सूक्त 1/ मन्त्र 51
    सूक्त - ब्रह्मा देवता - अध्यात्मम्, रोहितः, आदित्यः छन्दः - अनुष्टुप् सूक्तम् - अध्यात्म प्रकरण सूक्त

    यं वातः॑ परि॒शुम्भ॑ति॒ यं वेन्द्रो॒ ब्रह्म॑ण॒स्पतिः॑। ब्रह्मे॑द्धाव॒ग्नी ई॑जाते॒ रोहि॑तस्य स्व॒र्विदः॑ ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    यम् । वात॑: । प॒रि॒ऽशुम्भ॑ति । यम् । वा॒ । इन्द्र॑: । ब्रह्म॑ण: । पति॑: । ब्रह्म॑ऽइध्दौ ।अ॒ग्नी इति॑ । ई॒जा॒ते॒‍ इति॑ । रोहि॑तस्य । स्व॒:ऽविद॑: ॥१.५१॥


    स्वर रहित मन्त्र

    यं वातः परिशुम्भति यं वेन्द्रो ब्रह्मणस्पतिः। ब्रह्मेद्धावग्नी ईजाते रोहितस्य स्वर्विदः ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    यम् । वात: । परिऽशुम्भति । यम् । वा । इन्द्र: । ब्रह्मण: । पति: । ब्रह्मऽइध्दौ ।अग्नी इति । ईजाते‍ इति । रोहितस्य । स्व:ऽविद: ॥१.५१॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 13; सूक्त » 1; मन्त्र » 51

    पदार्थ -
    (यम्) जिस [परमेश्वर] को (वातः) पवन और (यम्) जिसको (वा) निश्चय करके (ब्रह्मणः) अन्न का (पतिः) रक्षक (इन्द्रः) मेघ (परि शुम्भति) सब ओर से प्रकाशित करता है। (ब्रह्मेद्धौ) धन के साथ प्रकाशित किये गये... मन्त्र ४९ ॥५१॥

    भावार्थ - आदि कारण परमात्मा के उपकारों को कार्यरूप पवन, मेघ, सूर्य, चन्द्र आदि उपकारी पदार्थों द्वारा साक्षात् करके विद्वान् लोग उन्नति करते हैं ॥५१॥

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